दिलचस्प होगा बिहार का चुनावी दंगल
‘बिहार की धरती से आज मैं पूरे विश्व से कहता हूं कि भारत हर एक आतंकवादी…
‘बिहार की धरती से आज मैं पूरे विश्व से कहता हूं कि भारत हर एक आतंकवादी और उनके सरपरस्तों की पहचान करेगा, उनका पीछा करेगा और उन्हें सज़ा देगा।’ ये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा। वे बिहार में एक चुनावी रैली को संबोधित कर रहे थे, जो हाल ही में हुए आतंकी हमले के कुछ दिन बाद आयोजित हुई थी, जिसमें 26 निर्दोष लोगों की जान चली गई थी। यह आतंकी हमला जम्मू-कश्मीर के पहलगाम से लगभग पांच किलोमीटर दूर स्थित बैसरन नामक ऊंचे पहाड़ी मैदान में हुआ था।
इस बीच विपक्ष ने प्रधानमंत्री पर तीखा हमला करते हुए आरोप लगाया है कि वे इस आतंकी हमले का इस्तेमाल बिहार विधानसभा चुनावों में लाभ लेने के लिए कर रहे हैं। कर्नाटक सरकार में मंत्री और कांग्रेस नेता दिनेश गुंडू राव ने प्रधानमंत्री पर आरोप लगाया कि वे हर राष्ट्रीय संकट का राजनीतिक फायदा उठाते हैं। वे बिहार में राजनीतिक लाभ लेने के लिए मौजूदा संकट का सहारा ले रहे हैं। मोदी जी के लिए हर मुद्दा सिर्फ राजनीतिक लाभ का जरिया है। गुंडू राव यहीं नहीं रुके, उन्होंने प्रधानमंत्री पर राजनीतिक अवसरवाद का आरोप लगाते हुए कहा कि संकट की इस घड़ी में मीडिया से संवाद करने के बजाय उन्होंने एकतरफा बयान सोशल मीडिया और चुनावी रैलियों के माध्यम से जारी किए।
वर्तमान परिस्थितियों में आम नागरिकों की हत्या से गमज़दा देश में सियासी घमासान तेज हो गया है। कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बिहार यात्रा को लेकर सवाल उठाए हैं। इन दलों का कहना है कि एक ओर देश शोक में डूबा है, वहीं दूसरी ओर प्रधानमंत्री चुनावी प्रचार में लगे हुए हैं। आरजेडी ने गंभीर आरोप लगाते हुए कहा है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और भाजपा सरकार राज्य मशीनरी पर जबर्दस्त दबाव बना रही है ताकि प्रधानमंत्री की रैली के लिए भीड़ जुटाई जा सके।
इन सबके बीच यह बात किसी से छुपी नहीं है कि बिहार चुनाव भाजपा के लिए कितने अहम हैं। पार्टी राज्य में अपना राजनीतिक वजूद मजबूत करने की कोशिशों में जुटी है। साथ ही अब वह मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और जेडीयू की परछाई से बाहर निकलना चाहती है। यही वजह है कि अब तक भाजपा ने नीतीश को भावी मुख्यमंत्री के रूप में खुला समर्थन नहीं दिया है, जबकि चुनाव उन्हीं के नेतृत्व में लड़ा जा रहा है। हालांकि नीतीश कुमार की लगातार पाला बदलने की राजनीति उनके लिए दोधारी तलवार साबित हुई है। एक तरफ जहां उनके गठबंधन बदलने को राजनीति के जंगल में उनकी जीवटता के तौर पर देखा जाता है, वहीं बार-बार पाला बदलने से उनकी विश्वसनीयता को भी झटका लगा है।
आपको बता दें कि नीतीश कुमार ने 2013 में बीजेपी से नाता तोड़ा था लेकिन चार साल बाद आरजेडी के साथ सत्ता साझा करने के बाद फिर से एनडीए में लौट आए। 2022 में उन्होंने फिर से आरजेडी खेमे का रुख किया लेकिन पिछले साल एक बार फिर एनडीए में वापसी कर ली। उनकी राजनीतिक समझ पर कोई सवाल नहीं है लेकिन रिपोर्ट्स बताती है कि नीतीश कुमार अब पहले जैसे नहीं रहे। उनके व्यवहार में अस्थिरता की खबरें सामने आ रही हैं जिससे उनकी शारीरिक और मानसिक स्थिति को लेकर अटकलें लगाई जा रही हैं। कई लोग उन्हें अब एक थकी हुई ताकत मानने लगे हैं। इसके उलट भाजपा को बिहार की चुनावी राजनीति में ‘उभरता सितारा’ कहा जा रहा है।
इतना जरूर है कि नीतीश कुमार द्वारा शुरू की गई महिलाओं पर केंद्रित योजनाएं अब भी उन्हें फायदा पहुंचा सकती हैं। उनकी ‘जाति-निरपेक्ष’ नीति का असर खासतौर से महिलाओं में देखा जा रहा है जो जाति और शायद पार्टी की सीमाओं को पार कर उनके समर्थन में आ सकती हैं। राज्य सरकार की महिला केंद्रित योजनाओं को प्रमुखता से दिखाकर महिलाओं को साधने की तैयारियां जोरों पर हैं। जाति और धर्म की सीमाओं से ऊपर उठकर महिलाओं को लुभाने की रणनीति बनाई जा रही है। सरकार की ओर से चलाई गई योजनाओं के वीडियो दिखाए जाने की योजना है, जिनमें स्कूल जाने वाली लड़कियों को दी गई 90 लाख साइकिलें, महिलाओं के लिए बीमा और शिक्षा से जुड़ी योजनाएं शामिल हैं। इसके अलावा विवादास्पद शराबबंदी कानून को भी प्रमुखता से पेश किया जाएगा और यह बताया जाएगा कि इस फैसले से घरेलू हिंसा के मामलों में गिरावट आई है।
