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फिर सुलगा असम-मिजो सीमा विवाद

सीमावर्ती क्षेत्रों की अपनी समस्याएं और खासियतें हैं। अधिकतर आबादी के अवैध घुसपैठ के कारण उनके आर्थिक और पर्यावरणीय संसाधनों पर दबाव रहता है

12:47 AM Oct 21, 2020 IST | Aditya Chopra

सीमावर्ती क्षेत्रों की अपनी समस्याएं और खासियतें हैं। अधिकतर आबादी के अवैध घुसपैठ के कारण उनके आर्थिक और पर्यावरणीय संसाधनों पर दबाव रहता है

सीमावर्ती क्षेत्रों की अपनी समस्याएं और खासियतें हैं। अधिकतर आबादी के अवैध घुसपैठ के कारण उनके आर्थिक और पर्यावरणीय संसाधनों पर दबाव रहता है। पूर्वोत्तर भारत प्राकृतिक दृष्टि से बहुत ही खूबसूरत है लेकिन  पूर्वोत्तर भारत के राज्यों में हिंसा हमेशा केन्द्र की सरकारों के लिए चिंता का विषय रहा है। भारत के उत्तर-पूर्व में आठ राज्य शामिल हैं- असम, मेघालय, मिजोरम, मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, त्रिपुरा और ​सिक्किम। यह क्षेत्र एक छोटे से गलियारे द्वारा भारतीय मुख्य भूमि से जुड़ा हुआ है तथा भूटान, म्यांमार, बंगलादेश और चीन जैसे देशों से घिरा हुआ है। 
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असम का मेघालय, अरुणाचल और मिजोरम से सीमा विवाद है। अरुणाचल और मिजोरम के बीच सीमा विवाद है। पूर्वोत्तर भारत में अलग-अलग समुदाय के लोग बसते हैं, उनकी जीवन शैली में भी अंतर है। सबसे बड़ी बात यह है कि क्षेत्रवाद और जाति की अस्मिता का मुद्दा बड़ा संवेदनशील है। असम-मिजोरम सीमा की विवादित प्रकृति के बावजूद काफी शांति बनी रही। हालांकि 1994 आैर 2007 में कुछ ऐसे उदाहरण सामने आए जब इस सीमा पर तनाव बढ़ गया था लेकिन केन्द्र सरकार द्वारा समय पर हस्तक्षेप के कारण बड़ा संकट टल गया था। 2007 की सीमा घटना के बाद मिजोरम ने घोषणा कर दी थी ​कि वह असम के साथ वर्तमान सीमा को स्वीकार नहीं करता और इनर लाइन आरक्षित वन की आंतरिक रेखा को 1875 के पूर्वी बंगाल फ्रंटियर रेगुलेशन के तहत 1875 की अधिसूचना में वर्णित किया गया है जो कि सीमांकन का आधार होना चाहिए। अरुणाचल और मिजोरम दोनों ही असम से निकल कर राज्य बने हैं। अरुणाचल प्रदेश केन्द्र शासित प्रदेश 20 जनवरी, 1972 को बनाया गया था। अरुणाचल और मिजोरम दोनों ने असम के साथ अपनी अधिसूचित सीमाओं को स्वीकार कर लिया था लेकिन बाद में असमियां अतिक्रमण का मुद्दा उठाकर सीमा संघर्ष शुरू कर दिया गया। असम-अरुणाचल प्रदेश सीमा के मामले में पहली बार 1992 में झड़पें हुई थीं जब अरुणाचल प्रदेश सरकार ने आरोप लगाया था कि असम के लोग उनके क्षेत्र पर कब्जा करके घर, बाजार और यहां तक कि पुलिस थाने भी बना रहे हैं।
1987 में मिजोरम को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया गया था। असम के कधार, हैलीकांडी और करीमगंज जिले मिजोरम के कोलासिव, ममित और आइजोल जिलों के साथ 164.6 किलोमीटर लम्बी सीमा सांझा करते हैं। कई ​जिलों की सीमा को लेकर अक्सर विवाद होता रहा है। किसी गांव पर असम दावा करता है तो किसी गांव पर मिजोरम।
