Top NewsIndiaWorldOther StatesBusiness
Sports | CricketOther Games
Bollywood KesariHoroscopeHealth & LifestyleViral NewsTech & AutoGadgetsvastu-tipsExplainer
Advertisement

बाइडेन की ‘युद्धक’ नसीहत

रूस-यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध को लेकर अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने जिस तरह भारत की भूमिका की समीक्षा की है वह अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों के सन्दर्भ में उचित नहीं मानी जा सकती क्योंकि भारत अपनी विदेश नीति निर्धारित करने के मामले में पूरी तरह खुद मुख्तार और स्वतन्त्र है तथा अपने राष्ट्रीय हितों के प्रति पूर्ण रूपेण समर्पित है।

01:50 AM Mar 24, 2022 IST | Aditya Chopra

रूस-यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध को लेकर अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने जिस तरह भारत की भूमिका की समीक्षा की है वह अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों के सन्दर्भ में उचित नहीं मानी जा सकती क्योंकि भारत अपनी विदेश नीति निर्धारित करने के मामले में पूरी तरह खुद मुख्तार और स्वतन्त्र है तथा अपने राष्ट्रीय हितों के प्रति पूर्ण रूपेण समर्पित है।

रूस-यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध को लेकर अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने जिस तरह भारत की भूमिका की समीक्षा की है वह अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों के सन्दर्भ में उचित नहीं मानी जा सकती क्योंकि भारत अपनी विदेश नीति निर्धारित करने के मामले में पूरी तरह खुद मुख्तार और स्वतन्त्र है तथा अपने राष्ट्रीय हितों के प्रति पूर्ण रूपेण समर्पित है। भारत की नीति आजादी के बाद से ही विश्व शान्ति और सह अस्तित्व की रही है जिससे दुनिया के सभी देशों के बीच आपसी भाईचारा व प्रेम बना रहे। इस मामले में उसे कभी भी किसी दूसरे देश के उपदेश की जरूरत नहीं रही है। भारत जानता है कि उसका अन्तर्राष्ट्रीय दायित्व क्या है और विश्व के समक्ष पैदा होने वाली विषम परिस्थितियों में उसे अपनी भूमिका किस तरह निभानी है। यही वजह है कि भारत एक तरफ हिन्द महासागर या एशिया-प्रशान्त क्षेत्र में क्वैड (अमेरिका, जापान, आस्ट्रेलिया, भारत) चतुष्भुजीय नौसैनिक सहयोग संगठन का सदस्य है और दूसरी तरफ नवोदित आर्थिक विश्व शक्तियों के संगठन ब्रिक्स (भारत, ब्राजील, रूस, चीन , दक्षिण अफ्रीका) में शामिल है। इसी के समानान्तर भारत रिक (रूस, भारत, चीन) त्रिकोण के सामरिक सामर्थ्य समूह में भी हिस्सेदार है। मगर अमेरिका के साथ भी इसका व्यापक रक्षा सहयोग है। अतः रूस व यूक्रेन में जो युद्ध चल रहा है उसके बारे में भारत का अपना विशिष्ट आकलन है और उसी के अनुरूप वह अपने राष्ट्रीय हितों को सर्वोपरि रख कर यथोचित मार्ग पर चलना चाहता है। 
Advertisement
इस मामले श्री जो बाइडेन का यह कहना कि ‘क्वैड’ में शामिल चारों देशों में से केवल भारत ही यूक्रेन में रूसी सैनिक हस्तक्षेप पर रूस की आलोचना या विरोध करने में घबराया हुआ या अस्थिर (शेकी) है, पूरी तरह अनुचित और कूटनीतिक नैतिक आचार संहिता के विरुद्ध है क्योंकि भारत ने अपने विदेशी मामलों में कभी भी किसी दूसरे देश के हस्तक्षेप को सहन नहीं किया है। जो बाइडेन को समझना चाहिए कि भारत का नेतृत्व ऐसे  मजबूत कंधों वाले नेता नरेन्द्र मोदी के हाथ में है जिसके निर्देशन में राष्ट्र संघ सुरक्षा परिषद में ही युद्ध शुरू होने के बाद रूस के खिलाफ लाये गये प्रस्ताव पर मतदान के समय भारत ने अनुपस्थित रहना बेहतर समझा था। इसके बाद पिछले महीने ही जब ‘क्वैड’ के चारों देशों के शासन प्रमुखाें की बैठक हुई थी तो उसके बाद जारी संयुक्त वक्तव्य में भी रूस की आलोचना में एक शब्द भी नहीं लिखा गया था। भारत की वरीयता स्पष्ट हो गई थी कि वह रूस और यूक्रेन के बीच शान्ति पूर्ण तरीकों से समस्याओं का हल चाहता है और इस मुद्दे पर अमेरिका के साथ पूरे पश्चिमी देशों व नाटों के एक तरफ आ जाने को अपनी खुली सहमति प्रदान नहीं कर सकता। इसके बावजूद जापान के प्रधानमन्त्री ने भारत आकर प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी से मुलाकात की जिसमें दोनों देशों के बीच कई आर्थिक सहयोग के समझौते हुए मगर श्री मोदी ने रूस-यूक्रेन युद्ध के सन्दर्भ में तटस्थ रुख बनाये रखा। तदोपरान्त आस्ट्रेलिया के प्रधानमन्त्री ने भी श्री मोदी से वीडियो कान्फ्रेंस के जरिये भेंट की और श्री मोदी के रुख में कोई परिवर्तन नहीं आया।
