औरंगजेब भारत के सन्दर्भ में
मुगल शासक औरंगजेब को लेकर पूरे देश में जो बहस छिड़ी हुई है उसकी आज के भारत में…
मुगल शासक औरंगजेब को लेकर पूरे देश में जो बहस छिड़ी हुई है उसकी आज के भारत में हकीकत यह है कि औरंगजेब को कोई भी भारतीय नागरिक सहृदयी बादशाह नहीं मानता है। यह एेतिहासिक तथ्य है कि वह एक निष्ठुर, क्रूर और जुल्मी राजा था। इसके साथ यह भी तथ्य है कि उसके दरबार में सभी मुगल बादशाहों की अपेक्षा सर्वाधिक हिन्दू थे जिनकी मदद से वह पूरे देश में अपना शासन चलाता था। उसे मुम्बई के समाजवादी पार्टी के नेता अबू आजमी द्वारा ‘रहमतुल्ला अलै’ कहना भारत के नागरिकों को ठेस पहुंचाने की तर्ज पर ही देखा जायेगा। अबू आजमी ने औरंगजेब को एक अच्छा राजा बताया और शिवाजी महाराज के साथ उसके युद्ध को दो राजाओं की आपसी लड़ाई बताया जिसमें औरंगजेब द्वारा अपने साम्राज्य का विस्तार करना प्रमुख था। निश्चित रूप से यह एक कारण था मगर औरंगजेब ने शिवाजी के पुत्र छत्रपति संभा जी महाराज के साथ जैसा व्यवहार किया वह उसकी क्रूरता का नमूना था जिससे उसे रहमतुल्ला अलै कहना अनुचित है। हालांकि अबू आजमी ने अपने बयान पर माफी मांग ली है और खेद प्रकट कर दिया है मगर इससे उनकी संकीर्ण मानसिकता का पता चलता है।
इतिहासकार डाॅ. यदुनाथ सरकार ने औरंगजेब के चरित्र के बारे में सम्पूर्णता के साथ लिखा है और उसके चरित्र के दो चेहरे प्रकट किये हैं। वर्तमान सन्दर्भों में यदि हम भारत के इतिहास को देखें तो औरंगजेब क्या था और कैसा था इसका कोई महत्व नहीं है क्योंकि आज हम प्रजातन्त्र में रहते हैं जिसका मालिक सामान्य नागरिक ही होता है और इसी वजह से यह गणतन्त्र कहलाता है। औरंगजेब को कुछ इतिहासकारों ने आततायी राजा भी कहा है जिसने हिन्दुओं के मन्दिरों को तुड़वाया। काशी विश्वनाथ मन्दिर व मथुरा का केशवदेव मन्दिर तो उसने बाकायदा शाही फरमान जारी करके तुड़वाया था। मगर यह भी हकीकत है कि उसने हिन्दुओं के कुछ मन्दिरों को दान आदि भी दिया जिसका प्रमाण चित्रकूट तीर्थ में उसके नाम का औरंगजेब मन्दिर है लेकिन उसने सिखों के गुरू तेग बहादुर जी को बहुत ही निर्ममता से मरवाया और उनके शिष्य भाई मतीदास व सतीदास की क्रूरता के साथ हत्या करने के आदेश जारी किये।
सिखों के ही दसवें गुरू गोविन्द सिंह जी महाराज के चार साहबजादों की हत्या करवाई लेकिन देहरादून के निकट सिखों को ही गुरूद्वारा बनाने के लिए जमीन का आवंटन किया। इतना ही नहीं उसने अपने मराठा सरदार आपा गंगाधर द्वारा दक्षिण के विजय अभियान के बाद दिल्ली के चांदनी चौक में गौरीशंकर मन्दिर बनाने की इजाजत भी दी। इस मन्दिर के सिंह द्वार पर इसके अस्तित्व में आने का वर्णन पिछले दशक तक एक शिलापट्ट पर लिखा हुआ मिलता था जिसे अब हटा दिया गया है। मगर इससे उसकी क्रूरता के नमूने हल्के नहीं पड़ जाते हैं। बेशक औरंगजेब का साम्राज्य उससे पिछले मुगल बादशाहों के मुकाबले सबसे बड़ा था मगर साम्राज्य का विस्तार करने के फेर में उसका शाही खजाना खाली भी हो गया था जिससे उसके बाद के मुगल शासकों का शासन बहुत ढीला होता चला गया। औरंगजेब की मृत्यु 1707 में हुई मगर अंग्रेजों ने उसके शासन के दौरान ही मुम्बई में एक कपड़ा मिल स्थापित कर दी थी। 1756 में पलाशी का एेतिहासिक युद्ध हुआ जिसमें अंग्रेजों ने मुगल सल्तनत से अलग हुई बंगाल की रियासत के नवाब सिरोजुद्दौला को छल से हराया था। इस युद्ध के बाद अंग्रेजों के सिपहसालार लार्ड क्लाइव ने बंगाल की पूरी रियासत की राजस्व उगाही में रुपये में इकन्नी (आज के 100 पैसे में से छह पैसे) वसूलने का अधिकार लिया और बाद में अंग्रेजों ने बंगाल की गद्दी पर कठपुतली नवाबों को बैठाकर सम्पूर्ण राजस्व लेने के अख्तियार लिये।
