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अमृत महोत्सव : दर्द अभी जिंदा है-4

पाकिस्तान ने पाक अधिकृत कश्मीर में जुल्मों की हद कर दी।

01:55 AM Jul 22, 2022 IST | Aditya Chopra

पाकिस्तान ने पाक अधिकृत कश्मीर में जुल्मों की हद कर दी।

अमृत महोत्सव   दर्द अभी जिंदा है 4
पाकिस्तान ने पाक अधिकृत कश्मीर में जुल्मों की हद कर दी। पाकिस्तान ने जमकर यहां के संसाधनों का इस्तेमाल किया। पाकिस्तानी हुक्मरान कहते हैं कि आजाद कश्मीर में 1974 से संसदीय प्रणाली है और चुनाव हो रहे हैं। वहां राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री हैं। मतलब इस्लामाबाद के मुताबिक पीओके में सब कुछ ठीक चल रहा है। दूसरी ओर मानवाधिकार कार्यकर्ता कहते हैं, ‘‘आजाद कश्मीर बिल्कुल आजाद नहीं है। लोग खुश नहीं हैं। वे पाकिस्तान का हिस्सा नहीं बनना चाहते। उन पर अत्याचार होता है, पर कोई सुनवाई नहीं। पीओके का सारा नियंत्रण पाकिस्तान के हाथ में है। वहां काउंसिल का चेयरमैन पाकिस्तान का प्रधानमंत्री होता है, जिसका नियंत्रण सेना करती है। लोग पाक सेना को जबरन घुस आई सेना मानते हैं। इसीलिए वहां पाकिस्तान के खिलाफ बड़ा मूवमेंट चल रहा है। इस आंदोलन में अनेक नेशनलिस्ट संगठन शामिल हैं, जिसमें पांच-छह सक्रिय तंजीम हैं। ये तंजीम पाकिस्तान के उन दावों की हवा निकाल देते हैं जिनमें दावा किया जाता है कि उसके नियंत्रण वाला कश्मीर ‘आजाद’ है। बहरहाल अन्तर्राष्ट्रीय बिरादरी की खामोशी इस्लामाबाद को मनमानी करने का हौसला देती है।’’
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मुजफ्फराबाद में रहने वाले कश्मीरी लेखक अब्दुल हकीम कश्मीरी कहते हैं, ‘‘आजाद कश्मीर की असेम्बली को मिले अधिकार बेमानी हैं। इसका कोई अन्तर्राष्ट्रीय स्टेटस नहीं है। इस हुकूमत को पाकिस्तान के अलावा दुनिया में कोई भी नहीं मानता। अगर सच्ची बात की जाए तो इस असेम्बली की पोजीशन अंगूठा लगवाने से ज्यादा नहीं है।’’ 2005 के विनाशकारी भूकम्प के बाद ह्यूमन राइट्स वाच ने एक रिपोर्ट तैयार की थी, जिसमें कहा गया था कि आजाद कश्मीर में मानवाधिकारों का उल्लंघन होता है। अभिव्यक्ति की आजादी पर कड़ा नियंत्रण है। जम्मू-कश्मीर को पाकिस्तान में मिलाने की पैरवी करने वाले चरमपंथी संगठनों को खुली छूट है। लाइन ऑफ कंट्रोल के करीब 1989 से असंख्य आतंकवादी कैम्प चल रहे हैं। वहां अनगिनत लॉंच पैड भी हैं। वहीं से भारत में घुसपैठ होती है।
पाकिस्तान द्वारा पाक अधिकृत कश्मीर में जिस तरह के तौर-तरीके अपनाए गए हैं तथा वहां के लोगों को अपने कश्मीर राग व ‘रायशुमारी’ के झुनझुने से बहकाने का क्रम चला आ रहा है तथा उनके साथ जिस प्रकार का दमनचक्र जारी है उस बारे वहां की ‘ऑल पार्टी नैशनल एलायंस’ द्वारा जो रोष व्यक्त किया गया है वह अब सारी दुनिया तक पहुंच गया है। इस संबंध में लोगों ने अत्यंत तीखे  शब्दों में अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। उसका कहना हैः
‘‘जुल्म आखिर जुल्म है, बढ़ेगा तो मिट जाएगा,
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खून आखिर खून है, गिरेगा तो जम जाएगा।’’
