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अमृत महोत्सव : दर्द अभी जिंदा है-5

जिस पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर की हम बात कर रहे हैं, वह पूरी तरह आतंकवाद की चपेट में है। भारत के हिस्से वाले कश्मीर में आतंकवाद फैलाने के लिए भी पाकिस्तान जिम्मेदार है।

01:44 AM Jul 23, 2022 IST | Aditya Chopra

जिस पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर की हम बात कर रहे हैं, वह पूरी तरह आतंकवाद की चपेट में है। भारत के हिस्से वाले कश्मीर में आतंकवाद फैलाने के लिए भी पाकिस्तान जिम्मेदार है।

अमृत महोत्सव   दर्द अभी जिंदा है 5
जिस पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर की हम बात कर रहे हैं, वह पूरी तरह आतंकवाद की चपेट में है। भारत के हिस्से वाले कश्मीर में आतंकवाद फैलाने के लिए भी पाकिस्तान जिम्मेदार है।  अब एक और समस्या का सामना पाक अधिकृत कश्मीरियों को करना पड़ रहा है। विकास के नाम पर या विकास संबंधी परियोजनाओं को आगे बढ़ाने के नाम पर पाक ने चीन को अन्दर घुसा लिया है। पाकिस्तान ने चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर के निर्माण सहित बुनियादी ढांचे के निर्माण की सभी परियोजनाओं पर समझौता किया है। हालांकि पीओके के निवासी यह कहते हैं कि यहां विकास जैसा कुछ नहीं होगा, क्योंकि इसके पीछे की नीयत साफ नहीं है। हजारों चीनी अन्दर आकर बैठ गए हैं। चीनी सैनिकों की हलचल बढ़ गई है। कई जगहों पर इनके कैम्प लगे हुए हैं। यहां बस सुरंगें खोदी जा रही हैं और कुछ नहीं।
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चीन और पाकिस्तान ने पाक अधिकृत कश्मीर (पीओके) से होते हुए 200 किमी लम्बी सुरंग बनाने का समझौता ​िकया है। राजनीतिक लिहाज से अहम इस इलाके में सुरंग को बनाने पर 18 अरब डालर का भारी-भरकम खर्च किए जाने की योजना है। पीओके से गुजरने वाले पाक-चीन आर्थिक गलियारे से चीन का रणनीतिक हित जुड़ा है। दरअसल यह पीओके या पाकिस्तान के विकास नहीं, भारत पर दबाव बनाने की ही रणनीति का एक हिस्सा है। यह सुरंग अरब सागर में पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह को चीन में काशघर शहर से जोड़ेगी। महत्वपूर्ण ग्वादर बंदरगाह का नियंत्रण पिछले साल ही चीन के हाथ में आया है। इसके अलावा कश्मीर का एक बहुत बड़ा भू-भाग अक्साई चिन पाकिस्तान ने चीन को दे दिया है, जहां पर पूर्ण रूप से अब चीन का ही नियंत्रण है। पाक अधिकृत कश्मीर की अवाम में चीन की मौजूदगी पर आक्रोश है।
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने संयुक्त राष्ट्र को सम्बोधित करते हुए कहा-‘‘जिस प्रकार अल कायदा और तालिबान से बातचीत नहीं की जा सकती, ठीक उसी प्रकार से पाकिस्तान से भी बातचीत नहीं की जा सकती।’’
पूरे हाल में अगर अटल जी की जिस टिप्पणी पर सबसे ज्यादा तालियां गूंजीं, तो वह यही टिप्पणी थी। 1950 के दशक यानी 1957 से अटल जी ने संयुक्त राष्ट्र को देखा है और उसे जाना था। अटल जी ने तो दो टूक संयुक्त राष्ट्र की भूमिका पर भी उस दिन उंगली उठाई। उन्होंने कहा, ‘‘संयुक्त राष्ट्र के चार्टर में जिस युद्धविहीन विश्व की कल्पना की गई है, क्या वह कल्पना आज तक साकार हो सकी है? क्या ऐसा विश्व बनाया जा सका है? क्या युद्ध नहीं हो रहा? क्या खून नहीं बह रहा? मोम्बासा से मास्को तक और मुम्बई से बाली तक आज आतंकवाद अपने चरम पर है और मानवता जल रही है।’’ यह तो भविष्य बताएगा कि संयुक्त राष्ट्र अटल जी की इस शिक्षा से क्या फायदा उठाता है। पर एक बात स्पष्ट है कि अटल जी की नजर में पाकिस्तान आतंक का पोषक राष्ट्र है।
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एक बात स्वाभाविक उठती है-उग्रवादियों से कूटनीतिक रिश्ते क्यों? क्या जरूरत है बसों और रेलों की? क्या जरूरत है हवाई जहाजों की? क्या जरूरत है उनके उच्चायोग की भी? जितनी जगह उनके उच्चायोग को दिल्ली में दी गई है वहां एक विश्व स्तरीय अस्पताल बना दिया जाए। वहां महज एक छोटा सा कमरा लोगों के मिलने-जुलने का हो या पत्र व्यवहार का हो। अगर मानवता के दृष्टिकोण से किसी गम्भीर मरीज को पाकिस्तान की सरकार इलाज कराने के लिए भारत भेजना चाहे तो उसे इसी अस्पताल में इलाज के लिए रखा जा सकता है, अन्यथा आज पाकिस्तान के साथ सारे रिश्तों को तोड़ देने की जरूरत है।
अधिकृत कश्मीर न तो कानूनी रूप से पाकिस्तान का हिस्सा कभी था न अब भी है। पाकिस्तान का सलूक उसने देख लिया। विश्वसनीय सूत्र यह भी बतलाते हैं कि सिंध, फ्रंटीयर और बलोचिस्तान में एक साथ विद्रोह की शुरूआत होगी। क्या पाकिस्तान टुकड़े-टुकड़े हो जाएगा? हां! निःसंदेह! ऐसा ही होगा! यह कोई ज्योतिष शास्त्र की बात या भविष्यवाणी नहीं है, कुदरत का एक बुनियादी सिद्धांत है कि जो दूसरों के लिए गड्ढा खोदता है, गड्ढे उसके लिए सदा तैयार मिलते हैं।  आज दुनिया के किसी भी हिस्से में जहां पाकिस्तानी रहते हैं वह इस बात को अच्छी तरह जानते हैं कि पाकिस्तान का मतलब सिर्फ पंजाब है। छोटे से पंजाबी घरानों में देश का सारा सरमाया सिमट गया है और वही लोग सत्ता के संचालक हैं, चाहे सत्ता जिसके हाथ में भी रहे। चार राज्यों वाला छोटा सा देश जहां 61 प्रतिशत खर्च एक ही राज्य में हो और शेष 39 प्रतिशत में तीनों अन्य राज्यों की योजनाओं का कार्यान्वयन हो, वह कब तक शांत रह सकता है? (क्रमशः)
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com
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