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नेपाल में जनादेश का इंतजार

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12:06 AM Nov 29, 2017 IST | Desk Team

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नेपाल में लम्बी जद्दोजहद के बाद राजशाही की विदाई हुई थी। लोगों को याद ही होगा कि कभी हिन्दू राष्ट्र नेपाल में राजा को हिन्दू देवी-देवताओं की तरह पूजा जाता था। राजा को विष्णु का अवतार समझा जाता था और उनके दर्शन करने के लिए आम लोगों की वैसे ही लम्बी-लम्बी कतारें लगती थीं जैसे किसी मान्यता वाले देवी-देवताओं के मन्दिर में लगती हैं लेकिन समय ने करवट ली। नेपाल की राजशाही अतीत का हिस्सा बन गई। दुनिया के नक्शे से एकमात्र हिन्दू राजवंश का इतिहास किस्से-कहानियों का हिस्सा बन गया। 28 मई 2008 में नेपाल के इतिहास के एक युग का अंत हो चुका। यद्यपि भारतीयों के एक बड़े वर्ग को दुनिया की एकमात्र हिन्दू राजशाही के अंत को लेकर थोड़ी पीड़ा जरूर रही लेकिन जनता का फैसला सर्वोपरि होता है। विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने के नाते भारत ने नेपाल में प्रजातंत्र का स्वागत किया। भारत के लिए इससे बड़ी खुशी और क्या होती कि पड़ोस के देश में आम जनता द्वारा चुने हुए लोगों की सरकार हो। नेपाल की जनता ने अपना पथ चुन लिया।

नेपाल की जनता ने प्रचंड पथ को चुना था यानी उसने कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के पक्ष में जनादेश दिया था। यह भी विडम्बना ही रही कि 2008 के बाद नेपाल में राजनीतिक स्थिरता रही ही नहीं। जबर्दस्त राजनीतिक उठापटक चली। नए लोकतांत्रिक नेपाल के नए संविधान के गठन के लिए पहली संविधान सभा बनाई गई। विभिन्न वर्गों के नागरिकों को प्रतिनिधित्व देने के मुद्दे पर जबर्दस्त खींचतान हुई और 5 वर्ष बाद यानी 2013 में दूसरी संविधान सभा का गठन किया गया। दूसरी संविधान सभा संविधान बनाने के लिए आम सहमति की बाट जोहती रही और साथ-साथ नेपाल का शासन-प्रशासन भी अस्त-व्यस्त होकर चलता रहा। अंतत: सितम्बर 2015 में नेपाल को नया संविधान मिला। नया संविधान भी जनाकांक्षाओं की कसौटी पर खरा नहीं उतरा। मधेशियों को दूसरे दर्जे का नागरिक माना गया जिसके विरोध में मधेशियों ने जबर्दस्त आंदोलन चलाया, हिंसा भी हुई। मधेशियों का भारत से रोटी-बेटी का रिश्ता है। मधेशियों की नाकेबंदी के कारण नेपाल और भारत के सम्बन्धों में टकराव का दौर भी चला। 2013 के बाद राजनीतिक अस्थिरता का ऐसा दौर चला कि पिछले 4 वर्षों में 4 सरकारें आईं। प्रधानमंत्री आते और चले जाते।

नेपाली कांग्रेस में सुशील कोइराला, शेर बहादुर देउबा, माओवादी गठबंधन के पुष्प दहल कमल उर्फ प्रचंड और के.पी. ओली के नेतृत्व में सरकारें बनीं। नेपाल में समानांतर मतदान प्रणाली व्यवस्था अपनाई गई है जिसमें लगभग 60 प्रतिशत उम्मीदवार, जो सर्वाधिक मत प्राप्त करते हैं, उन्हें विजयी घोषित किया जाता है और बाकी प्रत्याशी आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली से चुने जाते हैं। मतदान से तो चुनाव सहज और सरल है जबकि आनुपातिक प्रणाली काफी जटिल है। नेपाल में नया संविधान लागू होने के बाद पहली बार चुनाव हो रहा है। खास बात यह है कि नेपाल में संसदीय और एसेम्बली चुनाव एक साथ हो रहे हैं। पहले दौर के मतदान में 65 फीसदी से ज्यादा मतदान हुआ है। दूसरे दौर का मतदान 7 दिसम्बर को होना है। नेपाल छोटा सा देश है ऌपरंतु राजनीतिक दलों की भरमार है लेकिन मुख्य मुकाबला वाम मोर्चा और नेपाली कांग्रेस में है। वाम मोर्चे में सीपीएनयूएमएल और प्रचंड के नेतृत्व वाले पूर्व माओवादी शामिल हैं। चुनाव में भारत के साथ नेपाल के सम्बन्धों की चर्चा बहुत हुई है। वाम मोर्चा का एक बड़ा वर्ग चीन के पक्ष में ज्यादा सम्मान रखता है। उसका कहना है कि नेपाल में भूकम्प के बाद तराई में संविधान को लेकर विवाद हुआ, मधेशी राजनीतिक दल आगे आए और उन्होंने भारत-नेपाल सीमा पर अवरोध खड़े किए और भारत ने उसका समर्थन किया, वह अच्छा नहीं था।

वाम मोर्चा चुनावों में कह रहा है कि वह भारत से नए सिरे से सम्बन्ध बनाना चाहते हैं। दूसरी ओर नेपाली कांग्रेस ने भी कम्युनिस्ट गठबंधन का मुकाबला करने के लिए महत्वपूर्ण मधेशी दल राष्ट्रीय जनता पार्टी नेपाल से कुछ सीटों पर गठबंधन किया है वहीं उसने कुछ सीटों पर हिन्दू समर्थक राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी के साथ गठजोड़ किया है। दोनों गठबंधनों में काफी कड़ी टक्कर है। नेपाल के लोगों को इन चुनावों से बहुत उम्मीद है कि इससे देश में राजनीतिक स्थिरता आएगी। सरकार और उसकी नीतियां स्थिर होंगी और उनके लिए कामकाज करना आसान हो जाएगा। नेपाल का लोकतांत्रिक ढांचा धीरे-धीरे ही सही पर स्थिरता की ओर बढ़ रहा है। अभी तक नेपाल में गठबंधन सरकारें रही हैं और किसी ने भी 5 वर्ष का कार्यकाल पूरा नहीं किया है। लोगों की इच्छा राजनीतिक स्थिरता है। अब देखना है नेपाल की जनता किस तरह का जनादेश देती है। भारत की नजर भी नेपाल की तरफ लगी हुई है। पिछले कुछ वर्षों से चीन का प्रभाव वहां बढ़ा है। उसकी चाहत तो यही होगी कि नेपाल में ऐसी सरकार बने जो उसके हितों का ध्यान रखे। भारत की इच्छा है कि नेपाल में ऐसी सरकार आए जो उसके हितों का ख्याल रखे। नेपाल भारत की तरफ आएगा या चीन की तरफ, यह देखना होगा।

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