बिहार की चुनावी ‘चौसर’
अगले महीने होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए बिहार में चुनावी चौसर बिछ चुकी है। राज्य में सत्तारूढ़ एन.डी.ए. गठबन्धन व विपक्षी इंडिया गठबन्धन के बीच कांटे की लड़ाई होने जा रही है परन्तु जिस तरह भाजपा के नेतृत्व वाले एन.डी.ए. गठबन्धन ने अपने सहयोगी दलों के साथ सीट बंटवारे में बाजी मारकर पहल की है उससे कांग्रेस व राष्ट्रीय जनता दल के सहकार वाला इंडिया गठबन्धन पीछे छूट गया है। इससे केवल इतना ही पता लगता है कि विपक्षी इंडिया गठबन्धन में सीटों के बंटवारे को लेकर मतैक्य कायम होने में अभी देरी है जबकि 6 नवम्बर को होने वाले प्रथम चरण के मतदान के लिए नामांकन पत्र भरने में केवल चार दिन का समय ही शेष रह गया है। बिहार की राजनिति को अगर देखें तो 1990 के बाद से इस राज्य में क्षेत्रीय दलों का बोलबाला रहा है। इस मामले में अव्वल नम्बर पर श्री लालू प्रसाद की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (राजद) रही है जबकि दूसरे नम्बर पर वर्तमान मुख्यमन्त्री श्री नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल (यू) या जद (यू) रही है।
इस राज्य में केन्द्र में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी का प्रभाव अपने बूते पर वह नहीं रहा है कि वह अकेले सत्तारूढ़ हो सके अतः पिछले लगभग तीन दशकों से इस पार्टी का श्री नीतीश कुमार के साथ गठबन्धन तभी से रहा है जब से नीतीश बाबू की पार्टी समता पार्टी हुआ करती थी। इसके बाद 2005 से जद (यू) भाजपा गठबन्धन की सरकार बनती चली गई जिसका मुख्य रूप से कांग्रेस व राष्ट्रीय जनता दल से मुकाबला होता रहा परन्तु कालान्तर में कांग्रेस ने लालू जी की पार्टी राजद के साथ मिलकर चुनाव लड़ना शुरू कर दिया। अतः राज्य में दोनों राष्ट्रीय पार्टियों भाजपा व कांग्रेस की हालत दोयम पायदान पर ही बनी रही। मगर इन 2025 के चुनावों से पहले भाजपा की स्थिति बिहार में सुधरी जिसकी वजह से जनता दल (यू) व भाजपा एनडीए में रहते हुए बराबर-बराबर सीटों पर चुनाव लड़ रही हैं। वहीं दूसरी ओर इंडिया गठबन्धन में कांग्रेस की स्थिति दूसरे पायदान पर ही बनी हुई है और यह राजद के मुकाबले बहुत कम सीटों पर ही चुनाव लड़ेगी। पिछले 2020 के चुनावों में कांग्रेस ने 70 सीटों पर चुनाव लड़ा था परन्तु यह केवल 19 सीटें ही जीत पाई थी। इसे देखते हुए इस बार राजद कांग्रेस को कम सीटें देना चाहती है जिसकी वजह से इंडिया गठबन्धन में सीटों का बंटवारा अटका हुआ है।
वहीं एन.डी.ए. में बीते कल ही सीट बंटवारे पर अन्तिम फैसला हो चुका है और भाजपा व जद (यू) ने 101–101 सीटों पर लड़ना गंवारा कर लिया है परन्तु इससे बिहार वासियों को यह सन्देश चला गया है कि अब जद (यू) एन.डी.ए. गठबन्धन में बड़े भाई की भूमिका में नहीं है। एनडीए में पूर्व मुख्यमन्त्री जीतनराम मांझी की हिन्दुस्तानी अवामी मोर्चा व चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी भी शामिल है। ये दोनों दल केवल बिहार तक सीमित हैं हालांकि स्व. राम विलास पासवान की पार्टी लोक जनशक्ति का बिहार से बाहर भी हल्का प्रभाव देखा गया है परन्तु मांझी की पार्टी केवल बिहार के कुछ अंचलों में ही सिमटी हुई है। वास्तव में लोक जनशक्ति व हिन्दुस्तानी अवामी मोर्चा जाति आधारित पार्टी हैं जिसकी वजह से भाजपा इन्हें अपने साथ हर कीमत पर रखना चाहती है। चिराग व मांझी को केन्द्रीय मन्त्रिमंडल में जगह भी इसी कारण मिली हुई है क्योंकि बिहार राज्य में जातिगत आधार पर वोट बैंक बने हुए हैं। भाजपा ने लोक जनशक्ति पार्टी को 29 व अवामी मोर्चा को छह सीटें आवंटित की हैं। इसके साथ ही बिहार की एक और अन्य क्षेत्रीय पार्टी राष्ट्रीय लोकमोर्चा भी एन.