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आतंक पर अमेरिका का दोमुंहापन

26 नवम्बर, 2008 की रात मुम्बई रात की बाहों में समाने जा रही थी कि अचानक पूरे शहर में अफरा-तफरी और डर का माहौल पैदा हो गया

11:10 AM Oct 22, 2024 IST | Aditya Chopra

26 नवम्बर, 2008 की रात मुम्बई रात की बाहों में समाने जा रही थी कि अचानक पूरे शहर में अफरा-तफरी और डर का माहौल पैदा हो गया

आतंक पर अमेरिका का दोमुंहापन

26 नवम्बर, 2008 की रात मुम्बई रात की बाहों में समाने जा रही थी कि अचानक पूरे शहर में अफरा-तफरी और डर का माहौल पैदा हो गया। रात 10 बजे के करीब पहली खबर यह आई थी कि बोरीबंदर में एक टैक्सी में हुए धमाके में तीन लोगों की मौत हो गई। इसके बाद मुम्बई में एक के बाद एक फायरिंग की घटनाओं की खबरें आने लगीं। तब जाकर मुम्बई पुलिस को अंदाजा हुआ कि यह बड़ा आतंकी हमला है। आतंकवादियों ने मुम्बई के फाइव स्टार होटलों ताज, ओबराय ट्राइडैंट, छत्रपति शिवाजी रेलवे स्टेशन, नरीमन हाऊस यहूदी केन्द्र, लियोपोर्ड कैफे और कामा अस्पताल को निशाना बनाया। आतंकियों के हमले में मुम्बई एटीएस चीफ रहे हेमंत करकरे, मुम्बई पुलिस के अशोक कामटे और विजय सालस्कर मारे गए। पाकिस्तानी आतंकवादी अजमल कसाब को जिंदा पकड़ने वाले सब इंस्पैक्टर तुकाराम खुद आतंकवादियों की गोलियों का शिकार हो गए। ताज होटल में ऑपरेशन के दौरान मेजर संदीप उन्नीकृष्णन भी शहीद हुए। आतंकी हमलों में 60 से अधिक लोग मारे गए और 200 से ज्यादा घायल हुए। मुम्बई समेत समूचे भारत के लोग ताज हाेटल के गुम्बद से ​िनकलते धुएं की तस्वीर को आज तक भुला नहीं पाए हैं।

इस तरह 26/11 मुंबई आतंकी हमले में शामिल 9 आतंकी मारे गए, आमिर अजमल कसाब जिंदा पकड़ा गया। कसाब के खिलाफ मुकदमा चला, अदालत द्वारा उसे मौत की सजा सुनाई गई और 21 नवंबर, 2012 को पुणे की यरवडा जेल में सुबह साढ़े सात बजे उसे फांसी दे दी गई लेकिन इस हमले में सिर्फ यही 10 आतंकी शामिल नहीं थे, इनके आका पाकिस्तान में बैठे थे। हाफिज सईद इस हमले का मास्टर माइंड था। जैबुद्दीन अंसारी उर्फ अबु जुंदाल पाकिस्तान में बैठकर मुंबई आए 10 आतंकियों को निर्देशित कर रहा था। तहव्वुर राणा ने हथियारों की व्यवस्था की थी। ये सभी अब भी जिंदा हैं। राणा इस समय अमेरिका की जेल में बंद है और उसे भारत प्रत्यार्पित करने के प्रयास चल रहे हैं।

पाकिस्तानी मूल के कनाडाई व्यापारी राणा इस साल के अंत तक अमेरिका से प्रत्यार्पित कर भारत लाए जाने की उम्मीद है। भारत की केन्द्रीय एजैंसियों आैर कानूनी विभाग के अधिकारी पूरी तैयारी कर रहे हैं। बीते दिनों अमेरिका की एक अदालत ने तहव्वुर राणा को बड़ा झटका देते हुए फैसला सुनाया कि उसे प्रत्यार्पण संधि के तहत भारत को प्रत्यार्पित किया जा सकता है। यूएस की नाइंथ सर्किट संबंधित अपीलीय अदालत ने 15 अगस्त को सुनाए अपने फैसले में कहा, ‘भारत-अमेरिका प्रत्यार्पण संधि राणा के प्रत्यार्पण की अनुमति देती है।’ 63 वर्षीय राणा ने कैलिफोर्निया में अमेरिकी जिला अदालत के आदेश के खिलाफ इस अपीलीय अदालत में याचिका दायर की थी। कैलिफोर्निया की जिला अदालत ने उसकी बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को अस्वीकार कर दिया था। इसमें मुंबई में आतंकवादी हमलों में राणा की संलिप्तता के लिए उसे भारत प्रत्यार्पित किए जाने के मजिस्ट्रेट न्यायाधीश के आदेश को चुनौती दी गई।

