पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट का बड़ा फैसला, चंडीगढ़ के निजी स्कूलों को मिली राहत
पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट का निजी स्कूलों के पक्ष में फैसला
पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने चंडीगढ़ के निजी स्कूलों को राहत देते हुए शिक्षा के अधिकार कानून पर ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा कि 1996 की नीति से पहले ज़मीन पाने वाले स्कूल EWS के तहत पूरी फीस की भरपाई के हकदार हैं। यह निर्णय स्कूलों और RTE के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए महत्वपूर्ण है।
पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने शिक्षा के अधिकार कानून (RTE) को लेकर एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए चंडीगढ़ के कई निजी गैर-अल्पसंख्यक स्कूलों को बड़ी राहत दी है। कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि जिन स्कूलों को चंडीगढ़ प्रशासन द्वारा 1996 की नीति से पहले ज़मीन अलॉट की गई थी, वे आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) के तहत 25 प्रतिशत दाखिलों की पूरी फीस की भरपाई पाने के हकदार हैं। हाईकोर्ट ने प्रशासन के उस फैसले को खारिज कर दिया, जिसमें संत कबीर स्कूल और विवेक हाई स्कूल की मान्यता रद्द की गई थी। कोर्ट ने यह भी साफ कर दिया कि केंद्र सरकार द्वारा लागू किए गए शिक्षा के अधिकार कानून के सामने 1996 की स्थानीय नीति का कोई महत्व नहीं है। यह फैसला न सिर्फ स्कूलों के हित में है, बल्कि RTE के सही और प्रभावी क्रियान्वयन के लिए भी एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।
1996 की नीति पर भारी पड़ा RTE कानून
कोर्ट में यह सवाल रखा गया था कि क्या RTE कानून के तहत निजी स्कूलों को 25% EWS छात्रों की पूरी फीस प्रशासन से मिलनी चाहिए, खासकर जब उन्हें ज़मीन 1996 से पहले मिली हो? कोर्ट ने स्पष्ट किया कि 1996 की नीति, जो पूंजी विकास और नियमन कानून 1952 पर आधारित थी, अब मान्य नहीं है क्योंकि RTE एक केंद्रीय कानून है और वह हर राज्य पर बाध्यकारी है।
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प्रशासन को फीस भरने का आदेश
जस्टिस हरसिमरन सिंह सेठी की एकल पीठ ने प्रशासन को निर्देश दिया कि वह EWS वर्ग के छात्रों की पूरी फीस संबंधित स्कूलों को लौटाए। साथ ही प्रशासन को पात्र छात्रों की सूची तैयार कर स्कूलों को भेजनी होगी। यदि किसी स्कूल को किसी छात्र की पात्रता पर आपत्ति हो, तो उसका अंतिम निर्णय प्रशासन ही करेगा।