डी.ए. में शामिल है जिसका नाम राष्ट्रीय लोक मोर्चा है और इसके सर्वेसर्वा श्री उपेन्द्र कुशवाहा हैं। यह भी जाति आधारित पार्टी है। इसे भी भाजपा ने छह सीटें आवंटित की हैं।
इस प्रकार भाजपा ने इंडिया गठबन्धन की गोलबन्दी कर दी है। इस सीट बंटवारे से एन.डी.ए. के सभी दल सन्तुष्ट दिखाई दे रहे हैं परन्तु इंडिया गठबन्धन में अभी भी बंटवारे पर रस्साकशी जारी है। खबर है कि कांग्रेस इस बार कम से कम 60 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है। वह बिहार के सीमांचल जिलों की वे सीटें विशेषतौर पर चाहती है जहां से पिछले चुनावों में असीदुद्दीन ओवैसी की पार्टी इत्तेहादे मुसलमीन के पांच विधायक जीते थे। कांग्रेस देशवासियों को इसके माध्यम से सन्देश देना चाहती है कि भारत के मुसलमानों में भी वह समान रूप से लोकप्रिय है। जबकि लालू यादव की पार्टी राजद पूरे राज्य में मुस्लिम-यादव वोट बैंक के सहारे ही अपनी चुनावी नैया पार लगाती रही है। यह कुल 137 सीटें लड़ना चाहती है जबकि राज्य विधानसभा की कुल सदस्य संख्या 243 है और इंडिया गठबन्धन में श्री मुकेश सहनी की क्षेत्रीय पार्टी विकाशील इंसान पार्टी भी शामिल है।
पिछली बार इसका समझौता भाजपा के साथ था। यह पार्टी भी कम से कम 20 सीटों की मांग कर रही है जबकि गठबन्धन में शामिल वामपंथी पार्टियां भी कम से कम 60 सीटें मांग रही हैं। पिछली बार के चुनाव में इन पार्टियों को शानदार सफलता हासिल हुई थी। कुल मिलाकर देखें तो दोनों ही गठबन्धन जातिगत आधार पर अपना सीट समझौता करते नजर आ रहे हैं मगर इंडिया गठबन्धन की कमान लालू जी के पुत्र तेजस्वी यादव के हाथ में है जो बिहार विधानसभा में वर्तमान में विपक्ष के नेता भी हैं। पिछले दिनों उन्होंने कांग्रेस नेता श्री राहुल गांधी के साथ मिलकर राज्य में वोट अधिकार यात्रा की थी जिसमें चुनाव आयोग निशाने पर था। विपक्ष चुनाव आयोग पर वोट चोरी कराने का आरोप लगा रहा था। पूरे बिहार में इस यात्रा के चलते एक बार तो लगा कि इस दौरान लगाया गया ‘वोट चोर- गद्दी छोड़’ का नारा चुनावों का मूल विमर्श बनेगा परन्तु इस विमर्श को प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने गरीब महिलाओं को आजीविका स्कीम के तहत दस-दस हजार रुपये बांट कर कुन्द कर दिया और महिला सशक्तीकरण का यह विमर्श अपनी जगह बनाने लगा तो तेजस्वी यादव ने यह घोषणा कर दी कि वह सत्ता में आने पर बिहार के हर उस परिवार के एक व्यक्ति को सरकारी नौकरी देंगे जिसमें कोई भी सरकारी नौकर नहीं है। अतः आजकल इस विमर्श के चर्चे बिहार में हो रहे हैं। यदि समग्र रूप से देखा जाये तो इस बार के बिहार के चुनाव मील का पत्थर साबित होंगे क्योंकि जाति से ऊपर का विमर्श तैराने की कोशिशें दोनों ही प्रतिद्वन्द्वी राष्ट्रीय पार्टियों द्वारा की जा रही हैं।