यह हकीकत है कि 1756 में भारत का विश्व व्यापार में हिस्सा 24 प्रतिशत के लगभग था। मगर जब 1947 में अंग्रेज भारत छोड़कर ब्रिटेन गये तो भारत का यह हिस्सा घटकर केवल एक प्रतिशत रह गया था। इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि भारत के सभी हिन्दू-मुसलमानों के लिए अंग्रेज ही सबसे बड़े शोषक थे, जिन्होंने भारत को कंगाल बना दिया। इसी वजह से आजादी मिलने से कुछ समय पहले ही पं. जवाहर लाल नेहरू ने लन्दन से प्रकाशित होने वाले एक अंग्रेजी अखबार में लेख लिखकर घोषणा की थी कि भारत कभी भी गरीब मुल्क नहीं रहा। मगर औरंगजेब की कट्टरपंथी नीतियों की वजह से भारत की जड़ें हिल गईं जिसके परिणामस्वरूप औरंगजेब के बाद मुगल साम्राज्य ताश के पत्तों की तरह बिखरने लगा। इसके बाद जितने भी मुगल शासक 1857 तक हुए वे सभी धीरे-धीरे अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कम्पनी के हाथ का खिलौना बनते रहे। मगर यह भी सनद रहना चाहिए कि पूरे विश्व में भारत ही अकेला एेसा देश है जो लगातार आठ सौ वर्ष तक मुसलमानों की सत्ता के नीचे रहने के बावजूद इस्लामी राष्ट्र नहीं बन पाया जबकि दुनिया के अन्य किसी देश में एेसा नहीं हो पाया। इसकी असली वजह यह थी कि मुगलों ने भारत के बहुसंख्यक हिन्दू समाज के उच्च वर्गों को अपने साथ रखा और देश पर राज किया। मगर औरंगजेब ने भी शासन चलाने के लिए तो एेसा ही किया मगर वह कट्टर मजहबी बना रहा और इस्लाम के सुन्नी सम्प्रदाय के पैरोकार के रूप में उसने हुकूमत चलाई। इसी वजह से उसने शिया मुसलमानों के ताजियों के जुलूस पर प्रतिबन्ध लगा दिया था। मगर उसने होली के त्यौहार पर भी प्रतिबन्ध लगाया था और 1689 के लगभग हिन्दुओं पर फिर से जजिया टैक्स लगाने का भी प्रयास किया था मगर ब्राह्मणों को इससे छूट दे दी थी।
वर्तमान समय टैक्नोलॉजी और विज्ञान का है। इस दौर में इतिहास की कब्रें खोदने से क्या हासिल हो सकता है जबकि हम अपने सामने पाकिस्तान का हश्र देख रहे हैं। औरंगजेब ने अपने पिता को ही दस वर्ष तक कैद में रखा और हुकूमत अपने तीन भाइयों का सर कलम करके हासिल की लेकिन अबू आजमी जैसे समाजवादी व्यक्ति को यह पता होना चाहिए कि शिवाजी महाराज को इतिहास की धूल से बाहर निकालने का श्रेय समाजवादी चिन्तक डाॅ. राम मनोहर लोहिया को ही जाता है जिन्होंने 1932 में जर्मनी से लौटने के बाद जब भारत की राजनीति में पदार्पण किया तो पाया कि शिवाजी महाराज अंग्रेजों द्वारा छापी जाने वाली पुस्तकों में एक छापामार लुटेरे के रूप में स्थापित किये जा रहे थे जबकि डा. लोहिया ने लिखा कि वह मध्ययुगीन इतिहास के पहले स्वराज्य स्थापित करने वाले आम जनता के राजा थे जिन्होंने खेतीहर लोगों को संगठित करके अपनी सेना बनाई थी। अगर अबू आजमी को यह जानकारी ही नहीं है तो उन्हें समाजवादी क्यों कहा जाये ?