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किस ओर जा रहा है बिहार चुनाव?

05:00 AM Nov 09, 2025 IST | त्रिदीब रमण
किस ओर जा रहा है बिहार चुनाव
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’देखो कैसे तेरी बस्ती में ही अब तेरी चमक कितनी कम होने लगी है
कभी तुझसे रौशन था सूरज, आज तेरे चेहरे की चमक कम होने लगी है’

बिहार के पहले चरण की बंपर वोटिंग (65फीसदी) को पक्ष व प्रतिपक्ष गठबंधन अपने-अपने हिस्से की जीत बता रहा है। एनडीए के प्रभाव क्षेत्र माने जाने वाले पहले चरण के मतदान में मतदाताओं के जबर्दस्त उत्साह को देखते हुए महागठबंधन की बांछें खिली हुई हैं, वे इस अप्रत्याशित वोट प्रतिशत को व्यवस्था परिवर्तनकारी वोटों में शुमार कर रहा है, वहीं दूसरी ओर भाजपा नीत गठबंधन इसे वोटरों का अपने पक्ष में कदमताल बता रहा है। भाजपा का दावा है कि इस दफे वह बड़ी संख्या में अप्रवासी बिहारियों को वोट डालने के लिए बिहार लाने में कामयाब रही है, इस कार्य में भाजपा व संघ के नेता पिछले साल भर से मेहनत कर रहे थे, वहीं इस दफे ‘एसआईआर’ के तहत भले ही 70 लाख वोटरों के नाम कट गए हों, पर मतदान के रोज महिला व युवा मतदाताओं के उत्साह अलग ही कहानी बयां कर रहे थे, महागठबंधन युवा वोटरों के कदमताल को अपने पक्ष में मान रहा है तो एनडीए गठबंधन का कहना है कि ’महिला वोटर खुल कर नीतीश के समर्थन में बाहर आई हैं।’ एक रिपोर्ट में पहले चरण के मतदान में कड़ी टक्कर बताई है और एडवांटेज एनडीए बताया है, पर इसके आंकड़े भी बता रहे हैं कि महागठबंधन 2020 के मुकाबले इस बार इस पहले फेज में शानदार वापसी कर रहा है।

यह भी इशारे मिल रहे हैं कि भाजपा व एनडीए के कई हैवीवेट नेताओं का चुनाव इस बार थोड़ा फंस गया है, जो नेतागण कड़ी टक्कर में फंस गए हैं वे हैं-रामकृपाल यादव, विजय सिन्हा, विजय चौधरी, संजय सरावगी, मंगल पांडेय। वहीं सम्राट चौधरी को उनके कई अपनों से ही भीतरघात का सामना करना पड़ रहा है। लालू यादव का ‘एमवाई’ (मुस्लिम-यादव) समीकरण इस चुनाव में पूरी तरह एकजुट दिखा, इन दोनों को मिला कर बिहार में इसके 33 फीसदी के आसपास वोट शेयर हैं, अगर तेजस्वी यादव अपने इस परंपरागत वोट बैंक में कुछ अन्य जातियों को जोड़ने में कामयाब रहते हैं तो इस बार के चुनाव में लालटेन की चमक विरोधियों की आंखें चौंधिया सकती है। पीके की जनसुराज को लेकर जितना शोर-शराबा था वह उस कदर वोट में तब्दील होता नहीं दिखा। बिहार चुनाव की पूर्व बेला में हरियाणा चुनाव में कथित वोट चोरी को लेकर राहुल के खुलासे ने युवा व ‘ज़ेनज़ी’ पीढ़ी को वाक्ई आंदोलित किया, अब यह व्यवस्था विरोधी वोटों में कितना तब्दील हो

पाया इसका पता तो 14 नवंबर को ही चल पाएगा।
क्या गेम चेंजर साबित होगा यह प्लॉन?

