भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का पिछले साल आज के दिन यानि 16 अगस्त 2018 को निधन हो गया था। वाजपेयी के निधन से भारतीय राजनीति की उस यशस्वी आवाज का अध्याय सप्तात हो गया जिसने पहली बार देश में किसी गैर कांग्रेसी पीएम के रूप में अपना कार्यकाल पूरा किया था।
लेकिन आज हम आपको अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के पीएम पद पर रहते हुए की गईकुछ ऐसी घटनाएं और कई ऐसे फैसले के बारे में बताने जा रहे हैं जो हमेशा हम सभी के जहन में जिंदा रहेंगे।
पोखरण 2 का दिखाया दम
पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी के नेतृत्व में भारत ने 1998 में अपना दूसरा परमाणु परीक्षण कर न सिर्फ दुनिया को हैरान कर दिया बल्कि अमेरिका प्रतिबंधों को भी धता बताया। इसके बाद कहीं जाकर विदेश मंत्री जसवंत सिंह और अमेरिकी डेप्युटी स्टेट सेक्रटरी के बीच चल रही बातचीत ने भारत-अमेरिका संबंधों का नया अध्याय खोला। इसके बाद अटल सरकार ने अमेरिका को सहज सहयोगी बताया और हाईटेक समझौतों की शुरूआत की जिसने साल 2005 में भारत-अमेरिका नाभिकीय समझौते का रूप लिया था।
बस में बैठ पहुंचे लाहौर
पहली बार अटल बिहारी वाजपेयी ने बस में यात्रा की थी। लाहौर के मिनार-ए-पाकिस्तान में वाजपेयी ने विजिटर्स बुक में लिखा था कि भारत चाहता है कि पाकिस्तान संप्रभु और खुशहाल राज्य बन सके। ऐसा पहली दफा था जब किसी भारतीय नेता ने खुद पाक की संप्रभुता पर दबाव दिया। यह इसलिए भी खास था क्योंकि राष्टï्रीय स्वयंसेवक संघ हमेशा अखंड भारत की बात करता है।
करगिल में दिखाई ताकत
करगिल युद्घ में भारत ने अपने नाम जीत दर्ज की थी। वहीं अटल सरकार ने करगिल शहीदों के लिए मुआवजे की घोषणा की थी। इसके साथ ही उन्होंने शहीद सैनिकों के अंतिम संस्कार को सार्वजनिक तौर पर करने का निर्णय लिया था। फिर इन सारी चीजों का अंतर्राष्ट्रीय दबाव बना। पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने पाक के पीए प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को समन किया और उन्हें सेना हटाने के लिए बोला गया। बाद में इस्लामाबाद की अपनी 6 घंटे की यात्रा के दौरान क्लिंटन का एक कथन बहुत फेमस हो गया। तब क्लिंटन ने बोला था कि सीमा रेखा को खून से दोबारा नहीं खींचा जा सकता है।
IC-814 हाइजैक
काठमांडु से हाइजैक कर कंधार ले जाए जाने पर इस विमान से यात्रियों की सलामती के लिए वाजपेयी सरकार ने आतंकी मौलाना मसूद अजहर और ओमर सईद शेख को रिहा किया। इसके बाद आतंकी मसूद अजहर ने पाकिस्तान में आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद बनाया।
आगरा शिखर वार्ता
वायपेयी ने नाभिकीय हथियारों में कटौती ,कश्मीर विवाद और सीमा पार आतंकवाद पर बातचीत करने के लिए वह मुशर्रफ से दो दिन के लिए आगरा में मिलने के लिए पहुंचे। हालांकि यह बातचीत कुछ सफल नहीं हो सकी। क्योंकि मुशर्रफ ने भारतीय संपादकों से बातचीत करते हुए कहा कि कश्मीर अकेला मुद्दा है। भारत ने ड्राफ्ट अग्रीमेंट को रद्द कर दिया।
2 बार बने युद्ध के हालात
लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद के 5 आतंकियों ने संसद को थर्रा दिया। भारतीय संसद पर हुए इस हमले में आतंकियों समेत पूरे 12 लोगों की मौत भी हुई। तब वाजपेयी सरकार ने इस हमले की कड़ी प्रतिक्रिया देने का निर्णय लिया और तब सीमा पर 5 लाख से ज्यादा सैनिकों को खड़ा कर दिया। इतना ही नहीं फाइटर विमान और नेवी के जहाज कड़ा संदेश देने के लिए तैयार कर दिए गए। फिर करीब 6 महीने तक सीमा पर तनाव की स्थिति भी रही और एक्सपट्र्स का मानना है कि दोनों देश दो बार युद्घ के काफी पास तक पहुंचे। लेकिन बाद में अमेरिका के हस्तक्षेप के बाद मुशर्रफ ने बयान जारी किया तब जाकर सीमा पर से सैनिक हटाए गए।
कहा- राजधर्म का पालन हो
गुजरात दंगों के वक्त राज्य मशीनरी पर ऐंटी मुस्लिम हिंसा में साथी होने के आरोप भी लगे थे। ऐसे में फिर मोदी सरकार की निंदा करने में हिचकिचाहट को लेकर वाजपेयी की आलोचना की गई। फिर अहमदाबाद में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के वक्त पीडि़तों के पुनर्वास की घोषणा करते हुए वाजपेयी ने बोला कि मोदी को राजधर्म का पालन करना चाहिए।
किया गया शांति का एक और प्रयास
वाजपेयी और मुशर्रफ की इस्लामाबाद में सार्क सम्मेलन में मुलाकात हुई। उस वक्त पहली बार मुशर्रफ ने आधिकारियों से माना कि आतंकियों को भारत के खिलाफ पाकिस्तान की जमीन का प्रयोग नहीं करने दिया जाएगा। इस तरह से भारत और पाक के बीच कंपोजिट डायलॉग चालू हुआ।