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कचरा बनी बागमती, मानी जाती है नेपाल की सबसे पवित्र नदी

हर देश की नदियों के सामने सबसे बड़ी चुनौति है कचरा। कचरा नदियों को विशुद्ध बना रहा है। हिमालय की ऊंची पर्वत चोटी से बहने वाली बागमती नदी को लेकर नेपाल में यह मान्यता रही है कि इसके जल में तन-मन शुद्ध करने की शक्ति है।

02:06 PM Aug 17, 2022 IST | Desk Team

हर देश की नदियों के सामने सबसे बड़ी चुनौति है कचरा। कचरा नदियों को विशुद्ध बना रहा है। हिमालय की ऊंची पर्वत चोटी से बहने वाली बागमती नदी को लेकर नेपाल में यह मान्यता रही है कि इसके जल में तन-मन शुद्ध करने की शक्ति है।

कचरा बनी बागमती  मानी जाती है नेपाल की सबसे पवित्र नदी
हर देश की नदियों के सामने सबसे बड़ी चुनौति है कचरा। कचरा नदियों को विशुद्ध बना रहा है। हिमालय की ऊंची पर्वत चोटी से बहने वाली बागमती नदी को लेकर नेपाल में यह मान्यता रही है कि इसके जल में तन-मन शुद्ध करने की शक्ति है। वहां से यह हरे-भरे जंगलों से होते हुए नीचे उतरती है और इसमें अन्य नदियां समाहित हो जाती हैं।
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साफ पानी काला पड़ जाता है 
यह धान, सब्जियों और अन्य फसलों के खेतों की सिंचाई के लिये एक अहम स्रोत है जो बहुत से नेपाली लोगों के लिये आजीविका का साधन है। लेकिन जैसे ही बागमती राजधानी काठमांडू की घाटी में पहुंचती है, उसका साफ पानी पहले मटमैला और फिर काला होता जाता है।
पीने योग्य नहीं बचा पानी 
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मलबे व कचरे की वजह से इसका प्रवाह भी अवरुद्ध होता है। इसका पानी पीने योग्य नहीं रह गया है और यहां तक कि साफ-सफाई के उपयोग लायक भी नहीं है। सूखे के मौसम के दौरान, इसके तटीय इलाकों के पास भीषण बदबू आती रहती है। नदी में सीधे गिराए जाने वाले कचरे और अशोधित अवजल से देश में सबसे पवित्र नदी का दर्जा रखने वाली बागमती अब सबसे प्रदूषित हो चुकी है।
नदी में डुबकी लगाती हैं महिलाएं 
राजधानी काठमांडू में बागमती का गंदा पानी पशुपतिनाथ मंदिर सहित कई पवित्र स्थलों से होकर गुजरता है। पशुपतिनाथ मंदिर को 1979 में यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया था। हिंदू इन मंदिरों में पूजा करने और त्योहार मनाने के लिए काठमांडू में नदी के किनारे आते हैं। सप्तर्षियों की पूजा के लिए ऋषिपंचमी के दौरान ‘आत्मशुद्धि’ के लिए महिलाएं नदी में डुबकी लगाती हैं।
नदी के पानी को इस्तेमाल करने से हिचकते हैं लोग 
छठ के त्योहार के दौरान लोग सूर्य देव से प्रार्थना करने के लिए इन मंदिरों में उमड़ते हैं। तीज के दौरान विवाहित महिलाएं अपने पति के स्वास्थ्य और खुशहाली के लिए प्रार्थना करने आती हैं और अविवाहित महिलाएं एक अच्छा वर पाने के लिए प्रार्थना करती हैं। लोग अब भी अपने मृत परिजनों को अंतिम संस्कार के लिये बागमती के किनारे लाते हैं, लेकिन कई लोग अब इसके पानी के इस्तेमाल से हिचकते हैं, और आस-पास की दुकानों से साफ पानी खरीदकर से अंतिम संस्कार की रस्मों को पूरा किया जाता है।
मुझे नहीं लगता यह मेरे जीवनकाल में (पानी) स्वच्छ हो पाएगाः मिठू लामा
15 साल की उम्र में ब्याहे जाने के बाद से यहां अपने पति के साथ तेकु घाट पर काम कर रहीं 59 वर्षीय मिठू लामा ने कहा, ‘‘पानी इतना गंदा और बदबूदार है कि लोग बोतलबंद पानी लाने और अनुष्ठान करने के लिए मजबूर हो जाते हैं। लामा ने कहा, ‘‘मुझे नहीं लगता यह मेरे जीवनकाल में (पानी) स्वच्छ हो पाएगा।’’
नदी को साफ करने के उद्देश्य से स्थापित सरकारी बागमती सभ्यता एकीकृत विकास उच्चाधिकार समिति की कार्यकारी सदस्य माला खरेल लगभग हर सप्ताहांत यहां आती हैं। वह न केवल सफाई के कर्तव्य के लिए बल्कि प्रदूषण से बचने के बारे में आबादी के बीच जागरूकता बढ़ाने का भी काम करती हैं।
अगले 10 वर्षों में नदी साफ होने की उम्मीदः खरेल 
खरेल ने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में समिति का अभियान नदी के किनारे लगभग 80 प्रतिशत कचरा इकट्ठा करने में सफल रहा है, जिसमें जानवरों के सड़े-गले अवशेष से लेकर सभी प्रकार का कचरा था, यहां तक ​​​​कि मृत बच्चों के शवों को नदी में फेंक दिया गया था। उन्होंने कहा कि पाइप और नहर प्रणाली पर काम 2013 के आसपास शुरू हुआ, लेकिन इसके पूरा होने की किसी तारीख की घोषणा नहीं की गई है। दो बांधों पर निर्माण जारी है। खरेल ने कहा, ‘‘अगले 10 वर्षों में मुझे उम्मीद है कि नदी साफ हो जाएगी और तटीय इलाके स्वच्छ और पेड़ों से हरे-भरे हो जाएंगे। हम इस लक्ष्य के लिये कड़ी मेहनत कर रहे हैं।’’
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