40 साल बाद फिर धधकी भोपाल गैस त्रासदी की आग
भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड प्लांट में 2 दिसंबर 1984 को आधी रात में मिथाइल…
भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड प्लांट में 2 दिसंबर 1984 को आधी रात में मिथाइल आइसोनेट (एमआईसी) के रिसाव के कारण तत्काल 5,479 निर्दोष लोगों की मौत हो गई थी। इसके अलावा आसपास के इलाकों में दस हजार से ज्यादा लोग शारीरिक रूप से विकलांग हो गए। पांच लाख लोग एमआईसी के रिसाव से प्रभावित हुए। इस बीच 16 सालों के दौरान गैस रिसाव से होने वाली संक्रामक बीमारियों से 15,000 लोगों की मौत हो गई। इस त्रासदी में 3,000 से अधिक जानवर मारे गए, जबकि सैकड़ों घायल हुए। हालांकि उस समय मरने वालों की तादाद ज्यादा होने के कारण पर्यावरणीय खतरों की तरफ ध्यान नहीं दिया गया। 1999 में अन्तर्राष्ट्रीय पर्यावरण संस्था ग्रीनपीस ने यूनियन कार्बाइड प्लांट के आसपास के इलाकों की जमीन, पानी और ठोस पदार्थों का परीक्षण किया। ग्रीनपीस ने पाया कि एमआईसी के रिसाव के कारण यहां की जमीन और पानी में अब प्रदूषित तत्व बड़ी मात्रा में मौजूद हैं।
भोपाल गैस त्रासदी पर 30 सालों से मुकदमेबाजी होती रही। फरवरी 1989 में सुप्रीम कोर्ट ने इस त्रासदी से जुड़े सभी मामले निपटाने का आदेश दिया। हालांकि, त्रासदी से जुड़े कई मामलों का अभी तक कोई निपटारा नहीं हो पाया है। त्रासदी के 40 साल बाद यूनियन कार्बाइड के बंद पड़े कारखाने से करीब 377 टन खतरनाक कचरे को डंप करने के लिए ले जाया गया है, तो निश्चित रूप से यह एक उल्लेखनीय घटना है। बारह सीलबंद कंटेनर ट्रकों में यूनियन कार्बाइड का कचरा भोपाल से 250 किलोमीटर दूर धार जिले के पीथमपुर औद्योगिक क्षेत्र में ले जाया गया और बताया यह जा रहा है कि अगर सब कुछ ठीक रहा, तो तीन महीने के भीतर कचरे को जला दिया जाएगा। अन्यथा कचरे के निस्तारण में लगभग नौ महीने का समय लग सकता है। भोपाल से 250 किलोमीटर दूर पीथमपुर में गैस त्रासदी से जुड़े कचरे को जलाने का व्यापक विरोध शुरू हो गया है।
शुक्रवार की सुबह सैकड़ों प्रदर्शनकारी इसके विरोध में सड़कों पर उतरे। इस विरोध में दो लोगों ने आत्मदाह करने की भी कोशिश की। ये लोग दुनिया की सबसे बड़ी औद्योगिक त्रासदियों में से एक भोपाल गैस त्रासदी से जुड़े कचरे को पीथमपुर भेजे जाने से नाराज़ हैं। स्थानीय लोगों का विरोध है कि इस कचरे को पीथमपुर में जलाने से उनके लिए समस्याएं खड़ी होंगी।
विरोध प्रदर्शन में शामिल लोगो ने कहा, “इस कचरे को भोपाल से पीथमपुर लाकर जलाने की योजना का हम विरोध कर रहे हैं। हमें इसके असर के बारे में कुछ नहीं बताया गया है। “अगर इसको जलाने से या डिस्पोज करने से कोई समस्या नहीं होगी तो फिर भोपाल में ही इसको डिस्पोज क्यों नहीं किया गया? हम किसी के ख़िलाफ़ नहीं हैं बस ये कचरा यहां डिस्पोज न किया जाए। जो भोपाल के लोग झेल रहे हैं, वही समस्याएं पीथमपुर में क्यों खड़ी की जा रही हैं?” प्रदर्शन में शामिल एक महिला कहती हैं, “हमें मरना नहीं, जीना है। जहां कचरा जला रहे हैं और जहां इसकी राख दबाई जाएगी वहीं जाकर हमें मज़दूरी करनी है और पेट पालना है। 100-200 रुपए कमाकर पेट पालते हैं और यहां नेता लोग जनता को मार रहे हैं। “ये कैमिकल का कचरा अभी भी शहर को बीमार बना सकता है।
