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आशंका और आशा के बीच 2024

01:37 AM Jan 04, 2024 IST | Sagar Kapoor
आशंका और आशा के बीच 2024

दुनिया को किसी नास्त्रेदमस या ज्योतिष के बताने की ज़रूरत नहीं कि 2024 तनावपूर्ण साल रहेगा। यूक्रेन और रूस के बीच युद्ध चल रहा था कि हमास ने इज़राइल पर हमला कर दिया। इज़राइल का जवाब इतना खूनी है कि दुनिया स्तब्ध रह गई है। उन्हें रोकने की जगह बाइडेन का अमेरिका उन्हें लगातार और हथियार सप्लाई करता जा रहा है। दोनों बड़ी शक्तियां अमेरिका और रूस, दुनिया की लोकराय के कटघरे में खड़ी हैं। तीसरी महाशक्ति चीन अपने पड़ोसियों, भारत समेत को दबाने की कोशिश कर रही है। इन तीनों देशों के नेतृत्व की नीतियों का बुरा प्रभाव पड़ेगा और दुनिया तनावग्रस्त और विभाजित रहेगी। हमें नए रोल मॉडल चाहिए जो इस दलदल से निकाल सकें पर बाइडेन, पुतिन या शी जिनपिंग में हमें बौने नेता मिले हैं। अगर हम देखें कि सबसे ताकतवर देश अमेरिका में चुनाव बाइडेन और ट्रम्प के बीच होने जा रहा है तो समझ आ जाएगी कि किस तरह विकल्प का अभाव है। पूंजीवाद के कारण कई देशों ने बहुत तरक्की की है पर इसी पूंजीवाद ने बार-बार युद्ध भी दिए हैं और इससे विषमता भी बढ़ी है।
दुनिया को तरक्की के लिए नया मॉडल चाहिए जो नज़र नहीं आ रहा। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जो विश्व व्यवस्था क़ायम की गई थी वह अंतिम सांस ले रही है। इसका इससे बड़ा प्रमाण क्या हो सकता है कि संयुक्त राष्ट्र अप्रासंगिक और नपुंसक हो चुका है। बड़े देश अपनी मनमानी करते हैं। 2024 इसलिए भी अनिश्चित रहेगा क्योंकि भारत समेत लगभग चार दर्जन देशों में चुनाव होने जा रहे हैं। अमेरिका, रूस, यूक्रेन, बांग्लादेश, पाकिस्तान, श्रीलंका सब में चुनाव होंगे। जलवायु परिवर्तन बहुत बड़ी चुनौती बनता जा रहा है। कहीं बाढ़ तो कहीं सूखा पर जिनकी ज़िम्मेवारी सही करने की है वह लम्बी चादर तान कर खर्राटे भर रहे हैं। हमें भी प्रदूषण बहुत परेशान कर रहा है। आजकल तो पंजाब में पराली नहीं जलाई जा रही फिर दिल्ली प्रदूषित क्यों है? असली समस्या है कि हमारे लाइफ स्टाइल ऐसे बन गए हैं कि प्रदूषण से छुटकारा मिलना मुश्किल लगता है।
नया शानदार संसद भवन बन गया पर 2023 बता गया कि केवल इमारत बनने से ही लोकतंत्र मज़बूत नहीं होगा। जिस तरह महिला पहलवानों के आरोपों से निबटा गया है उससे देश में बहुत ग़लत संदेश गया है। भाजपा सांसद बृजभूषण शरण सिंह पर महिला पहलवानों ने बहुत संगीन आरोप लगाए हैं। पर सरकार तब तक हरकत में नहीं आई जब तक साक्षी मलिक ने रोते हुए खेल को अलविदा नहीं कह दिया और कुछ पहलवानों ने अपने मैडल प्रधानमंत्री के घर के पास पेवमैंट पर रख नहीं दिए। अब हर मां बाप सोचेंगे कि भारत में अपनी बेटी को खेल के लिए भेजा जाए या नहीं? कोई समाधान नज़र नहीं आ रहा। अमेरिका के साथ रिश्तों में