Top NewsIndiaWorldOther StatesBusiness
Sports | CricketOther Games
Bollywood KesariHoroscopeHealth & LifestyleViral NewsTech & AutoGadgetsvastu-tipsExplainer
Advertisement

जरा संभल के...बड़े धोखे हैं इस राह में !

06:15 AM Aug 26, 2025 IST | विजय दर्डा

लंदन में आयोजित लोकमत ग्लोबल इकोनॉमिक कन्वेन्शन और ग्लोबल सखी सम्मान समारोह में सबसे ज्यादा चर्चा इसी बात की थी कि क्या शक्तिशाली भारत को कुछ विदेशी नीतियां दबा देंगी? जो लोग भी समारोह में आए या जिन लोगों से भी मैं दूसरी जगहों पर मिला, सब यही पूछ रहे थे कि टैरिफ के दबाव का असर भारत पर क्या होगा? मैंने अपने भाषण में इसका बड़ा स्पष्ट जवाब दिया। मैंने कहा कि हमें जितना दबाओगे, हम उतनी ही ताकत से ऊपर उठ कर आएंगे, यही भारत की तासीर है। प्रेम हमारी रगों में बहता है, प्रेम से बात करोगे तो दिल लुटा देंगे लेकिन हेकड़ी दिखाओगे तो वह मंजूर नहीं। दबाव की राजनीति हम पर काम नहीं करेगी। और यही बात भारतीय कूटनीति में स्पष्ट भी हो रही है, 50 फीसदी टैरिफ के सामने भारत ने झुकने से इन्कार कर दिया है। ट्रम्प हमारी कृषि को चरना चाह रहे हैं लेकिन भारत का नजरिया बड़ा साफ है कि किसी के लिए भी हम चरागाह नहीं हैं। हम किसी दूसरे के कहने पर खुद की नीतियां तय नहीं करेंगे। हमारे लिए कोई भी दुनिया का चौधरी नहीं है, देश हमारा है, हम इसे अपनी नीतियों के अनुरूप चलाएंगे। हम तय करेंगे कि हमें किससे तेल खरीदना है और किससे नहीं खरीदना है। हम शांति के पुजारी हैं, हथियारों के सौदागर नहीं, हम तय करेंगे कि किससे दोस्ती रखना हमारे हित में है और किससे नहीं। इतने वर्षों के अनुभव के आधार पर एक बात मेरी समझ में आई है कि कोई दोस्त और कोई दुश्मन नहीं होता, समय सब सिखाता है कि किसके साथ कब दोस्ती रहेगी, क्यों रहेगी, किस प्रकार की रहेगी, उसका स्वरूप और समय क्या होगा।

इसलिए इस वक्त भारत और चीन यदि दोस्ती की महफिल सजाने की कोशिश कर रहे हैं या उस ओर कदम बढ़ा रहे हैं तो यह वक्त का ही खेल है, ध्यान दीजिए कि इस महीने की दो तारीखें भारत के लिए बहुत महत्वपूर्ण साबित होने वाली हैं, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने भारत पर जो 50 फीसदी टैरिफ की घोषणा कर रखी है, 27 अगस्त को वह लागू हो जाएगा। दूसरी तारीख है 31 अगस्त जब चीन के तियानजिन शहर में शंघाई सहयोग संगठन की बैठक के सिलसिले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग मिलेंगे। साथ में होंगे रूस के राष्ट्रपति पुतिन, इस मुलाकात पर पूरी दुनिया की नजर लगी है। ट्रम्प भी जरूर सोच रहे होंगे कि क्या कुछ खिचड़ी पकेगी? इसके पहले चीन के विदेश मंत्री वांग यी भारत आए और नरेंद्र मोदी से मुलाकात भी की। शंघाई सहयोग संगठन की बैठकों में ये तीनों नेता पहले भी मिल चुके हैं लेकिन इस बार परिस्थितियां बिल्कुल अलग हैं, इसलिए चर्चाएं ज्यादा हो रही हैं।