असम और मिजोरम के बीच तनाव का ताजा दौर इसी महीने की शुरूआत में शुरू हुआ था जब असम के अधिकारियों ने करीमगंज-ममित सीमा पर एक फार्म हाऊस और फसलों को जला दिया था। असम पुलिस का दावा था कि यह एक निष्कासन अभियान था। तनाव इतना बढ़ गया कि चार दिन पहले असम-मिजोरम सीमा पर दो गुट आमने-सामने आ गए। मिजो जिला के अधिकारियों और जातीय संगठनों ने आरोप लगाया कि कधार के कुछ निवासियों ने असम पुलिस अधिकारियों की मौजूदगी में  ​मिजोरम पुलिस चौकी पर हमला कर दिया। मिजो लोगों पर भी आरोप है कि उन्होंने असम सीमा के भीतर सड़क के किनारे कुछ अस्थाई दुकानों को जला दिया। मिजोरम के एक शक्तिशाली छात्र संगठन ने कुछ दुकानों को आग लगाने की बात स्वीकार करते हुए कहा कि दुकानें मिजोरम में थीं और इन्हें अवैध बंगलादेशियों द्वारा स्थापित किया गया था। अवैध बंगलादेशियों ने मिजोरम में घुसपैठ कर वहां टैक्सी स्टैंड के पास दुकानें बना ली थीं। इससे स्पष्ट है कि अवैध बंगलादेशियों का मुद्दा आज भी पहले की ही तरह जीवित और संवेदनशील है। यह भी दावा किया जा रहा है कि असम-मिजोरम सीमा पर रहने वाले 80 प्रतिशत लोग अवैध बंगलादेशी अप्रवासी हैं।
देश को आजाद हुए 73 वर्ष हो गए लेकिन राज्यों के सीमा विवाद अभी तक शांत नहीं हुए हैं। इन विवादों को लेकर राज्यों के नागरिकों में संघर्ष न तो लोकतंत्र के हित में है और न ही देश के लिए। प्रधानमंत्री कार्यालय और गृह मंत्री अमित शाह ने असम के मुख्यमंत्री सोनोवाल और मिजोरम के मुख्यमंत्री जोरमथांगा को आपस में बातचीत कर शांति बहाली पर जोर दिया था। दरअसल आजादी के समय पूरा इलाका असम में था। उसके बाद प्रशासनिक सहूलियत के लिए समय-समय पर कई हिस्सों को अलग कर राज्य का दर्जा दिया जाता रहा लेकिन कोई भी राज्य सीमा निर्धारण को मानने को तैयार नहीं। यही वजह है कि मेघालय और नागालैंड के साथ असम का सीमा विवाद हिंसक रूप लेता रहा है। मोदी सरकार ने पूर्वोत्तर के विकास के लिए काफी कुछ किया है और विकास ​दिखाई भी दे रहा है। पूर्वोत्तर का शेष भारत से सम्पर्क भी पहले से अधिक बढ़ा है। पूर्वोत्तर से भी प्रतिभाएं देशभर में छा रही हैं। अच्छे शिक्षक, अच्छे गायक, अच्छे संगीतकार और दक्ष कम्प्यूटर विशेषज्ञ सामने आ रहे हैं परंतु जब तक अवैध बंगलादेशियों का मुद्दा गम्भीरता से हल नहीं किया जाता तब तक हिंसा होती रहेगी। सीमाओं के ​लिए राज्य सरकारें लड़ती रही हैं और अपनी जमीन के लिए लड़ने का अधिकार सबको है मगर लोग आपस में क्यों लड़ें। इसलिए सरकार को सभी पक्षों से बातचीत कर एक स्थाई समाधान की तलाश करनी चाहिए। राज्यों में सीमा को लेकर अक्सर होने वाली हिंसा उग्रवाद और पिछड़ेपन के लिए पहले से ही कुख्यात पूर्वोत्तर के इलाकों में ​विकास में सबसे बड़ी बाधा बनती जा रही है। शांति बहाली के ​लिए इस समस्या का शीघ्र निपटारा जरूरी है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com
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