मुम्बई हमलों में शामिल होने के आरोप में तहव्वुर राणा के बचपन के दोस्त डेविड हेडली को भी अमेरिका के अधिकारियों ने गिरफ्तार किया था और उसे 35 साल की सजा सुनाई गई थी। डेविड हेडली लश्कर के चीफ हाफिज सैय्यद का चहेता था। यह वही डेविड हेडली है जिसने मुम्बई में फर्स्ट वर्ल्ड नाम की अप्रवासन कम्पनी खोली थी। इस कम्पनी की आड़ में उसने मुम्बई के हर उस क्षेत्र की रेकी की थी जहां आतंकवादी हमले हुए थे। अब सवाल यह है कि राणा के प्रत्यार्पण में अमेरिका की बाइडेन सरकार क्या भूमिका निभाती है। अमेरिका की ज्यूरी ने राणा को मुम्बई हमलों के लिए मदद देने के गम्भीर आरोपों से मुक्त कर दिया है। अमेरिका खालिस्तानी आतकंवादी गुरपतवंत सिंह पन्नू की हत्या की साजिश का आरोप भारत पर लगाकर बहुत ढिंढोरा पीट रहा है और कनाडा में अलगाववादी ​िनज्जर की हत्या में कनाडा के आरोपों के समर्थन में खड़ा है लेकिन वह अपने भीतर झांक कर नहीं देखता। पिछले दो दशकों के दौरान भारत ने अमेरिका के पास 61 लोगों के प्रत्यार्पण का अनुरोध किया लेकिन अमेरिका ने उन पर कोई कार्रवाई नहीं की। कनाडा से भी 26 लोगों के प्रत्यार्पण का अनुरोध किया गया ले​िकन उसने भी कोई ध्यान नहीं दिया, उल्टा भारत को घेरने की कोशिश की।

प्रत्यार्पण के लिए लम्बित पड़े अनुरोधों में तहव्वुर राणा, गैंगस्टर गोल्डी बराड़ और हरजीत सिंह जैसे चर्चित नाम शामिल हैं। गोल्डी बराड़ पर आतंकवादी गिरोह चलाने, हत्या और जबरन वसूली जैसे गम्भीर आरोप हैं। वह सिद्धू मुसेवाला की हत्या में भी वांटेड है। वहीं हरजीत सिंह पर देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने और टेरर फंडिंग जैसे संगीन आरोप हैं। अनमोल बिश्नोई, नैल्सन के कंबाटा और जाली पासपोर्ट मामले में वांछित साहिल कुमार के प्रत्यार्पण अनुरोध पर भी कोई गौर नहीं किया गया। आतंकवाद पर अमेरिका ने हमेशा ही दोमुंही नीति अपनाई है। अमेरिका ने हमेशा दूसरे देशों में घुसकर आतंकवादियों को मारा है। चाहे वह लादेन हो, अलजवा​िहरी या कासिम सुलेनामी हो लेकिन वह पन्नू और ​िनज्जर मामले को तूल देकर भारत पर बेवजह आरोप लगा रहा है। जबकि अमेरिका के भीतर भारत विरोधी तत्व संरक्षण लिए बैठे हैं। हालांकि तहव्वुर राणा के पास अभी भी कुछ कानूनी विकल्प मौजूद हैं। उसके पास अपील करने के ​िलए 45 दिन का समय है। देखना यह है कि अमेरिका का तहव्वुर राणा को लेकर क्या रवैया है?

आदित्य नारायण चोपड़ा

Adityachopra@punjabkesari.com

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