शह-मात की सियासी बिसात पर पीएम मोदी को अपने हर प्यादे की उपयोगिता, आक्रामकता व उनकी सामयिकता का बखूबी अंदाजा है। सो, जैसे ही उन्हें लगा कि बिहार की चुनावी हवा कोई और पैंतरा बदल सकती है, उन्होंने झट से वहां की पूरी चुनावी कमान अपने हाथों में थाम ली। जो नीतीश कुमार भगवा रणनीति में धीरे-धीरे किनारे कर दिए गए थे, उन्हें मुख्य रंगमंच पर अवतरित कराया गया। जिन इलाकों में जहां बड़े-बड़े चमकदार भाजपा नेताओं के पोस्टर लगे थे, वहां रातों-रात नीतीश के पोस्टर लगा दिए गए। लल्लन को उनके मोकामा में दिए गए बयानों के लिए उन्हें प्रतिनायक साबित करने की होड़ मच गई। भाजपा ने इस नैरेटिव को भी सिरे से नकारने के प्रयास किए कि ऊंची जातियों के नेता ही उनकी स्वभाविक पसंद है। भाजपा को बखूबी इस बात का इल्म हो गया था कि खुद को एनडीए का सीएम फेस घोि​षत नहीं किए जाने से नीतीश बेतरह कुपित हैं, उन्होंने जाने-अनजाने जदयू कैडर में भी यह संदेशा दे दिया है कि ’अगर इस दफे राज्य में एनडीए बहुमत में आ भी जाएगा तो भाजपा उन्हें मुख्यमंत्री नहीं बनाएगी’, पीएम मोदी ने समय रहते इस बात को भांप लिया था और वे रातों-रात

इसके निदान में जुट गए।
घटक दलों की ठसक से परेशान भाजपा

भाजपा को बिहार चुनाव में कई मोर्चों पर एक साथ लड़ना पड़ रहा है, वह अपने गठबंधन साथियों की समय-असमय बेजा मांगों से भी परेशान है। सूत्रों की मानें तो पहले फेज के चुनाव से पहले जब भाजपा के एक बड़े नेता पटना में एक प्रेस कांफ्रेंस करने वाले थे तो उनके एक घटक दल के मुखिया उनसे पटना मिलने आ पहुंचे। उस नेता जी ने भाजपा के बड़े नेता से गुहार लगाई कि ’अब चूंकि चुनाव सिर पर है और उनका चुनाव फंड लगभग खत्म हो चुका है तो उन्हें प्रति निर्वाचन क्षेत्र के हिसाब से अपने उम्मीदवारों को चुनाव लड़वाने के लिए एकमुश्त राशि का भुगतान किया जाए।’ इस पर बड़े नेता बेतरह भड़क गए बोले-’अब भी आपका ध्यान चुनाव बनाने की जगह, पैसा बनाने पर है, मैं आपको अपना सर्वे दिखाता हूं, आपके 6 में से 5 उम्मीदवार तो अभी ठीक से लड़ाई में भी नहीं आ पाए हैं, मेरी आपसे गुज़ारिश है कि आप जाओ, गांव-गांव घूमो और पूरी तरह चुनाव में लग जाओ, अपने उम्मीदवारों से भी कहें कि वे और मेहनत करें, हमारे लिए इस बार एक-एक

सीट बहुत इंर्पोटेंट हैं।’ नेता जी उल्टे पैर घर को लौट आए।
...और अंत में
बिहार चुनाव में महागठबंधन की नज़र लगातार लोक जनशक्ति पार्टी (राम विलास) के पासवान वोटरों पर टिकी है, महागठबंधन इसमें डेंट लगाना चाहता है। यही सोचकर दरभंगा में एक-दूसरे के खिलाफ रणनीतियां बनीं । कहते हैं महागठबंधन को अपने इस पहल का फौरी लाभ मिला, एक अनुमान के अनुसार पहले चरण के मतदान में अकेले दरभंगा में लगभग 35 फीसदी पासवान वोटरों ने एनडीए से अलग होकर महागठबंधन के पक्ष में वोट किया। इस बार भाजपा ने चिराग पासवान की पार्टी के लिए 29 सीटें छोड़ी है, पर माना जाता है कि इस दफे के चुनाव में चिराग की पार्टी के लिए जीत की दहाई का आंकड़ा छू पाना कतई आसान नहीं होगा।
एनटीआई

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त्रिदीब रमण

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