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बिहार में ‘दुःशासनी’ प्रशासन

क्या गजब का खेल हो रहा बिहार में कि एक जमाने के सुशासन बाबू कहे जाने वाले मुख्यमन्त्री नीतीश कुमार उस दुःशासनी प्रशासन के प्रतीक बनते जा रहे हैं

07:53 AM Aug 05, 2018 IST | Desk Team

क्या गजब का खेल हो रहा बिहार में कि एक जमाने के सुशासन बाबू कहे जाने वाले मुख्यमन्त्री नीतीश कुमार उस दुःशासनी प्रशासन के प्रतीक बनते जा रहे हैं

क्या गजब का खेल हो रहा बिहार में कि एक जमाने के सुशासन बाबू कहे जाने वाले मुख्यमन्त्री नीतीश कुमार उस दुःशासनी प्रशासन के प्रतीक बनते जा रहे हैं जिसमें कन्या आवासों को व्यभिचार के अड्डों में परिवर्तित करके पहले से ही फटेहाल इस राज्य को और कलंकित किया जा रहा है। यदि नीतीश बाबू में सुशासन के लिए थोड़ी भी तड़प होती तो अब तक वह अपने पद से इस्तीफा दे चुके होते मगर सत्ता के लिए वह इस कदर दीवाने हो चुके हैं कि केवल 140 मिनट के भीतर एेसी पलटी मारते हैं कि सियासत मंे उनका नाम ‘पलटू चाचा’ पड़ जाने पर भी उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता। याद कीजिये कि 27 जुलाई 2017, किस तरह नीतीश बाबू ने अपने ही उप मुख्यमन्त्री तेजस्वी यादव पर भ्रष्टाचार के कथित आरोप लगने के बाद पलटी मारकर मुख्यमन्त्री पद से इस्तीफा देने की घोषणा करके फिर से सरकार बनाने का निमन्त्रण प्राप्त कर लिया था। तब उनकी आत्मा उन्हें कचोट रही थी और कह रही थी कि लालू जी की पार्टी के नुमाइन्दे के तौर पर उनके पुत्र का उनकी ही सरकार में उप मुख्यमन्त्री पद पर बने रहना उनकी छवि को धूमिल कर देगा इसलिए उस गठबन्धन को तोड़ देना चाहिए जिसे 2015 में बिहार की जनता ने स्पष्ट जनादेश देकर सत्ता पर बिठाया था मगर अब जबकि मुजफ्फरपुर के कन्या आवास में 18 वर्ष से कम आयु की गरीब छात्राओं के साथ बलात्कार करने के सिलसिले का खुलासा होने पर इस राज का पर्दाफाश हुआ कि उन्हीं के मन्त्रिमंडल की एक महिला मन्त्री के पति के तार इस छात्रावास को चलाने वाले के साथ जुड़े हुए हैं और उसकी जान-पहचान उनकी सरकार में इस हद तक है कि सरकार उसे राज्य पुरस्कार तक देने वाली थी तो सुशासन बाबू की आत्मा नहीं जागती और उल्टे वह उपदेश दे डालते हैं कि हमें देखना होगा कि समाज किधर जा रहा है। एेसी दुष्प्रवृत्तियां क्यों पनप रही हैं?

भई वाह! किस अन्दाज से बिहारियों पर कयामत बरपा की गई है कि हर आदमी सोच रहा है कि अपने गिरेबान में पहले झांक कर क्यों न देखा जाये! नीतीश बाबू, जुल्म की भी एक इन्तेहा होती है। यह जुल्म इतना न बढ़ जाये कि हर बिहारी सोचने पर मजबूर हो जाये कि ‘बेटी बचाओ’! सांस्कृतिक रूप से बिहार पूरी दुनिया को रोशनी दिखाने का केन्द्र रहा है। आठवीं सदी तक इसी बिहार में नालन्दा और विक्रमशिला जैसे विश्वविद्यालय थे जहां दुनियाभर से विद्यार्थी आकर ज्ञान की रोशनी लेकर जाते थे। वर्तमान में यह उन श्री कृष्ण बाबू का बिहार भी है जिनका सुशासन पूरे भारत मंे सबसे ऊंचे पायदान पर रखा जाता था। यह उन तारकेश्वरी सिन्हा का भी बिहार है जिन्होंने नारी के सम्मान और अधिकारों के लिए एक जमाने में संसद को गुंजाये रखा था मगर इन सब तथ्यों का ध्यान सत्ता का लोभी राजनीतिज्ञ कभी नहीं रख सकता क्योंकि उसका एकमात्र ध्येय कुर्सी होता है।

इसका ध्यान स्व. कर्पूरी ठाकुर जैसा जननेता रख सकता था जिसने एक नेपाली लड़की द्वारा लगाये गये अनर्गल आरोपों पर ही मुख्यमन्त्री की कुर्सी को लात मार दी थी किन्तु नीतीश बाबू ने तो सत्ता की खातिर अपनी ही पार्टी के अध्यक्ष रहे श्री शरद यादव का भी लिहाज तक नहीं किया और अपनी पार्टी जद (यू) को लावारिस बनाकर इसकी कमान दिल्ली में छुटभैये नेताओं के हाथ में पकड़ा दी मगर सत्ता का लालच आखिरकार स्वयं ही एेसी गलतियां करा जाता है और लोकतन्त्र मंे जनता को इस तरह सचेत कर देता है कि नेता की छवि ‘सीधे तवे से उल्टे तवे’ में पलटने में देर नहीं लगती। सवाल यह नहीं है कि नीतीश बाबू के शासन के दौरान एेसे मामले प्रकाश में आ रहे हैं बल्कि सवाल यह है कि एेसे मामलों में सरकार संलिप्त पाई जा रही है। गरीब परिवारों की छात्राएं किसी भी सूरत में सफेदपोश समझे जाने वाले कथित संभ्रान्त लोगों की काम-पिपासा का आहार नहीं हो सकतीं।

क्या सितम है कि इन छात्रावासों में गर्भपात कराने के उपकरणों से लेकर नशीली दवाओं की बाकायदा सुलभता थी और सत्ता के गलियारों में चक्कर लगाने वाला आरोपी यह कार्य सरकार से वित्तीय मदद लेकर ही कर रहा था? इससे यही साबित होता है कि नीतीश सरकार की एेसे मामले में संलिप्तता को खारिज नहीं किया जा सकता है। लोकतन्त्र में पहली जिम्मेदारी उन चुने हुए लोगों की सरकार की ही होती है जिनके हाथ में प्रशासन की बागडोर आम जनता अपने एक वोट के अधिकार से देती है मगर उलटी गंगा बहाई जा रही है कि सरकार ने खुद ही इस मामले का पता चलाया और टाटा इंस्टीट्यूट आफ सोशल साइन्सेज को छात्रावासों का सर्वेक्षण करने के लिए कहा और जब हकीकत उजागर हुई तो उसकी सीबीआई की जांच के आदेश भी प्रारम्भिक ना-नुकर के बाद दे दिये गये। आंखों में धूल झोंकने का क्या नाटक किया जा रहा है? वह महिला मन्त्री तो जमकर भाषण झाड़ रही है जिसका पति इस पूरे कांड में संलिप्त है। एेसे में जांच के मायने क्या हैं ? सृजन घोटाला भी तो कहीं पड़े हुए धक्के खा रहा है? दरअसल मुजफ्फरपुर बालिका बलात्कार कांड के बाद से यह तय हो गया है कि बिहार को सुशासन बाबू नीतीश कुमार ने खुद ही ‘विशेष राज्य’ का दर्जा दे डाला है।

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