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अमेरिका : भीतर का आतंक

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01:04 AM Nov 07, 2017 IST | Desk Team

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दुनिया का सबसे शक्तिशाली मुल्क अमेरिका, जिसने समूचे विश्व में आतंकवाद को खत्म करने का ऐलान कर रखा है। अमेरिका को आईएस, अलकायदा, तालिबान, दाइश जैसे आतंकवादी गुटों से तो खतरा है ही लेकिन वह देश के भीतर के आतंकवाद से निपटने में नाकाम साबित हो रहा है। अमेरिका के आंतरिक सुरक्षा के वरिष्ठतम अधिकारी भी स्वीकार करते हैं कि घरेलू आतंकवाद अमेरिका के भीतर मौजूद है, परन्तु वे इस बात को नहीं जानते कि किस प्रकार उनकी पहचान की जाए और उन्हें कैसे रोका जाए। अमेरिका के भीतर से हमले करने वालों में नस्लभेदी अतिवादी, पलायनकर्ताओं के विरुद्ध कार्यवाही करने वाले और अमेरिका के भीतर पैदा होने वाले अतिवादी मुसलमान हैं।

घरेलू आतंकवाद के चलते अमेरिका कई मामलों में विजित होकर भी पराजित है और भयभीत है। हाल ही में न्यूयार्क में ट्रक हमले में सैफुल्लो साइपोव नामक उज्बेकिस्तानी मूल के नागरिक ने ‘अल्लाह हू अकबर’ कहते हुए 8 लोगों को पिकअप ट्रक से कुचल दिया था। ग्रीन कार्ड धारक साइपोव आेहोयो, फ्लोरिडा और न्यूजर्सी में रह चुका है। अमेरिका आने के बाद साइपोव का झुकाव इंटरनेट के जरिये कट्टरपंथ की ओर हो गया था। इस हमले के बाद कोलोराडो राज्य की राजधानी डेनवर के वालमार्ट स्टोर पर हुई गोलीबारी में 3 लोगों की मौत हो गई। हमलावर फरार हो गया और पुलिस सीसीटीवी की फुटेज खंगाल रही है। अब अमेरिका के ही टेक्सास प्रांत के एक छोटे से कस्बे में एक बंदूकधारी ने चर्च में हो रही प्रार्थना सभा पर गोलियां चलाकर 26 लोगों को मार दिया और कई लोगों को घायल कर दिया। हमलावर कोई और नहीं बल्कि एक गोरा युवक था। हमलावर को फौज से निकाला गया था। वह बाइबल शिक्षक भी रहा है। एक बाइबल शिक्षक का हमलावर बन जाना आश्चर्यजनक है। अमेरिका में घृणा अपराधों से जुड़ी हुई घटनाएं होती रहती हैं। नस्लवाद के कारण भारतीय मूल के सिखाें पर हमले और दुर्व्यवहार की घटनाएं लगातार होती रही हैं।

सन् 2012 में न्यूयार्क के निकट ओक क्रीक स्थित गुरुद्वारे में एक उन्मत व्यक्ति ने अंधाधुंध फायरिंग कर अनेक सिख श्रद्धालुओं को हताहत कर दिया था। हमलों में अनेक लोगों की जानें जा चुकी हैं जिससे अमन पसन्द अमेरिकी चिन्तित हैं। बार-बार बंदूक संस्कृति को लेकर सवाल उठते हैं लेकिन बहस शुरू होती है और शांत पड़ जाती है। लॉस वेगास गोलीकांड के बाद भी बंदूक संस्कृति पर सवाल खड़े हुए थे। लॉस वेगास में एक संगीत समारोह के दौरान अंधाधुंध गोलीबारी करने वाला स्टीफन पेडॉक कोई प्रवासी नहीं था, फिर भी उसने 59 लोगों को मौत के घाट उतार दिया। जब अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से बंदूक संस्कृति से संबंधित सवाल पूछे गए थे लेकिन उन्होंने कहा कि इस तरह की बहस का कोई हल निकलेगा लेकिन इस मुद्दे पर बहस का यह उचित समय नहीं। सच तो यह है कि अमेरिका घिनौनी बंदूक संस्कृति का गुलाम बन चुका है। बंदूकों के प्रति बड़े ताे बड़े बच्चों के अंधमोह का आलम यह है कि छोटे बच्चे भी गोलियों से भरी बंदूक लेकर स्कूल जाते हैं। दरअसल अमेरिकी संविधान में बंदूक की संस्कृति काे प्रश्रय और कानूनी मान्यता है। हथियारों की दौड़ रोकने की अंतर्राष्ट्रीय बहस में बढ़-चढ़कर हिंसा की खिलाफत करने वाला अमेरिका खुद अपने ही देश में बंदूक को खत्म करने के प्रति न तो गंभीर दिखाई देता है और न ही सक्षम। अमेरिका में बंदूक रखना उतना ही सरल है जैसे भारत में लाठी-डंडा रखना। यहां 88.8 फीसदी लोगों के पास बंदूकें हैं जो दुनिया के औसत प्रति बंदूकों की संख्या के हिसाब से बहुत बड़ा आंकड़ा है। बहुत बड़े-बड़े हादसे हुए, इसके बावजूद अमेरिकी संसद में शस्त्र नियंत्रण के लिए लाए गए प्रस्ताव बुरी तरह गिर गए थे।

सीनेट में इस संबंध में चार प्रस्ताव पेश किए गए थे लेकिन चारों ही प्रस्ताव सीनेट में आगे बढ़ाए जाने के लिए जरूरी न्यूनतम 60 फीसदी वोट भी हासिल नहीं कर पाए। इनमें से एक प्रस्ताव यह भी था कि किसी व्यक्ति को बंदूक बेचे जाने से पहले उसकी पृष्ठभूमि की गहराई से जांच की जाए। सवाल उठता है कि पूरी दुनिया को झकझोर कर रख देने वाली घटनाओं के बावजूद अमेरिका में शस्त्र नियंत्रण पर होने वाली चर्चा ठोस मुकाम पर क्यों नहीं पहुंचती। अमेरिका में बंदूक संस्कृति की जड़ें इसके औपनिवेशिक इतिहास, संवैधानिक प्रावधानों और यहां की राजनीति में देखी जा सकती हैं। कभी ब्रिटेन के उपनिवेश रहे अमेरिका का इतिहास आजादी के लिए लड़ने वाले सशस्त्र योद्धाओं की कहानी रहा है। बंदूक अमेरिका की आजादी के सेनानियों के लिए आंदोलन का सबसे बड़ा औजार रही है, इसलिए यह नायकत्व आैर गौरव की निशानी बन गई है। अमेरिका के पहले राष्ट्रपति जार्ज वाशिंगटन का भी कहना था कि बंदूक अमेरिकी नागरिक की आत्मरक्षा और उसे राज्य के उत्पीड़न से बचाने के लिए जरूरी है। अमेरिका में हर कोई बंदूक रखने को अपना अधिकार मानता है। जब तक इस स्थिति में बदलाव नहीं होता तब तक लोग मरते रहेंगे। आज टेक्सास है तो कल कोई और शहर किसी सिरफिरे के निशाने पर होगा।

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