अचानक तनाव आ गया है। जिस अमेरिका ने ग़ाज़ा में 20000 लोग मरने दिए उसे आतंकी गुरपतवंत सिंह पन्नू की सलामती की चिन्ता बताती है कि कही भारत सरकार को दबाव में लाने की कोशिश हो रही है। राष्ट्रपति बाइडेन का अंतिम क्षणों में गणतंत्र दिवस पर मुख्य अतिथि बनने से इंकार करना भी बताता है कि सब कुछ ठीकठाक नहीं है। अवैध तरीक़े से निकारगुआ के रास्ते अमेरिका जाने के प्रयास में 303 भारतीय फ्रांस में पकड़े गए और उन्हें वापिस भेज दिया गया। इस विमान को अमेरिका की ख़ुफ़िया सूचना के बाद फ्रांस में पकड़ा गया। यह सूचना अमेरिका ने हमें क्यों नहीं दी? यह विमान उड़ने से पहले भारत में ही रोक दिया जाता। क्या अमेरिका ने जानबूझकर तमाशा बनाया है? पर यह घटना हमारी एक बड़ी कमजोरी को भी प्रकट करती है कि सब से तेज गति से तरक्की कर रही अर्थव्यवस्था में रोज़गार की गम्भीर समस्या है जिस कारण युवा विदेश की तरफ भागने की हर कोशिश कर रहे हैं। ऐसी स्थिति क्यों है कि पीएचडी और स्नातकोत्तर भी चपरासी और क्लास फोर सरकारी नौकरी के पीछे भागते हैं? छोटे और मझोले उद्योगों को बढ़ावा देने की बहुत ज़रूरत है नहीं तो यह समस्या बढ़ती जाएगी।
एनएसओ की रिपोर्ट के अनुसार 2023 में 2022 के मुक़ाबले 22.6 प्रतिशत कम रोज़गार मिला है। यह तो सरकार का सौभाग्य है कि उसे इतना अनाड़ी विपक्ष मिला है जो इस हालत का राजनीतिक फ़ायदा नहीं उठा सका। राहुल गांधी जातीय जनगणना की रट लगा रहे हैं पर उससे क्या होगा? अगर जातीय राजनीति कारगर होती तो बिहार इतना पिछड़ा न होता। तीन हिन्दी भाषी राज्यों के चुनाव परिणाम बताते हैं कि लोगों को जातीय जनगणना का जुमला पसंद नहीं आया पर राहुल गांधी उसी का अलाप कर रहे हैं। बड़ी समस्या है कि विकास का फल बहुत असमान है। जहां एक तरफ़ अम्बानी और अडानी जैसे सुपर-रिच हैं वहां 80 करोड़ लोग हैं जिन्हें सरकार मुफ्त राशन देती है। अर्थात् जिनके लिए अपना पेट भरना भी मुश्किल है। मनरेगा में काम मांग रहे परिवारों की संख्या कोविड के पूर्व से अधिक है। पूर्व विदेश सचिव श्याम सरन ने लिखा है, “हमारे लोकतांत्रिक राज्य ने वैश्वीकरण और टेक्नोलॉजी के विकास के फल को बराबर बांटने की अपनी ज़िम्मेवारी त्याग दी है”। यह बात बहुत चिन्ताजनक है क्योंकि ऐसी ग़ैर बराबरी लोकतंत्र के सेहत के लिए अच्छी नहीं।
चाहे हम सबसे तेज तरक्की करने वाली अर्थव्यवस्था है पर प्रति व्यक्ति आय में हम दुनिया में 128 नम्बर पर हैं और अमेरिका की अर्थव्यवस्था हमसे आठ गुना और चीन की छ: गुना बढ़ी है। हमें अपनी अर्थव्यवस्था को तेज करना है पर साथ ही उत्पादक रोज़गार का ध्यान रखना है। इस वक्त तो रोज़गार और सही रोज़गार दोनों का संकट है।
