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सिख इतिहास में बाबा बुड्ढा जी का विशेष स्थान

सिख इतिहास में बाबा बुड्ढा जी का विशेष स्थान है। करीब 13 वर्ष की आयु में उन्होंने श्री गुरु नानक देव जी के दर्शन किए थे

09:36 AM Oct 23, 2024 IST | Editorial

सिख इतिहास में बाबा बुड्ढा जी का विशेष स्थान है। करीब 13 वर्ष की आयु में उन्होंने श्री गुरु नानक देव जी के दर्शन किए थे

सिख इतिहास में बाबा बुड्ढा जी का विशेष स्थान है। करीब 13 वर्ष की आयु में उन्होंने श्री गुरु नानक देव जी के दर्शन किए थे। गुरु नानक देव जी ने बाल अवस्था में उन्हंेे देखा तो वह काफी प्रभावित हुए उस समय उनका नाम बूरा था। एक दिन उन्होंने गुरु नानक देव जी से विचार करते हुए कई प्रश्न पूछे जिसे देख गुरु नानक देव जी ने कहा कि बूरा ऐसे प्रश्न तो कोई बुड्ढा ही कर सकता है। तब से उन्हंे बाबा बुड्ढा जी कहा जाने लगा। गुरु नानक देव जी लेकर गुरु हरिगोबिन्द साहिब जी तक का आशीर्वाद प्राप्त करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। 5 गुरु साहिबान कोे गद्दी पर बैठने से पूर्व तिलक उनके द्वारा किया गया। पांचवे सिख गुरु अर्जुन देव जी ने श्री हरिमन्दिर साहिब में गुरु ग्रन्थ साहिब का पावन सरुप स्थापित किया तो पहले हैड ग्रन्थी की सेवा बाबा बुड्ढा जी को सौंपी। गुरु अमरदास के निर्देशन में गोइंदवाल में बावली की खुदाई, गुरु रामदास और गुरु अर्जन के अधीन अमृतसर में पवित्र सरोवर की खुदाई जैसे कार्यों में खुद को पूरी लगन से समर्पित किया। वह बेरी का पेड़ जिसके नीचे बैठकर बाबा बुड्ढा जी सरोवर की खुदाई की निगरानी करते थे, आज भी श्री दरबार साहिब परिसर में मौजूद है।

पंचम पातशाह श्री गुरु अर्जुन देव जी के घर जब संतान नहीं हो रही थी तो उनकी धर्म पत्नी माता गंगा जी बाबा बुड्ढा साहिब जी से आशीर्वाद लेने लिए गुरुद्वारा बीड़ साहिब पहुंची, परंतु बाबा बुड्ढा जी ने यह कहते उनको वापस भेज दिया कि मैं तो गुरुओं का दास हूं। आशीर्वाद देने की क्षमता तो स्वयं गुरु जी में होती है। इस बात का पता जब श्री गुरु अर्जुन देव जी को लगा तो उन्होंने समझाया कि आप एक साधारण स्त्री के रूप में सादा भोजन लेकर जाएं जिसके पश्चात माताजी मिस्सी रोटी, प्याज व लस्सी लेकर नंगे पांव सेवक की भांति बाबा बुड्ढा जी के पास पहुंची तो उस समय बाबा बुड्ढा जी ने वरदान देते हुए कहा कि आप जी के घर में बहादुर संतान पैदा होगी। बाबा बुड्ढा जी के इस आशीर्वाद से श्री गुरु हरगोबिद साहिब जी का जन्म हुआ था। आज भी जहां जहां पर बाबा बुड्ढा जी के गुरुद्वारा साहिब हैं वहां जाकर लोग अपने घर में संतान के लिए अरदास करते हैं और उनकी अरदास पूरी भी होती है। दिल्ली के सुभाष नगर में भी बाबा बुड्ढा जी की याद मंे गुरुद्वारा साहिब सुशोभित है जिसकी सेवा बलदेव सिंह वीरजी व उनकी टीम के द्वारा निभाई जा रही है और दूर दराज से संगत यहां आकर अरदास करती है। हाल ही में माता गंगा जी के नाम से लंगर हाल का निर्माण करवाया गया। एक महान नगर कीर्तन भी बाबा बुड्ढा जी के जन्मदिवस को समर्पित होकर निकाला गया।

