बंगलादेश का चीन प्रेम
बंगलादेश की अस्थाई सरकार के मुखिया मुहम्मद यूनुस ने हाल ही में चीन की चार…
बंगलादेश की अस्थाई सरकार के मुखिया मुहम्मद यूनुस ने हाल ही में चीन की चार दिवसीय यात्रा करके जिस प्रकार अपने देश में चीनी निवेश को आमन्त्रित करने के लिए आत्मसमर्पण किया है वह भारतीय उप-महाद्वीप के हितों के सर्वथा प्रतिकूल है। इसके साथ यह भी स्पष्ट हो गया है कि विगत 5 अगस्त 2024 के बाद जिस तरह सेना की मदद से उनके हाथ में बंगलादेश की कमान सौंपी गई वह भारत का विरोध करने वाले लोगों का जमावड़ा है। इस दिन बंगलादेश की चुनी हुई प्रधानमन्त्री शेख हसीना की सत्ता का सेना के नेतृत्व में तख्ता पलट दिया गया था और वह भारत में शरण के लिए आ गई थीं। मुहम्मद यूनुस पर शेख हसीना की सरकार के दौरान भ्रष्टाचार के मुकदमे भी चले थे, तभी से भारत की यह कोशिश है कि बंगलादेश के साथ भारत के सम्बन्ध सामान्य रहे और दोनों देशों के बीच जो प्रगाढ़ भाईचारा रहा है उस पर आंच न आने पाये। मगर श्री यूनुस अपनी हरकतों से सिद्ध कर रहे हैं कि वह अपने देश में भारत के प्रति आत्मीयता को भंग करना चाहते हैं और चीन के साथ प्रगाढ़ता करना चाहते हैं।
श्री यूनुस का चीन जाकर यह कहना कि भारत के पूर्वोत्तर के सातों राज्य केवल भूमि से ही घिरे हुए हैं अतः केवल बंगलादेश ही समुद्री मार्ग से चीन के लिए अति उत्तम देश है जहां वह अपनी अर्थव्यवस्था का विस्तार कर सकता है। इसे यदि खुली नजर से देखें तो यह सीधे चीन का आर्थिक उपनिवेश बनने जैसी पेशकश है। हालांकि चीन का बंगलादेश में पहले से ही निवेश है। यूनुस का यह कहना कि इस क्षेत्र में केवल उनका देश ही समुद्री सीमाओं का संरक्षक है, पूरी तरह भारत के प्रति उनकी सोच को दर्शाता है। बंगलादेश भौगोलिक स्तर पर एेसी जगह स्थित है कि वह भारत की समुद्री सीमाओं के संरक्षण में भी सहयोग कर सके। मगर उन्होंने चीन के समक्ष जो प्रस्ताव रखा है उससे भारत की समुद्री सीमाओं का संरक्षण जुड़ा हुआ है। चीन को यह दावत देकर कि वह बंगलादेश में निवेश करे यहां उद्योग-धंधे स्थापित करके अपना माल समुद्री रास्तों से दुनिया में कहीं भी भेजे या वापस तैयार माल चीन मंगाए, हर दृष्टि से बंगलादेश को आर्थिक उपनिवेश बनाना जैसा ही है। अभी तक बंगलादेश की सत्ता में बैठे लोग यह कहते रहे हैं कि उनकी सुरक्षा भारत की सुरक्षा से जुड़ी ही है। क्योंकि भारत बंगलादेश के समुद्री रास्तों का प्रयोग करके भी अपनी वाणिज्यिक गतिविधियों को अंजाम देता रहा है। खास कर पूर्वोत्तर राज्यों से भारत को जोड़ने का तंग रास्ता उत्तरी नेपाल से होकर जाता है जिसे ‘चिकन नेक’ कहा जाता है।
बंगलादेश के समुद्री रास्तों का उपयोग भारत उसके सहयोग से ही करता रहा है मगर अब यूनुस चीन को खुला निमन्त्रण दे रहे हैं। इससे साफ पता चलता है कि यूनुस की नीयत क्या है? भारत के साथ बंगलादेश की कई रणनीतिक क्षेत्रों में सन्धि है। श्री यूनुस को यदि इन सन्धियों की जानकारी नहीं है तो यह उनकी कमजोरी है। मगर बंगलादेश के वर्तमान सत्ताधारियों को पता होना चाहिए कि उनकी सरकार को बंगलादेश के लोगों का जनादेश नहीं मिला हुआ है और जो व्यवस्था इस देश में चल रही है वह स्थायी नहीं है। बंगलादेश में अभी चुनाव होने हैं। उसके बाद ही जनादेश का आकलन किया जा सकता है। वर्तमान सत्ताधारियों को यह भी मालूम होना चाहिए कि उनके देश को पाकिस्तान के खूनी जबड़े से बाहर निकालने में भारत ने ही मदद की थी और स्व. शेख मुजीबुर्रहमान के नेतृत्व में 1971 में इस देश का जो मुक्ति संग्राम लड़ा गया था उसे अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर वैधता दिलाने में भारत की ही प्रमुख भूमिका थी परन्तु क्या कयामत है कि इस मुक्ति संग्राम का इतिहास बदलने में ही यूनुस सरकार लगी हुई है और पाकिस्तान परस्त राजनैतिक दल जमाते इस्लामी को प्रश्रय दे रही है।
पूरी दुनिया जानती है कि 1971 के दिसम्बर महीने में भारतीय फौज ने पाकिस्तानी सेनाओं का अपने समक्ष आत्मसमर्पण कराया था। इस नजारे को चीन भी देखता रहा था और अमेरिका भी। अमेरिका ने तो तब खुल कर पाकिस्तान का साथ दिया था और अपना सातवां जंगी जहाजी एटमी बेड़ा बंगाल की खाड़ी में उतार दिया था। इसके बावजूद अमेरिका कुछ नहीं कर पाया था क्योंकि उस समय भारत के साथ दुनिया की दूसरी महाशक्ति सोवियत संघ था। अगर यूनुस की सरकार यह चाहती है कि उनके देश के लोग इस इतिहास को भूल जायें तो यह उनकी नादानी ही कही जायेगी क्योंकि कोई भी देश तभी तरक्की करता है जब वह अपने इतिहास से सबक सीखता है लेकिन चीन जाकर यूनुस यदि यह बता रहे हैं कि पूर्वोत्तर राज्यों के बारे में उनके देश को वरीयता प्राप्त है तो यह विचार भारतीय कूटनीतिज्ञों के लिए चिन्तनीय है। पूर्वी राज्यों के औद्योगिक विकास के लिए भारत भारी मशीनरी आदि को बंगलादेश के समुद्री मार्गों का उपयोग करके भेजता रहा है। अतः चीन जाकर यूनुस का यह कहना कि भारतीय उप महाद्वीप के समुद्री रास्तों का संरक्षक बंगलादेश है, बताता है कि यूनुस भारत को चीन से पीछे रखना चाहते हैं। जबकि हकीकत यह है कि बंगलादेश के अस्तित्व में आने के बाद भारत ने उसके चहुंमुखी विकास के लिए हर क्षेत्र में सहयोग किया है। मगर क्या गजब है कि यूनुस उसी पाकिस्तान से सैनिक सामग्री खरीदने के समझौते भी कर रहे हैं जिसने 1971 तक उनके देश को गुलाम बना रखा था। जाहिर है कि भारत की सरकार बंगलादेश के चीनी पैंतरे का माकूल कूटनीतिक जवाब देगी।