लोग कहते  हैं कि अब तो वह वक्त भी निकल गया। यह तो ​हिन्दुस्तान एक शरीफ मुल्क है, वरना कब की इन्हें इनकी औकात बता देता। सचमुच हिन्दुस्तान एक शरीफ मुल्क है। आज अधिकृत कश्मीर में रहने वाले पूरी शिद्दत से इसे कबूल करते हैं। उन्होंने पाकिस्तान के साथ रहकर देख लिया। वह स्वयं एक स्वतंत्र प्रदेश के रूप में भी स्वयं को कभी सुरक्षित महसूस नहीं करते। वह जब भी इसकी कल्पना करते हैं, खौफजदा हो जाते हैं। उनकी नजर में जब भी भविष्य की कोई सुन्दर कल्पना गुजरती है, उसमें दूर-दूर तक पाकिस्तान का कोई भी नाम नहीं होता। वह चाहते हैं, जुल्म की उस हकूमत से उन्हें निजात मिल जाए, लेकिन ऐसा हो नहीं पा रहा है। आखिर क्यों?
पाक अधिकृत कश्मीर के लिए सन् 1988 का साल इस परिप्रेक्ष्य में बड़ा विस्मरणीय साल माना जाएगा। शिया मुसलमान कुछ खुली एवं स्वतंत्र विचारधारा के जिस इलाके में रह रहे थे वहां की घटना है। बहुत हद तक कश्मीरियों से इनके विचार ​िमलते थे। एक मस्जिद में कुछ धार्मिक कार्यक्रम चल रहे थे। जैसे ही कार्यक्रम समाप्त हुए, कुछ फौजी बूटों समेत मस्जिद में प्रवेश कर गए। कोहराम मच गया। कुछ सुन्नी मुसलमानों ने पाकिस्तान को खबर भेजी थी कि इलाके के शिया मुस्लिम और  कश्मीरी मिलकर मस्जिद में रोज पाकिस्तान के खिलाफ षड्यंत्र करते हैं। फौजियों ने आव देखा न ताव ए.के.-47 की आवाजों से सारा इलाका गूंज उठा। जो लोग बाहर भागे, वह एक ​ब्रिगेडियर की रिवाल्वर से आग उगलती गोलियों का शिकार हो गए। सारा फर्श खून से लाल हो गया।
पाकिस्तान ने चुनकर मुशर्रफ नामक ब्रिगेडियर को वहां भेजा था, जिसे ऐसे कामों का अनुभव था। बाद में यही मुशर्रफ पाकिस्तान का तानाशाह बना था। उपरोक्त घटना के बाद सारा अधिकृत कश्मीर दो दिन बंद रहा, परन्तु एक वर्ष के  अन्दर पाकिस्तान का जो दमन चक्र चला, वहां के मूल निवासियों ने यह मान लिया कि चाहे पाकिस्तान उन्हें ‘आजाद कश्मीर’ की संज्ञा देता है, परन्तु वास्तव में वह ‘बर्बाद कश्मीर’ बन चुका है। दूर इलाकों को क्या कहें, आज भी उस इलाके में पीने के पानी का कोई इंतजाम नहीं। जो दरिया नजदीक बहते हैं उन्हें बांधने का काम भी अतीत में जब हुआ तो उसके पानी की दिशाओं का मुंह भी पाकिस्तान की ओर मोड़ा गया, इस इलाके में एक बूंद भी पानी नहीं पहुंचा। सबसे पहले वहां मुशर्रफ ने ही एक नया प्रयोग किया। शिया लोगों के कत्ल के कारनामे जब दूर-दूर तक गूंजने लगे तो मुशर्रफ ने एक नई चाल चली। ‘‘लश्कर-ए-झांगी नामक एक उग्रवादी संगठन सबसे पहले यहां वजूद में आया। आरम्भ के दिनों में ये लश्कर वर्दी रहित सैनिकों से ही शुरू हुआ और बाद के दिनों में इसकी रचना में थोड़ा परिवर्तन आया।
पाकिस्तान में जितने बिगड़े, लुच्चे और लफंगे लोग थे सब इसमें भर्ती किए गए। इनकी कुकर्मों पर एक नजर डालें-दिन के समय औरतों को पर्दे में रहने के भाषण देते थे। रात को किसी न किसी घर से औरतों को उठाकर ले जाते थे। मुखबिरों के इशारे पर हत्याएं करते थे। नब्बे के बाद के दशक में बाकायदा निम्नांकित इलाकों में और उग्रवादी आ गए और  यह अधिकृत कश्मीर उनका ट्रेनिंग सैंटर हो गया। ये इलाके  थे बाटापुरा, गिलगित, सालीकोट, भिम्बर, हाजीपीर, रावलकोट, द्रोमेल, छातार, मंगल बजरी और शरडी। सारे के सारे इलाके धीरे-धीरे भर गए। लोगों को खौफ हो गया। स्थानीय प्रशासन को भी निर्देश मिल गए कि ये ही लोग इस क्षेत्र के आका हैं, अतः इनके ऊपर किसी भी प्रकार का न तो प्रशासन का हुक्म चलेगा और  न ही कोई नियंत्रण रहेगा।  (क्रमशः)
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com
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