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Australian scientists ने इजात की नई तकनीक, अब जन्म से पहले बच्चे की हर सेल्स हो सकेगी ट्रेक

07:05 PM Jun 25, 2025 IST | Amit Kumar
australian scientists ने इजात की नई तकनीक  अब जन्म से पहले बच्चे की हर सेल्स हो सकेगी ट्रेक
Australian scientists:

Australian scientists: ऑस्ट्रेलिया के वैज्ञानिकों ने भ्रूण विकास को समझने के लिए एक नई तकनीक विकसित की है, जिसकी मदद से भ्रूण के भीतर मौजूद हर एक कोशिका को ट्रैक किया जा सकता है. यह तकनीक वैज्ञानिकों के लिए एक बड़ी उपलब्धि मानी जा रही है, क्योंकि इसके जरिये वे अब यह जान सकते हैं कि भ्रूण की कौन-सी कोशिकाएं किस दिशा में विकसित होती हैं और कौन-से अंग बनाती हैं.

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, यह नई तकनीक "लॉक्सकोड" नाम से जानी जा रही है. यह तकनीक जेनेटिक तरीके से मॉडिफाई चूहों की हर कोशिका को एक अनोखा डीएनए बारकोड प्रदान करती है. इस बारकोड के ज़रिये यह पता लगाया जा सकता है कि कोई कोशिका कितनी बार विभाजित हुई, वह शरीर के किस हिस्से में गई, और वह किस प्रकार की संरचना या कार्य में परिवर्तित हुई.

तकनीकी क्षमताएं और विशेषताएं

मेलबर्न के वाल्टर और एलिजा हॉल इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल रिसर्च (WEHI) द्वारा विकसित इस तकनीक की सबसे खास बात यह है कि यह लगभग 30 अरब (30 बिलियन) अलग-अलग डीएनए बारकोड बनाने में सक्षम है. यह क्षमता इसे अब तक की अन्य सभी तकनीकों की तुलना में कहीं अधिक सटीक और प्रभावशाली बनाती है.

कोशिकाओं का बनना

शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन में यह भी पाया कि गर्भधारण के शुरुआती दिनों में ही कुछ कोशिकाएं यह तय कर लेती हैं कि वे शरीर के किस अंग का हिस्सा बनेंगी, जैसे मस्तिष्क, रक्त, या अन्य अंग. वहीं कुछ कोशिकाएं ऐसी भी होती हैं जो किसी भी अंग में बदलने की क्षमता रखती हैं. यह जानकारी भ्रूण के विकास और जन्म से जुड़ी बीमारियों को समझने के लिए बेहद महत्वपूर्ण है.

प्रोफेसर शालिन नाइक, जो इस शोध का नेतृत्व कर रहे थे, ने बताया कि लॉक्सकोड तकनीक को अब वैश्विक स्तर पर अपनाया जा रहा है. इसका उपयोग मस्तिष्क के विकास, इम्यून सिस्टम और अंगों की उत्पत्ति को समझने के लिए हो रहा है. उन्होंने यह भी कहा कि यह तकनीक जीवविज्ञान के क्षेत्र में नई रिसर्च के द्वार खोल रही है.

भविष्य की संभावनाएं

यह तकनीक केवल भ्रूण विकास को समझने तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके जरिए से जन्मजात रोगों के कारणों को पहचाना जा सकेगा और उनके इलाज के लिए नई संभावनाएं खुलेंगी. वैज्ञानिक उम्मीद कर रहे हैं कि आने वाले समय में यह तकनीक पर्सनल थेरेपी और जेनेटिक रोगों की रोकथाम में भी अहम भूमिका निभाएगी.

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