सिख कौम के जत्थेदारों का किरदार

सिख कौम में जत्थेदार की पदवी बहुत ही सम्मानित मानी जाती है खासकर श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार की जिनके आदेश पर समूचा सिख पंथ एकजुट होकर नतमस्तक होता है। इतिहास की अगर बात करें तो अकाली बाबा फूला सिहं से लेकर भाई रणजीत सिंह सहित अनेक ऐसी श​िख्सयतें तख्त पर सेवा निभा चुकी हैं जिनका आदेश मानते हुए महाराजा रणजीत सिंह जैसे राजाओं ने भी मिली सजा को स्वीकार किया। वर्णन योग्य है कि श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार सहित श्री केसगढ़ साहिब और श्री दमदमा साहिब के जत्थेदार की नियुक्ति और सेवामुक्ति शिरोमणी गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी के द्वारा की जाती है और जब से शिरोमणी गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी बादल परिवार के अधीन कार्यरत हुई और जत्थेदारों की नियुक्ति काबलियत के आधार पर ना होकर लिफाफों में से जत्थेदार बनाए जाने लगे, तब से इस पदवी के सम्मान में निरन्तर गिरावट देखने को मिली है। वास्तव में जत्थेदारों की नियुक्ति के लिए उम्मीदवार का चयन धार्मिक जत्थेबं​िदयों और श​िख्सयतों द्वारा करके शिरोमणी कमेटी के पास मुहर के लिए भेजा जाना चाहिए। बीते समय में सिंह साहिब ज्ञानी हरप्रीत सिंह के द्वारा सिख कौम के हक में कई अहम फैसले लिए गये जिससे संसार भर मंे उनकी वाहवाही हुई जो शायद बादल परिवार को नहीं भाई और उनके स्थान पर नए जत्थेदार के तौर पर सिंह साहिब ज्ञानी रघुबीर सिंह को नियुक्ति कर दिया गया। हालांकि ज्ञानी रघुबीर सिंह भी एक काबिल और सूझवान व्यक्तित्व के मालिक हैं। मौजूदा समय में सुखबीर सिंह बादल को तनखैया करार दिये जाने के बाद से उनके समर्थकों के द्वारा जत्थेदार साहिबान पर तरह-तरह के दबाव बनाए जा रहे हैं। ज्ञानी हरप्रीत सिंह के पारिवारिक सदस्यों पर विरसा सिंह वल्टोहा द्वारा जिस प्रकार तंजंकसी की गई उससे समूचे सिख पंथ का सिर शर्म से झुक जाता है। सिख तो दूसरों की बहू बेटियों की भी इज्जत की रक्षा करते हैं मगर ऐसे लोगों के रहते तो जत्थेदार साहिब का परिवार भी सुरक्षित नहीं है तो आम सिख का क्या हाल हो सकता है सोचने योग्य है। इसके बाद हालांकि जत्थेदार साहिबान ने वल्टोहा को पार्टी से निकालने का आदेश जारी किया मगर उस पर भी अकाली नेताओं में मतभेद साफ निकल कर सामने आए। चाहिए तो यह था कि जत्थेदार साहिबान वल्टोहा को श्री अकाल तख्त साहिब से ही कोई ऐसी सख्त सजा देते जिसके बाद भविष्य में कोई ऐसी हरकत करने से पहले कई बार सोचता मगर नहीं क्योंकि उन्हें अपनी जत्थेदारी की कुर्सी खतरे में पड़ने का डर सता रहा होगा। जब तक जत्थेदार की पदवी पर बैठने वाले स्वयं के बजाए कौम के उज्जवल भविष्य की नहीं सोचते ऐसी समस्याएं आती रहंेगी। आज हालात ऐसे बन चुके हैं कई जत्थेदार धार्मिक के साथ राजनीतिक गतिविधियों में भी हिस्सा लेने लगे हैं जिसके चलते सरकारी सुरक्षा पाने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार रहते हैं।

अकाली दल की मुश्किलें कम होने वाली नहीं

शिरोम​िण अकाली दल की मुश्किलें कम होती दिखाई नहीं दे रही एक ओर पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष तनखैया हैं तो दूसरी ओर शिरोम​िण गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी और 4 विधान सभा उपचुनाव की तारीख सिर पर आन पड़ी है ऐसे में पार्टी के सामने बड़ी चुनौती है जिसे लेकर कौर कमेटी की बैठक भी कार्यकारी अध्यक्ष बलविन्दर सिंह भुन्दड़ द्वारा बुलाई गई जिसमें अन्य मसलों पर भी विचार हुआ। हालांकि मीटिंग में किसी व्यक्ति का नाम सामने ना निकल कर आने से यह तय है कि इस बार भी प्रधान का ऐलान लिफाफे के द्वारा ही किया जायेगा। असल में सुखबीर सिंह बादल का प्रधानगी की कुर्सी ना छोड़ने का खामियाजा पार्टी को भुगतना पड़ रहा है। चाहिए तो यह था कि उन्हंे कुछ समय तक जब तक वह सभी आरोपों से मुुक्त नहीं हो जाते पार्टी की कमान किसी और को सौंप देनी चाहिए थी मगर नहीं उन्होंने भुन्दड़ को कार्यकारी अध्यक्ष बना दिया ताकि जब चाहे उसे हटाकर वापिस कमान संभाली जा सके। बलविन्दर सिंह भुन्दड़ जो कभी कोई चुनाव नहीं जीते, दिल्ली में प्रभारी रहते पार्टी को जितना नुकसान उन्होंने पहुंचाया किसी से छिपा नहीं है। वहीं बीबी जागीर कौर जो कि पंथक सुधार लहर की ओर से हालांकि प्रधानगी का चुनाव लड़ने जा रही हैं मगर उन्हें शिरोमणी अकाली दल के भी कई सदस्यों के वोट मिल सकते हैं जो कि पार्टी प्रधान की नीतियों और कारगुजारी से असंतुष्ट हैं। इसके साथ ही भाजपा, आम आदमी पार्टी सहित, कांग्रेस जैसी राजनीतिक पार्टियां भी अकाली दल को कमजोर करने के चलते बीबी जागीर कौर का समर्थन करती दिख रही हैं हालांकि राजनीतिक पार्टियों की कारगुजारी का कोई ज्यादा असर चुनाव पर नहीं पड़ने वाला। वहीं अकाली नेता विक्रम सिंह मजीठिया ने सामने आकर जिस प्रकार भाजपा और आप पर निशाना साधा है उससे संकेत इस बात के भी मिल रहे हैं कि अगर सुखबीर सिंह बादल को जल्द ही कोई राहत श्री अकाल तख्त साहिब से नहीं मिलती तो भुन्दड़ को साईड कर मजीठिया अकाली दल की कमान संभाल सकत हैं। बीबी जागीर कौर प्रधान का चुनाव भले ही ना जीत पाएं मगर उन्होंने अकाली नेताओं खासकर बादल परिवार की रातों की नींद जरुर उड़ा दी है।

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