हम इस बात को अच्छी तरह से जानते हैं कि भारत के साथ चीन के संबंधों का इतिहास बहुत खराब रहा है, अविश्वास की गहरी खाई है। 1954 में जवाहर लाल नेहरू के साथ चीन के तत्कालीन शासक चाऊ एन लाई ने भी हिंदी-चीनी भाई-भाई का नारा लगाया था। मगर हुआ क्या? चीन ने 1962 में हम पर हमला कर दिया, हमारी जमीनें हड़प लीं। 2020 में गलवान घाटी में चीनी हरकतों की याद अभी भी ताजा है, पहलगाम की घटना के बाद भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ ऑपरेशन सिंदूर चलाया तो चीन ने उपग्रह की खुफिया जानकारियों से लेकर जंग के सारे लॉजिस्टिक पाकिस्तान को उपलब्ध कराए। चीन वो सारी हरकतें करता है जो भारत को कमजोर करे, इसलिए यह मान लेना उचित नहीं होगा कि चीन हमारे साथ पक्की दोस्ती निभाने के लिए तैयार होने वाला है। चीन हमें वो सब कुछ नहीं देने वाला जिसकी हमें जरूरत है।

दरअसल अमेरिकी दबाव चीन पर भी काफी है, उसे भी दबाव से निपटना है। इधर हमें भी दबाव से निपटना है तो ऐसा मान लीजिए कि दो निपटने वाले लोग एक जगह आ रहे हैं, हमें अपने हितों को ध्यान में रखते हुए आगे बढ़ना है, हम जानते हैं कि इस राह में बड़े धोखे हैं...इसलिए संभल कर चलने की जरूरत है। हमारे पास प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर गृहमंत्री अमित शाह, विदेश मंत्री एस. जयशंकर, वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल जैसे कूटनीति के धुरंधर मौजूद हैं और वे किसी राह पर बढ़ रहे हैं या बढ़ेंगे तो निश्चय ही वह सोचा-समझा कदम होगा, पीयूष गोयल जानते हैं कि कहां कैसे बार्गेन करना है। भरोसे की बात यह है कि भारत-चीन संबंधों को बेहतर बनाने में पुतिन की भूमिका की उम्मीद ज्यादा है और रूस हमेशा ही भारत का सच्चा दोस्त रहा है। मुझे ऐसा कोई मौका याद नहीं आता, नेहरू काल से लेकर मोदी काल तब, जब रूस ने कभी दबाव की राजनीति की हो। दोनों देशों के संबंध हमेशा ही बहुत सहज रहे हैं, हर मुश्किल वक्त में रूस ने भारत का साथ दिया है और भारत ने भी दोस्ती को महफूज रखने की हर संभव कोशिश की है।

अमेरिका के टैरिफ हमलों के बीच भारत और रूस एक-दूसरे के साथ हाथ में हाथ डाल कर खड़े हैं। 27 अगस्त को भारत पर 50 फीसदी अमेरिकी टैरिफ लागू होने वाला है लेकिन इससे बिना विचलित हुए भारतीय तेल कंपनियों ने सितंबर और अक्तूबर के लिए रूस को ऑर्डर दे दिया है, और रूस करीब 5 प्रतिशत नया डिस्काउंट भी भारत को देने वाला है। और अंत में... अलास्का में ट्रम्प और पुतिन के बीच बैठक बेनतीजा रही मगर पुतिन ने बड़ा संदेश दे दिया। रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव जो टीशर्ट पहनकर पहुंचे, उस पर लिखा था सीसीसीपी, अंग्रेजी में यूएसएसआर यानी यूनियन ऑफ सोवियत सोशलिस्ट रिपब्लिक का ये रूसी नाम है। टूटने से पहले यूएसएसआर में रूस और यूक्रेन सहित 15 देश थे। संदेश ये है कि यूएसएसआर से कम पुतिन को कुछ भी मंजूर नहीं, आगे-आगे देखिए होता है क्या।

Advertisement
Advertisement
Next Article