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बलूचिस्तान : जुल्म जब हद से...

पाकिस्तान में बलूच लिबरेशन आर्मी ने यात्री ट्रेन जाफर एक्सप्रैस का अपहरण कर…

10:25 AM Mar 12, 2025 IST | Aditya Chopra

पाकिस्तान में बलूच लिबरेशन आर्मी ने यात्री ट्रेन जाफर एक्सप्रैस का अपहरण कर…

पाकिस्तान में बलूच लिबरेशन आर्मी ने यात्री ट्रेन जाफर एक्सप्रैस का अपहरण कर जिस तरह से यात्रियों को बंधक बनाया और लगभग 30 पाकिस्तानी सैनिकों की हत्या कर दी उससे दुनियाभर का ध्यान बलूचिस्तान की तरफ केन्द्रित हो गया है। पाकिस्तान की सेना असहाय होकर रातभर कुछ नहीं कर पाई। बलूच लिबरेशन आर्मी ने जेलों में बंद अपने लड़ाकुओं की रिहाई के बदले बंधक बनाए गए यात्रियों की अदला-बदली के लिए पाक के हुकमरानों को 48 घंटे का समय दिया। इस ट्रेन में सुरक्षा बलों, पुलिस और आईएसआई के एजैंट सफर कर रहे थे आैर यह सभी पंजाब जा रहे थे।

मजहब की जंजीरों में जकड़े पाकिस्तान के अलग-अलग सूूबों में बगावत की आग तेज होती जा रही है। बलूचिस्तान से लेकर सिंध तक पाकिस्तान के विभाजन की रेखा तय हो चुकी है। अब यह बगावत एक बार फिर खूनी बगावत का रूप ले चुकी है। बलूचिस्तान में पाकिस्तान के जुल्मों की दास्तान बहुत पुरानी है। देश विभाजन के समय पाकिस्तान कश्मीर-कश्मीर चिल्लाता रहा। समस्या यह है कि उसने बलूचिस्तान के इतिहास को हर वक्त छुपाकर रखा। बलूचिस्तान भारतीय संघ में रहना चाहता था। पश्चिमोत्तर प्रांत के सीमांत गांधी अब्दुल गफ्फार खान के अनुयाई महात्मा गांधी के आंदोलन में सक्रिय होकर खड़े थे लेकिन भौगो​िलक दूरियों के चलते यह सम्भव नहीं था। फैसला तो यह किया गया था कि बलूचिस्तान एक स्वतंत्र रियासत होगा लेकिन पाकिस्तान ने बलूचिस्तान पर आक्रमण कर उस पर कब्जा कर लिया। इसके बाद शुरू हुई पाक के जुल्मों की लम्बी दास्तान। बलूचिस्तान के लोगों का संघर्ष आज भी जारी है। पाकिस्तान में जो भी हुकमरान आया उसने बलूचिस्तान में जुल्मों की हद कर दी। बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी पहली बार 1970 के दशक की शुरूआत में वजूद में आया। तब जुुल्फिकार अली भुट्टो की सरकार के ​िखलाफ बलूचों ने सशस्त्र बगावत शुरू की थी। भुट्टो के तख्तापलट के बाद सैन्य तानाशाह जिया-उल-हक ने बलूच नेताओं से बातचीत की तब जाकर बगावत शांत हुई। परवेज मुशर्रफ के शासनकाल में जब बलूच नेता नवाब बुख्ती की हत्या कर दी गई और सैकड़ों बलूच युवाओं को गायब कर ​िदया गया तो सशस्त्र संघर्ष फिर से शुरू हो गया।

बलूचिस्तान और सिंध में बगावत की आंधी इसलिए आई हुई है। क्योंकि पाकिस्तान में प्राकृतिक संसाधन ज्यादातर सिंध और बलूचिस्तान के इलाके में हैं लेकिन पाकिस्तान की सरकारें सबसे ज्यादा फंड, रियायतें और सहूलियतें पंजाब प्रांत को देती हैं। पाकिस्तान की सियासत पर भी पंजाब सूबे का ही दबदबा रहा है। अपने साथ इसी नाइंसाफी को लेकर लंबे समय से बलूचिस्तान और सिंध प्रांत में पाकिस्तानी हुक्मरानों के खिलाफ बगावत का बिगुल बजता रहा है और खूनी झड़पें होती रही हैं। बलूचिस्तान में चीन की परियोजनाओं से भी यहां के लाग बेहद नाराज हैं। इसे लेकर कई बार हिंसक प्रदर्शन ही नहीं हत्याएं भी हो चुकी हैं। पाकिस्तान के अंदरुनी हालात इस कदर खराब हैं कि इसके टुकड़े-टुकड़े होने में अब कोई शक नहीं है। खुद पाकिस्तानी भी मानते हैं कि जिन्नालैंड गृहयुद्ध की कगार पर खड़ा है। बगावत, आतंकवाद और दुश्मनों से पाकिस्तान पूरी तरह से घिर गया है। वहीं एक्सपर्ट्स का मानना है कि पाकिस्तान के हुक्मरानों की वजह से ही मुल्क के अंदर बगावत और गृहयुद्ध जैसे खतरे को ताकत मिली है।

पाकिस्तान का सिंध इलाका भी बलूचों और पश्तूनों की तरह पाकिस्तान से अलग होना चाहता है। बलूचिस्तान की तरह सिंध भी पाकिस्तान का वो सूबा है जो लंबे वक्त से पाकिस्तान के जालिम हुक्मरानों से छुटकारा पाना चाहता है। सिंध में आजादी के नारे करीब पांच दशक से गूंज रहे हैं। इन आवाजों को अब तक पाकिस्तान की डरपोक फौज बूटों और बंदूकों से खामोश करती रही लेकिन अब आवाज खुलकर दुनिया तक पहुंच रही है। सिंध पाकिस्तान का सबसे अमीर सूबा है। पाकिस्तान की 70 फीसदी कमाई सिंध से होती है लेकिन सिंधियों का उस पर कोई हक नहीं होता है।

पाकिस्तान के हुकमरानों को हमेशा ही बलूचिस्तान का खौफ सताता रहा है।

‘‘तुम ने खेतों में इंसानों के सर बोये थे,

अब जमीं खून उगलती है तो हैरत क्यों है।’’

बलूचिस्तान के ​िनर्वा​िसत नेताओं ने कई बार भारत से अपील की है ​िक जिस तरह श्रीमती इंदिरा गांधी ने पूर्वी पाकिस्तान के लोगों को पाकिस्तान के अत्याचारों से मुक्त कराकर बंगलादेश बनाया था, उसी प्रकार वह भी बलूचिस्तान के लोगों पर हो रहे अत्याचारों से पूरे विश्व को अवगत कराए आैर वहां लोकतंत्र बहाल करने के लिए हस्तक्षेप करे। पाकिस्तान को इस बात का अहसास होना चाहिए।

‘‘जुल्म फिर जुल्म है बढ़ता है तो ​िफर ​िमट जाता है

खून फिर खून है टपकेगा तो जम जाएगा

तुम ने जिस खून को मक्तल में दबाना चाहा

आज वो कूचा ओ बाज़ार में आ निकला है

कहीं शोला कहीं नारा कहीं पत्थर बन कर

खून चलता है तो रुकता नहीं संगीनों से

सर उठाता है तो दबता नहीं आईनों से’’

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