पाकिस्तान से दोस्ती कर बर्बाद हुआ बांग्लादेश! यूनुस सरकार की बढ़ीं मुश्किलें
पाकिस्तान से दोस्ती कर यूनुस सरकार की बढ़ीं मुश्किलें
ढाका ट्रिब्यून की एक रिपोर्ट से यह सामने आया है कि भिखारियों की बढ़ती संख्या में महिलाओं का अनुपात सबसे अधिक है. सड़क किनारे बैठी महिलाएं, किसी चोट या अन्य समस्या का हवाला देकर राहगीरों से पैसे मांगती देखी जा सकती हैं. इनमें से कई महिलाएं परिवार के पालन-पोषण और इलाज के लिए मजबूरी में इस रास्ते को चुन रही हैं.
Bangladesh News: बांग्लादेश की राजधानी ढाका इन दिनों भिखारियों की बढ़ती संख्या के कारण चर्चा में है. यूनुस सरकार के कार्यकाल में यह समस्या तेजी से उभर कर सामने आई है. सार्वजनिक स्थलों, सड़क किनारों और बाजारों में अब भिखारियों की भीड़ आम हो गई है. ये लोग समूह बनाकर भीख मांग रहे हैं, जिससे स्थानीय नागरिकों और प्रशासन दोनों की चिंता बढ़ गई है.
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, ढाका ट्रिब्यून की एक रिपोर्ट से यह सामने आया है कि भिखारियों की बढ़ती संख्या में महिलाओं का अनुपात सबसे अधिक है. सड़क किनारे बैठी महिलाएं, किसी चोट या अन्य समस्या का हवाला देकर राहगीरों से पैसे मांगती देखी जा सकती हैं. इनमें से कई महिलाएं परिवार के पालन-पोषण और इलाज के लिए मजबूरी में इस रास्ते को चुन रही हैं.
रिपोर्ट में ऐसा क्या?
इस रिपोर्ट में दो महिला भिखारियों से बातचीत का जिक्र किया गया है. इनमें से एक महिला, रशेदा (बदला हुआ नाम), ने बताया कि वह बीमार होने के कारण कोई नौकरी नहीं कर सकती और बच्चों के पालन के लिए उसे भीख मांगनी पड़ती है. दूसरी युवती, 16 वर्षीय तंजेला, अपने बीमार भाई के इलाज के लिए पैसे जुटाने के लिए सड़कों पर बैठती है.
पाकिस्तान से संबंध का बड़ा बुरा असर
बांग्लादेश में यह समस्या उस समय बढ़ रही है, जब यूनुस सरकार पाकिस्तान के साथ संबंधों को मजबूत करने की दिशा में कदम बढ़ा रही है. पाकिस्तान का नाम लंबे समय से दुनिया में भीख मांगने वाले नागरिकों की संख्या को लेकर बदनाम रहा है.
वहां लगभग 2 करोड़ भिखारी बताए जाते हैं, जो खाड़ी देशों सहित कई अन्य देशों में भी सक्रिय हैं. इस संदर्भ में बांग्लादेश में भिखारियों की तेजी से बढ़ती संख्या को लेकर सामाजिक चिंताएं भी सामने आई हैं.
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बेरोजगारी और महंगाई से बिगड़े हालात
बांग्लादेश में हाल के दिनों में बेरोजगारी की दर में वृद्धि देखी गई है. इसके साथ-साथ महंगाई भी लगातार बढ़ रही है. ये दोनों कारण मिलकर गरीब तबके को और अधिक आर्थिक संकट में धकेल रहे हैं. सरकार की नीतियों में इन समस्याओं को लेकर स्पष्टता और प्रभावशीलता की कमी महसूस की जा रही है.