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Best Villain: बॉलीवुड का सबसे खूंखार विलेन, जो सालों बाद भी दिलों पर करता है राज

01:27 PM Jun 24, 2025 IST | Arpita Singh

मोगैम्बो खुश हुआ!”, “जा सिमरन जी ले अपनी जिंदगी” और “आओ कभी हवेली पे” जैसे दमदार डायलॉग्स देने वाले अमरीश पुरी को भला कौन भूल सकता है। 22 जून को इस दिग्गज अभिनेता की 93वीं जयंती थी। भले ही वे अब हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन आज भी वे बॉलीवुड के सबसे आइकॉनिक और यादगार विलेन के रूप में जिंदा हैं। अमरीश पुरी की आवाज, अंदाज़ और उनकी आंखों की गहराई ने ही उन्हें विलेन नहीं, एक “कल्ट फिगर” बना दिया।

बॉलीवुड से हॉलीवुड तक

जब उन्हें फिल्मों में अच्छे रोल मिलने शुरू हुए, तो उन्होंने खुद को हर रोल में ढाल लिया। उन्होंने ना सिर्फ हिंदी फिल्मों में बल्कि हॉलीवुड तक में अपनी एक्टिंग का लोहा मनवाया।

स्टीवन स्पीलबर्ग की फिल्म इंडियाना जोन्स एंड द टेम्पल ऑफ डूम में उन्होंने “मूला राम” का किरदार निभाया था, जो आज भी हॉलीवुड विलेंस की लिस्ट में आता है। खुद स्पीलबर्ग ने उन्हें “The best villain in the world” कहा था।

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एक विलेन जो बन गया सुपरस्टार

अमरीश पुरी का जन्म 22 जून 1932 को पंजाब के अब भगत सिंह नगर  में हुआ था। दिलचस्प बात यह है कि उन्होंने फिल्मी दुनिया में क़दम रखने में बहुत देर की। जब लोग अपने करियर के टॉप पर होते हैं, अमरीश पुरी ने तब अपना करियर शुरू किया — 39 साल की उम्र में। वो भी बतौर हीरो नहीं, बल्कि एक सपोर्टिंग एक्टर के रूप में।

 

मराठी सिनेमा से शुरुआत, लंबा इंतजार

अमरीश पुरी ने 1967 में मराठी फिल्म ‘शंततु! कोर्ट चालू आहे’ से डेब्यू किया था। इस फिल्म में उन्होंने एक अंधे गायक का किरदार निभाया था, जो ट्रेनों में गाना गाता है। फिल्म भले ही मराठी थी, लेकिन उसमें अमरीश पुरी की मौजूदगी को नोटिस किया गया।

 

हीरो बनने की चाह, पर रिजेक्शन मिला

शुरुआत में अमरीश पुरी का सपना था कि वह हीरो बनें। लेकिन जब-जब वह ऑडिशन देने गए, हर बार रिजेक्ट हो गए। यहां तक कि उनके भाई मदन पुरी, जो खुद एक सफल एक्टर थे, उन्होंने भी अमरीश को फिल्मों में काम देने से इनकार कर दिया। भाई ने साफ कह दिया – “तुम्हारा चेहरा हीरो वाला नहीं है।”

पर किसे पता था कि यही चेहरा एक दिन सिनेमा का सबसे यादगार चेहरा बनेगा। अमरीश पुरी ने हार नहीं मानी। घर चलाने के लिए उन्होंने एक बीमा कंपनी में नौकरी कर ली और थियेटर में काम करते रहे।

 

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