Axiom-4 Mission: अंतरिक्ष में एक बार फिर लहराया तिरंगा, सफल हुई शुभांशु शुक्ला की स्पेस यात्रा
Axiom-4 Mission: एक बार फिर अंतरिक्ष में भारतीय तिरंगा लहर चुका है. भारतीय अंतरिक्ष यात्री ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला एक्सिओम-4 (Ax-4) मिशन को सफलतापूर्वक हासिल कर लिया है. इस मिशन के तहत शुभांशु स्पेसएक्स के ड्रैगन कैप्सूल के साथ अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) तक पहुंच चुके हैं. वो अब 14 दिन स्पेस में रहेंगे. उनका यान निर्धारित समय से करीब 20 मिनट पहले ISS से सफलतापूर्वक जुड़ा.
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, इस ड्रैगन कैप्सूल की डॉकिंग के बाद, सुरक्षा जांच के लिए 1-2 घंटे का समय लिया जाएगा. इस जांच में यह पता किया जाएगा कि यान और स्टेशन के बीच कोई वायु रिसाव या दबाव तो नहीं हैं. इन प्रक्रियाओं के पूरा होने के बाद ही अंतरिक्ष यात्री अंतरिक्ष स्टेशन में प्रवेश कर सकेंगे.
यान ने 26 घंटे की अंतरिक्ष यात्रा
ड्रैगन कैप्सूल पृथ्वी से लगभग 418 किलोमीटर की ऊंचाई पर, 28,000 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से परिक्रमा कर रहा है. लॉन्च के बाद से यह यान करीब 26 घंटे की अंतरिक्ष यात्रा तय कर चुका है. इस दौरान, यान ने कई कक्षीय परिवर्तन (orbital maneuvers) किए ताकि वह ISS की कक्षा से सटीकता से मेल खा सके.
डॉकिंग की चार चरणों में प्रक्रिया
1. रेंडेजवू (Rendezvous)
लॉन्च के बाद, यान के इंजन को लगभग 90 सेकंड तक जलाया गया ताकि उसकी स्पीड और दिशा में आवश्यक परिवर्तन किए जा सकें. भारतीय समय अनुसार दोपहर 2:33 बजे तक यह यान ISS से 7 किलोमीटर पीछे और 400 मीटर नीचे स्थित था. धीरे-धीरे यह दूरी घटती गई और यान 200 मीटर के भीतर पहुंच गया. इस चरण में स्पेसएक्स और नासा की ज़मीनी टीम लगातार सिस्टम की निगरानी करती रही.
2. नजदीकी पहुंच (Close Approach)
200 मीटर की दूरी पर पहुंचते ही ड्रैगन कैप्सूल और ISS के बीच प्रत्यक्ष संवाद शुरू हो जाता है. इस दौरान, कैप्सूल सुरक्षित पथ पर कई घंटे तक बना रह सकता है ताकि किसी भी खतरे से बचा जा सके.
3. अंतिम पास (Final Approach)
20 मीटर के पास आते ही, ड्रैगन यान अपने लेज़र सेंसर, कैमरे और जीपीएस सिस्टम के जरिए से ISS के हार्मनी मॉड्यूल के डॉकिंग पोर्ट से संरेखण (alignment) करता है. यह स्पीड बेहद कम, कुछ सेंटीमीटर प्रति सेकंड होती है ताकि पूरी प्रक्रिया सुरक्षित रहे. शुभांशु शुक्ला इस दौरान यान की स्पीड, स्थिति और सिस्टम जैसे एवियोनिक्स और प्रणोदन (propulsion) की बारीकी से निगरानी करते हैं.
4. सॉफ्ट और हार्ड कैप्चर
सॉफ्ट कैप्चर: यान को डॉकिंग पोर्ट की ओर खींचने के लिए मैग्नेटिक ग्रिपर का प्रयोग होता है.
हार्ड कैप्चर: इसके बाद यांत्रिक हुक और लैच यान को मजबूती से पोर्ट से जोड़ते हैं और एक एयरटाइट सील बनती है.
इन दोनों कैप्चर प्रक्रियाओं के बाद यान और स्टेशन के बीच सीमाओं पर दबाव और हवा के रिसाव की 1-2 घंटे की जांच होती है. जब सब कुछ सुरक्षित पाया जाता है, तब क्रू सदस्य अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) के अंदर प्रवेश करते हैं.
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