और टूट गई अंतिम कड़ी
अंतिम कड़ी टूट गई दिल में बड़ी पीड़ा है और बहुत बड़े नुक्सान का अहसास है मुझे, वो दिन कभी भी भूलते नहीं हैं जब केदारनाथ साहनी जी, विजय कुमार मल्होत्रा जी, मदन लाल खुराना जी हमारे घर, ऑफिस में अक्सर आया करते थे। तीनों अश्विनी जी से उम्र में बड़े थे परन्तु लाला जी और रमेश जी के कारण और अश्विनी जी की पत्रकारिता के कारण उनसे बहुत स्नेह रखते थे और अश्विनी जी को बहुत सम्मान देते थे। उस समय पंजाबियों का दिल्ली में वर्चस्व था।
दिल्ली में जनसंघ के दौर से ही पंजाबी समुदाय का सियासत में वर्चस्व रहा। तब स्वर्गीय मदन लाल खुराना, केदारनाथ साहनी और विजय कुमार मल्होत्रा की तिकड़ी ने ही जनसंघ के दिल्ली चैप्टर की स्थापना की थी। इसके बाद तीनों नेता दिल्ली भाजपा की रीढ़ बन गए थे। विजय कुमार मल्होत्रा के निधन के साथ ही तिकड़ी की अंतिम कड़ी भी टूट गई। आज महसूस हो रहा है कि कहां गए वे लोग जिन्हें जनता ने अथाह सम्मान दिया। जनता के बीच इन पर अभूतपूर्व भरोसा था और हर मुश्किल की घड़ी में लोग उनके पास पहुंच जाते थे। पंजाबी समुदाय ने भी दिल्ली में भाजपा की जड़ें मजबूत करने के लिए दिन-रात एक किया है।
विजय कुमार मल्होत्रा भी मदन लाल खुराना और केदारनाथ साहनी की तरह जमीनी नेता थे। दिल्ली की सियासत में सत्ता की चाबी इन्हीं के हाथों में हुआ करती थी। आजादी के बाद देश के बंटवारे के बाद पाकिस्तान से बड़ी संख्या में लोग दिल्ली आकर बसे थे। विजय कुमार मल्होत्रा ने पंजाबी समुदाय के लिए बहुत काम किया। पंजाबी मतदाताओं के सहारे ही भाजपा 1993 में दिल्ली की सत्ता के सिहांसन पर विराजमान हुई थी और मदन लाल खुराना दिल्ली के मुख्यमंत्री बने थे। मुझे याद है कि एक जनवरी 1983 में दिल्ली में पंजाब केसरी की शुरूआत के मौके पर भी आए थे। हमारे परिवार के सम्बन्ध इन सभी से बहुत ही पारिवारिक और घनिष्ठ रहे। मेरे पति अश्विनी जी इनका बहुत सम्मान करते थे। आयु के तीसरे पहर में भी खुराना जी और मल्होत्रा जी तो सायंकाल अश्विनी जी के पास आ जाते थे। मल्होत्रा जी और खुराना जी को दही भल्ले, गोल गप्पे और पकोड़े खाने का बहुत शौक था। होली उत्सव मनाना उनका शौक था। सायंकाल अश्विनी जी के कार्यालय में घंटाें सियासत की चर्चा होती रहती थी। मल्होत्रा जी को देश विभाजन की पीड़ा व्यथित कर देती थी। वे बताते थे कि बंटवारे के समय किस तरह उन्होंने पंजाब के फगवाड़ा में संघ के शिविर में रहकर दिन गुजारे आैर पीड़ितों की मदद की।
अटल बिहारी वाजपेयी आैर लाल कृष्ण अडवानी जैसे दिग्गजों के साथ मल्होत्रा जी का गहरा नाता था। संगठन विस्तार हो या वैचारिक प्रतिबद्धता की बात हो वह अटल-अडवानी युग में सबसे महत्वपूर्ण स्तम्भ बन गये थे। भारतीय जनसंघ के जनता पार्टी में विलय के बाद 1977 में उन्हें जनता पार्टी दिल्ली का अध्यक्ष बनाया गया और 1980 में भारतीय जनता पार्टी बनने के बाद वे दिल्ली बीजेपी के पहले अध्यक्ष बनाए गए। दिल्ली की राजनीति में मल्होत्रा का दबदबा इस बात से भी साबित होता है कि वे पांच बार सांसद और दो बार विधायक रहे। वे राज्यसभा के सदस्य भी रहे। 