जिस प्रकार गैस त्रासदी का दंश भोपाल के लोग झेल रहे हैं, आने वाले दिनों में इसका प्रतिकूल असर पीथमपुर के रहवासियों में भी देखने को मिल सकता है। दरअसल 337 मीट्रिक टन कचरा जलाने में डीजल व अन्य संसाधनों का इस्तेमाल भी किया जाएगा, जिससे कचरा खत्म नहीं होगा, बल्कि यह करीब तीन गुना यानि 900 मीट्रिक टन हो जाएगा। ऐसा निष्पादन करने वाली संस्था भी मानती है लेकिन जलाने के बाद इस कचरे का जहर खत्म नहीं होगा।
”वहीं कचरा जलाने के बाद इससे जो जहरीली गैसें निकलेंगी, वो लोगों के स्वास्थ्य पर बुरा असर डालेंगी। ”इसके पहले सात बार पीथमपुर में कचरा जलाने का ट्रायल भी हुआ, जिसमें 5 बार इस कचरे को जलाने के दौरान डाइऑक्साइड समेत न्यूरॉन्स जैसे जहरीले रसायन निकले। इसके बावजूद सरकार इस कचरे को जलाकर अब भोपाल के बाद पीथमपुर के लोगों की जान भी संकट में डालने जा रही है।” साल 2015 में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने भोपाल गैस त्रासदी और एवं पुनर्वास विभाग एवं राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की उपस्थिति में यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री में पड़े हुए कचरे का लैब में परीक्षण किया था। तब इन जाचों में सामने आया कि इस जहरीले कचरे में कार्बन अपशिष्ठ बड़ी मात्रा में मौजूद हैं। इस कचरे में क्लोरीन, सेविन, ऑर्गेनो क्लोरीन कंपाउंड और हैवी मेटल्स की अधिकता पाई गई।
वहीं साल 2005 में फैक्ट्री के आसपास की बस्तियों में 29 से अधिक कॉलोनियों में भूजल की टेस्टिंग की गई थी, जिसमें सामने आया कि आसपास की बस्तियों का पानी भी जहरीला हो गया है। ऐसे में मध्यप्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने गैस प्रभावित बस्तियों के सभी हैंड पंप सील कर दिए थे। हैंडपंप या बोर से पानी निकालने पर यहां जुर्माने और सजा का प्रावधान है। यनियन कार्बाइड फैक्ट्री के आसपास की 15 कॉलोनियों के भूजल में नाइट्रेट, क्लोराइड और कैडमियम की मात्रा पाई गई थी। सवाल यह है कि अगर अदालत ने नाखुशी नहीं जतायी होती, तो क्या अब भी उस अभिशप्त और बंद पड़े कारखाने से कचरा हटाने के बारे में क्या सचमुच सोचा भी जाता। भोपाल गैस त्रासदी अगर एक झकझोर देने वाली त्रासदी थी, तो उसके जहरीले कचरों को हटाने में चार दशक लग जाना उतनी ही बड़ी उदासीनता का प्रमाण है। हालांकि जहरीले कचरे को पीथमपुर ले जाने का भी विरोध हो रहा है। नई जगह में जहरीले कचरे का निस्तारण अगर ढंग से नहीं हुआ, तो इससे यह साबित होगा कि भोपाल त्रासदी के चार दशक बाद भी हमने कोई सबक नहीं सीखा।