नीतीश कुमार की एक और बड़ी ताकत है उनकी जातीय पकड़, खासकर कुर्मी समुदाय पर उनका प्रभाव, अति पिछड़ी जातियों और गैर-यादव पिछड़ी जातियों में उनकी पकड़ ऐसे कारक हैं जिन्हें भाजपा नज़रअंदाज़ नहीं कर सकती। इसके अलावा भ्रष्टाचार के मामले में उनका साफ-सुथरा रिकॉर्ड और वर्तमान में उनकी राजनीतिक प्रासंगिकता भाजपा के लिए उपयोगी साबित हो सकती है। ऐसे में अगर भाजपा नीतीश कुमार से दूरी बनाने की कोशिश करती है तो बिहार के चुनावी गणित में इसका नुक्सान हो सकता है।
हालांकि भाजपा की हिचकिचाहट नीतीश कुमार को लेकर कम है और खुद को राज्य की राजनीति में सर्वोपरि बनाने की महत्वाकांक्षा को लेकर ज्यादा है। पार्टी फिलहाल गठबंधन में संतुलन बनाए रखने के लिए उन्हें नाराज़ करने का जोखिम नहीं उठाना चाहती लेकिन साथ ही वह स्वतंत्र रूप से अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए भी प्रतिबद्ध है। उसका इरादा साफ है, राज्य की राजनीति में दबदबा कायम करना और निर्णायक ताकत बनना। फिलहाल वह विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी है और अपनी स्थिति को और मजबूत करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती।
कांग्रेस और आरजेडी जैसी प्रमुख पार्टियों के अलावा इस बार चुनावी मैदान में कुछ नए चेहरे भी उतर रहे हैं। इनमें शामिल है ‘आप सब की आवाज’ जो कि नीतीश कुमार के करीबी और पूर्व मंत्री द्वारा शुरू की गई पार्टी है। इसके अलावा चर्चित पूर्व आईपीएस अधिकारी शिवदीप वामनराव लांडे, जिन्हें फिल्मी नाम सिंघम से जाना जाता है, भी ‘हिन्द इंकलाब पार्टी’ के बैनर तले सियासी पारी शुरू करने जा रहे हैं। ऐसे कई छोटे मगर महत्वाकांक्षी दल इस बार मुकाबले को बहुकोणीय बना रहे हैं।
अगर पहलगाम में आतंकी हमला नहीं हुआ होता तो एनडीए जिसमें जनता दल (यूनाइटेड), भाजपा और चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी शामिल हैं, को विपक्षी गठबंधन से कड़ी चुनौती मिलती। इस गठबंधन में राष्ट्रीय जनता दल, कांग्रेस और वाम दल एकजुट होकर सरकार को घेरने की तैयारी में थे लेकिन पहलगाम ने इस पूरे परिप्रेक्ष्य को बदल दिया है। दरअसल अब चुनावों का रुख और मिजाज आतंकवादी हमले और मोदी की तेज़ प्रतिक्रिया की ओर मुड़ गया है न कि राज्य के मुद्दों की ओर। अब विकास योजनाएं राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताओं के सहारे आगे बढ़ेंगी।
भाजपा के लिए मुख्य थीम यह होगी कि देश को पाकिस्तान से निपटने के लिए मोदी जैसे मजबूत नेता की जरूरत है। इस लिहाज से राष्ट्रीय सुरक्षा का बड़ा मसला सभी अन्य मुद्दों पर हावी हो जाएगा। वर्तमान स्थिति में राष्ट्रीय भावना का प्रभाव सब पर पड़ा हुआ है। चुनाव अब इस पर नहीं होंगे कि राज्य का मुख्यमंत्री कौन बनेगा, बल्कि इस पर होगा कि देश को बाहरी ताकतों से सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी किसके हाथों में है और यहीं पर मोदी की शख्सियत अहम साबित होगी, एक मजबूत प्रधानमंत्री की छवि, जो भारतीय जनता पर किए गए अत्याचार का बदला लेने के लिए संकल्पित है। और यही बात भाजपा पूरी तरह से भुनाएगी।
जब भी देश किसी संकट का सामना करता है तो लोग एक मजबूत नेता के पीछे एकजुट हो जाते हैं। भाजपा का पैकेज इस लिहाज से बड़े अच्छे तरीके से तैयार किया गया है, मोदी-नीतीश का संयोजन जो विपक्ष के मुकाबले इसे मजबूती देता है। मोदी वो मजबूत नेता हैं जिसकी देश को आवश्यकता है और राज्य सरकार की कल्याणकारी योजनाओं का निरंतर जारी रहना। इस प्रकार अगर भाजपा नेतृत्व नीतीश कुमार को अगले मुख्यमंत्री के रूप में नहीं भी नामित करता है तो उनकी शासन व्यवस्था का निरंतरता गठबंधन के पक्ष में काम करेगा। हालांकि बिहार चुनाव अभी कुछ महीने दूर हैं लेकिन इससे पहले चुनावी प्रचार-प्रसार में पहलगाम को जनता की यादों से मिटने नहीं दिया जाएगा। यह भाजपा के लिए एक प्रभावी, हालांकि दुर्भाग्यपूर्ण अस्त्र है, जिसे वह अपने चुनावी लाभ के लिए इस्तेमाल करेगी।