बाइडेन दुनिया को सबसे पुराने अमेरि​की लोकतन्त्र के चुने हुए नेता हैं अतः उन्हें यह समझना चाहिए कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतन्त्र भारत में श्री मोदी की इस तटस्थ नीति को पूरे भारत का समर्थन प्राप्त है जिसका प्रमाण यह है कि संसद का सत्र चालू रहने के बावजूद पूरा विपक्ष इस मुद्दे पर भाजपा सरकार के पक्ष में खड़ा हुआ है। इसकी वजह यही है कि जब भी विदेश सम्बन्धित कोई मसला पैदा होता है तो पूरा भारत एकजुट होकर केवल ‘भारत’ की सरकार बन जाता है। यदि कभी किसी भी दल या नेता ने इसके विरुद्ध जाने की कोशिश की है तो भारत की जनता ने ही आगे बढ़कर उसे अपने लोकतान्त्रिक तरीके से सजा दी है। मगर श्री बाइडेन ‘रूस-यूक्रेन’ संघर्ष को लोकतान्त्रिक शक्तियों व एकाधिकारवादी शक्तियों के बीच की लड़ाई के रूप में दिखाने का प्रयत्न कर भारत को इस द्वन्द में घसीटना चाहते हैं। जिसके लिए उन्होंने चीन के रूस के पक्ष में खड़ा होने का जिक्र किया। क्या अब भारत को अमेरिका से यह सबक लेना पड़ेगा कि वह अपने राष्ट्रीय हितों को किसी भी देश की आन्तरिक शासन प्रणाली के आधार पर नापे ? यदि ऐसा होता तो आजादी के बाद से ही भारत ने सोवियत संघ के साथ दूरी बनाते हुए अपने चहुंमुखी विकास की कुर्बानी दे दी होती।
 भारत यह मानता है कि किस देश में कैसी शासन व्यवस्था हो, इसका फैसला करने का अधिकार केवल उस देश के लोगों का ही होता है। अतः श्री बाइडेन को खुद को ‘दुनिया का दरोगा’  समझने की मानसिकता से उबरना होगा और सोचना होगा कि वह उस भारत के बारे में बोल रहे हैं जिसके खिलाफ पाकिस्तान से 1971 में हुए युद्ध के दौरान इस्लामाबाद में जनरल याह्या खां के फौजी शासन के बावजूद अमेरिका ने पाकिस्तान के हक में बंगाल की खाड़ी में अपना सातवीं एटमी जंगी जहाजी बेड़ा उतार कर परमाणु युद्ध तक की आशंका खड़ी कर दी थी। और इसी के जवाब में सोवियत संघ ने भारत के पक्ष में माकूल कार्रवाई का एेलान कर दिया था लेकिन बाइडेन भारत के तटस्थ भाव से इतने घबराये हुए हैं कि उन्होंने अपनी विदेश उपमन्त्री विक्टोरिया नुलैंड को नई दिल्ली भेज कर यह तक कहलवा दिया कि यूक्रेन के मामले में रूस व चीन एक साथ खड़े हैं अतः अमेरिका भारत की रक्षा सामग्री के मामले में रूस पर निर्भरता समाप्त करने में मदद करेगा। 
अमेरिकी विदेश उपमन्त्री के इन विचारों से लगता है कि वह भारत में अपने शस्त्र बेचने आयी हैं। वह रूस-चीन के एक साथ खड़े होने का भारत को डर दिखा कर हिन्द महासागर क्षेत्र और चीन से लगे एशियाई क्षेत्र में सामरिक स्पर्धा को बढ़ावा देती लगती है, जिसका समर्थन भारत कभी नहीं कर सकता। बेशक चीन के साथ भारत का सीमा विवाद है मगर ये दोनों पड़ोसी देश भी हैं। इस विवाद को अपने पौरुष और बुद्धिबल से सुलझाने की क्षमता भारत के पास है अतः अमेरिका को फिक्र करने की कोई जरूरत नहीं है। उसे यह समझना चाहिए कि आज अमेरिका समेत दुनिया को भारत जैसे देश की जरूरत है जिससे सभी समस्याओं का हल शान्तिपूर्वक हो सके। दुनिया का भला इसमें है कि रूस- यूक्रेन युद्ध जल्दी समाप्त हो न कि इस युद्ध को लम्बा खींचने के लिए शस्त्रों की बिक्री को बढ़ावा दिया जाये। बदकिस्मती से अमेरिका व नाटो देश यही कर रहे हैं और इसी में अपना हित देखते हुए यूक्रेन को मदद करने के बहाने ‘बांस’ पर चढ़ा रहे हैं। भारत में ही वह शक्ति है कि वह तटस्थ भाव से दोनों देशों के बीच प्रेम व भाईचारा कायम कर सके क्योंकि दोनों ही देशों के साथ उसके मधुर सम्बन्ध हैं।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com
Advertisement
Next Article