आज है मंगल और बुध दोष मिटाने वाली अंगारकी चतुर्थी, जानें व्रत और पूजा की विधि
हिंदू पंचांग के अनुसार,कृष्ण पक्ष और शुुक्ल पक्ष दो चतुर्थी हर महीने आती हैं। भगवान गणेश जी की पूजा चतुर्थी तिथि पर विशेष रूप से करने का महत्व है।
06:45 AM Jan 28, 2020 IST | Desk Team
हिंदू पंचांग के अनुसार,कृष्ण पक्ष और शुुक्ल पक्ष दो चतुर्थी हर महीने आती हैं। भगवान गणेश जी की पूजा चतुर्थी तिथि पर विशेष रूप से करने का महत्व है। अगर मंगलवार को चतुर्थी आती है तो उसे अंगारकी चतुर्थी भी कहते हैं।
शास्त्रों में कहा गया है कि पूरे साल भर के चतुर्थी व्रत रखने से जो फल मिलता है वह अंगारकी चतुर्थी का व्रत रखने से प्राप्त हो जाता है। चलिए आपको बताते हैं कि अंगारकी चतुर्थी इसे क्यों कहते हैं और इसका महत्व और पूजा विधि क्या है-
तपस्या की मंगलदेवता ने
हिंदू शास्त्रों में बताया गया है कि भगवान गणेश को प्रसन्न करने के लिए एक बार मंगलदेवता ने कड़ी तपस्या का प्रण लिया। गणेशजी उनकी इस कड़ी तपस्या को देखते हुए उनके सामने प्रकट हुए और मंगलदेवता को उन्होंने वरदान करते हुए कहा कि जो भी चतुर्थी मंगलवार के दिन आएगी उसे अंगाकारी चतुर्थी कहा जाएगा। जो भी मनुष्य इस व्रत को रखेगा उसके जीवन में आ रही सारी विघ्न और बाधाएं दूर होंगी और सारे बिगड़े काम बन जाएंगे।
इतना ही नहीं जिन लोगों की कुंडली में मंगल दोष हैं उनके निवारण इस व्रत रखने से हो जाएंगे। मंगलवार यानी आज अंगारकी चतुर्थी इस बार पड़ रही है। अंगारकी चतुर्थी मंगलवार को सुबह 8 बजकर 22 मिनट पर शुरु हो रही है और बुधवार को चतुर्थी 10 बजकर 46 मिनट तक है। बता दें कि इससे पहले तृतीया तिथि थी। इस वजह से बुधवार को भी चतुर्थी का मान होगा। तो इस लिहाज से मंगल को व्रती होगा और बुध दोष से भी व्यक्ति को मुक्ति मिल जाएगी।
इस तरह है अंगारकी चतुर्थी की पूजा-विधि
व्यक्ति सूर्योदय से पहले अंगारकी चतुर्थी वाले दिन स्नान कर ले और फिर व्रत रखें। उसके बाद धूप-दीप, पुष्प, दुर्वा और यथा संभव मेवा भगवान गणेश की पूजा में चढ़ाएं और साथ में मोदक से उनको भोग लगाएं।
जाप करें इस मंत्र का
गजाननं भूत गणादि सेवितं,कपित्थ जम्बू फल चारू भक्षणम्।
उमासुतं शोक विनाशकारकम्,नमामि विघ्नेश्वर पाद पंकजम्।।
इस तरह है व्रत के नियम और पूजा विधि
गणेश चतुर्थी का व्रत रखने के बाद पूरा दिन फलाहारी ही खाएं और साथ में व्रत के नियमों का भी पालन अवश्य करें।
चांद निकलने से पहले इस दिन शाम को पूजा करनी होती है। तिल और गुड़ के लड्डू, फूल, जल, चंदन, दीप-धूप,केला और मौसमी फल, नारियल आदि प्रसाद के तौर पर पूजा के दौरान रखें।
दुर्गा माता की मूर्ती भी पूजा के समय पर रखें। कहा जाता है कि माता की मूर्ति गणेश जी की पूजा के समय रखना शुभ होता है। पूजा के समय भगवान भोलेनाथ की आरती भी गणेश जी की आरती के बाद जरूर करें।
धूप-दीप से वंदन गणेश जी को चंदन का टीका लगाने के बाद करें। पूजा के बाद गणपति जी को लड्डुओं का भोग लगाएं और उसे प्रसाद के तौर पर लोगों में बांट दें।
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