2004 में इंडिया शाइनिंग नारा डूबने के बाद देश के बड़े शहरों से भाजपा का सफाया हो गया लेकिन उस भाजपा विरोधी आंधी में भी मल्होत्रा ने दिल्ली में लोकसभा सीट जीती। 1999 में उन्होंने दक्षिण दिल्ली सीट से डॉ. मनमोहन सिंह को हराया। यह सबसे चर्चित और चौंकाने वाली जीत मानी जाती है। भाजपा ने उन पर दांव लगाते हुए 2008 के विधानसभा चुनाव में उन्हें मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया था। वे ग्रेटर कैलाश सीट से अपना चुनाव जीते। हालांकि वे पार्टी को चुनावी सफलता नहीं दिलवा सके। मल्होत्रा ने बतौर सांसद भी लोकसभा में अपनी छाप छोड़ी। वे पार्टी के डिप्टी लीडर भी रहे और यूपीए सरकार में कई मुद्दों पर प्रमुखता से पार्टी की आवाज संसद में उठाई। दिल्ली से जुड़े मुद्दों को संसद में मजबूती से रखा। वे दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने के लिए संघर्ष भी करते रहे। दिल्ली में आज जो विकास दिख रहा है उसकी नींव कहीं न कहीं पहले एमसीडी सीईओ मल्होत्रा जी ने ही रखी थी। चाहे वह दिल्ली का पहला फ्लाईआेवर हो या रिंग रोड की परिकल्पना।
1980 में भाजपा के गठन में वे संस्थापक सदस्य थे और दिल्ली इकाई के पहले अध्यक्ष बने। राम जन्मभूमि आंदोलन में अडवानी के नेतृत्व में सक्रिय योगदान दिया, जबकि वाजपेयी सरकार में राष्ट्रीय एकता और विकास योजनाओं में सहयोग किया। राजनीति के अतिरिक्त, मल्होत्रा जी हिंदी साहित्य में पीएचडी धारक थे और दिल्ली विश्वविद्यालय से जुड़कर युवाओं को प्रेरित किया। खेल प्रशासन में उनका योगदान अविस्मरणीय रहा। इंडियन ओलंपिक एसोसिएशन के वरिष्ठ उपाध्यक्ष के रूप में 1974 के एशियाई खेलों में भारतीय दल का नेतृत्व किया तथा आर्चरी और चेस फेडरेशन को मजबूत बनाया। यहां तक कि मेरे बुजुर्गों के कार्यक्रम में विजय कुमार मल्होत्रा जी हमेशा अपनी उपस्थिति दर्ज करवाते थे। विशेष रूप से जी.के.-2 की ब्रांच में तो वो कई बार आये और अपनी खुशी प्रकट करते थे कि आप बहुत अच्छा काम कर रही हैं आैर वो अपनी उम्र और कार्यशैली से हमारे सदस्यों को प्रेरणा भी देते थे।
सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में उन्होंने स्वास्थ्य, शिक्षा और खेल को बढ़ावा दिया जिससे लाखों युवाओं को दिशा मिली। प्रो. मल्होत्रा जी का निधन हमें याद दिलाता है कि सच्ची विरासत संगठन निर्माण, वैचारिक संघर्ष और सामाजिक दायित्वों में निहित होती है। आज मल्होत्रा जी के कद का कोई नेता नजर नहीं आता। दिल्ली भाजपा को भव्य तथा नया कार्यालय मिल चुका है जिसमें मजबूत नींव पर भाजपा खड़ी हुई है। उसमें मल्होत्रा जी के समर्पण और योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। पंजाब केसरी परिवार की तरफ से उनको शत्-शत् नमन।