अगले साल में आम चुनाव और जम्मू-कश्मीर सहित आठ प्रदेशों के चुनाव होने हंै। नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने कमर कस ली है पर विपक्ष अभी ईगो के अंधेरे में भटक रहा है। न चेहरा तय हुआ न कार्यक्रम और न ही सीट शेयरिंग पर मुकाबला नरेन्द्र मोदी- अमित शाह की भाजपा से है। इस महीने अयोध्या में राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम हो रहा है। सरकार और भाजपा दोनों इसकी खूब तैयारी कर रहें हैं पर भाजपा केवल इसी के बल पर चुनाव जीतने की उम्मीद नहीं रखती। प्रधानमंत्री मोदी ने स्पष्ट कर ही दिया है कि एक तरफ़ उनकी सरकार का दस वर्ष का स्थिर काल है और दूसरी तरफ अस्थिर मिली जुली सरकार। भाजपा का संदेश होगा, मोदी की गारंटी बनाम क्या है? जनता अस्थिर और कमजोर केन्द्र से बहुत घबराती है। जम्मू कश्मीर में लगभग पीड़ाहीन तरीक़े से जिस तरह धारा 370 हटाई गई है वह एक मज़बूत सरकार का संदेश देती है जिसे देश ने बहुत पसंद किया है। विपक्ष की यह बहुत बड़ी असफलता है कि वह वैसा विकल्प खड़ा नहीं कर सके जो देश को रोमांचित कर सके। राहुल गांधी एक और यात्रा पर निकल रहे हैं जबकि नीतीश कुमार कोप भवन में हैं क्योंकि ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल ने मलिक्कार्जुन खड़गे का नाम 'इंडिया’ गठबंधन के प्रधानमंत्री के तौर पर पेश किया है। पर खुद केजरीवाल की पार्टी फंसी हुई है।
पिछले साल चन्द्रयान ने चन्द्रमा पर सफल लैंडिंग की थी। हमने एक अरब लोगों को कोविड में वैक्सीन पहुँचाई थी। इंफास्ट्रक्चर में ग़ज़ब का काम हो रहा है। हम डिजीटल अर्थव्यवस्था बनते जा रहे है। मिडिल मैन को हटा कर सीधा लोगों के खातों में पैसा जा रहा है। अर्थात् जो करना चाहे वह कर सकते हैं। पर हमारी संसद काम नहीं कर रही और सड़क पर चप्पल डाले चल रहा आम आदमी हताश है। चेहरे पर रौनक़ नहीं है। पर इस धुंधली तस्वीर में कुछ आशा की किरणें भी हैं। कोलकाता के प्रसिद्ध न्यू मार्केट की 121 वर्ष पुरानी नहौमस यहूदी बेकरी के बाहर क्रिसमस से एक शाम पहले हिन्दुओं की बड़ी लम्बी लाइन लगी थी जो ईसाई त्यौहार को मनाने के लिए वहाँ का प्रसिद्ध क्रिसमस केक ख़रीदना चाहते थे। इसे बनाने वाले मुस्लिम बेकर हैं। अयोध्या में राम मंदिर लगभग तैयार हो गया है। उत्तर प्रदेश में फ़तेहपुर सीकरी और खेड़ागढ़ के कारीगर और कलाकार रात-दिन लाल पत्थर से बने खम्बों को तराशने में लगे रहे।
इनमें बहुत से कारीगर मुसलमान हैं। उनका कहना है कि उनका सौभाग्य है कि उनका काम राम मंदिर में इस्तेमाल हो रहा है। कोलकाता के नज़दीक दुत्तापुकर के दो मुस्लिम कारीगरों ने भगवान राम की मूर्तियां बनाई है जो अयोध्या भेज दी गईं हैं। यह पूछे जाने पर कि मुसलमान होते हुए भी आप मूर्तियां बना रहे हो, जमालुद्दीन का जवाब था, “हमें भगवान राम की मूर्ति बनाने में आनन्द आया और हमें इस बात का गर्व है कि हमारी कला का प्रसिद्ध राम मंदिर में प्रदर्शन होगा। एक कलाकार के तौर पर हमारा संदेश भाईचारे की यह संस्कृति है”।

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