महाराष्ट्र में नए समीकरण गढ़ रही है भाजपा
महाराष्ट्र में एक बार फिर से खेला हो सकता है। दो पुराने दोस्त अपनी नई-नई दुश्मनी…
महाराष्ट्र में एक बार फिर से खेला हो सकता है। दो पुराने दोस्त अपनी नई-नई दुश्मनी भुला कर एक हो सकते हैं। इसकी एक बानगी तब देखने को मिल भी गई जब अपने चाचा को ‘हैप्पी बर्थडे’ कहने अजित पवार सपरिवार उनके घर जा पहुंचे। माना जाता है कि भाजपा नेतृत्व ने अजित पवार को समझाया है कि ‘वे फिर से शरद पवार से एका कर लें और दोनों एनसीपी का विलय हो जाए।’ वैसे भी शरद पवार से मोदी के निजी िरश्ते पहले की तरह बने हुए हैं। वहीं संघ भी अंदरखाने से उद्धव ठाकरे को अब भी उतना ही पसंद करता है। संघ चाहता है कि उद्धव ‘बीती ताहि बिसारिए’ की तर्ज पर भाजपा से अपने पुराने गिले-शिकवे भुला कर फिर से एक पाले में आ जाएं।’
महाराष्ट्र विधानसभा की ताजा-ताजा हार से उद्धव अभी ठीक से उबरे भी नहीं हैं कि उनकी पार्टी के अंदर ही कुछ विद्रोह की सुगबुगाहट देखने को मिल रही है। माना जाता है कि िशवसेना के कुछ पुराने नेता आदित्य ठाकरे की उदारवादी राजनीति का बोझ उठाने को तैयार नहीं। महाराष्ट्र के सीएम देवेंद्र फडणवीस ने भी शरद पवार और उद्धव ठाकरे से अपने तार बकायदा पहले की तरह जोड़ रखे हैं। सूत्रों की मानें तो भाजपा शीर्ष तेलुगु देशम पार्टी की बैसाखी पर टिके नहीं रहना चाहता, क्योंकि भविष्य में केंद्रनीत मोदी सरकार कुछ ऐसे विधेयक लाने वाली है जिस पर चंद्रबाबू नायडू का समर्थन हासिल कर पाना एक टेढ़ी खीर साबित हो सकता है। सो, शरद पवार गुट के 8 और उद्धव ठाकरे गुट के 9 सांसदों पर भाजपा शीर्ष की निगाहें टिकी हैं, जिसकी कुल गिनती 17 बैठती है जो फिर भी तेलुगु देशम के 16 सांसद संख्या से 1 ज्यादा है। वहीं नीतीश की जदयू भाजपा के लिए एक बेहद सॉफ्ट टारगेट है। यह बात तो जदयू के कार्यकारी अध्यक्ष संजय झा भी बखूबी समझते हैं, जिनके तार भाजपा से कहीं पहले से जुड़े हैं।
बगावत पर क्यों उतारू हैं छगन भुजबल
अजित पवार गुट के एक बड़े नेता छगन भुजबल इन दिनों अपने पार्टी नेतृत्व के खिलाफ विद्रोह की दुदंुभि फूंकने में जुटे हैं। इस बार अजित ने महाराष्ट्र के नवगठित कैबिनेट से भुजबल को बाहर का रास्ता दिखा दिया है और यही बात इस बड़े ओबीसी नेता को खाए जा रही है। भुजबल इस कदर नाराज़ हैं कि वे अजित के समझाने और उन्हें राज्यसभा में भेजे जाने का ऑफर दिए जाने के बावजूद नासिक आ गए और अपनी लड़ाई सड़क पर लड़ने के संकेत भी दे दिए। इसका खुलासा उन्होंने नासिक के ही ‘महात्मा फूले समता परिषद’ की बैठक में कर दिया।
इस लड़ाई में आग में घी डालने का काम कर रहे हैं महाराष्ट्र के सीएम देवेंद्र फडणवीस, जिन्होंने बातों ही बातों में भुजबल से यह पहले ही कह दिया था कि ‘वे अपने कैबिनेट में उन्हें यानी भुजबल को शामिल करने के लिए एकदम तैयार बैठे थे, पर अजित दादा उनके नाम पर माने ही नहीं।’ तो इससे क्या समझा जाए कि क्या भुजबल के लिए भाजपा ने भी अपने दरवाजे खोल रखे हैं क्योंकि भगवा पार्टी जानती है कि भुजबल राज्य में पिछड़ों के एक लोकप्रिय नेता हैं।
कभी बायकुला में सब्जी बेचने वाले भुजबल का सियासी सफर भी दिलचस्प दास्तानों की एक लंबी फेहरिस्त है। शरद पवार हों, बाल ठाकरे या फिर सोनिया गांधी अलग-अलग पार्टियों में रह कर भी वे सदैव पार्टी शीर्ष के उतने ही दुलारे बने रहे। वे िशवसेना के संस्थापक सदस्यों में से एक हैं। अजित पवार के राज्यसभा का ऑफर उन्होंने यह कहते हुए ठुकरा दिया कि ‘पहले दो साल के लिए मुझे महाराष्ट्र सरकार में मंत्री बना दो फिर चाहे तो राज्यसभा भेज देना।’ कहते हैं बढ़ती उम्र की वजह से उन्हें मंत्री नहीं बनाया गया क्योंकि अब वे 77 वर्ष के हो चुके हैं। वैसे उन पर चल रहे 3 मुकदमें सीधे भ्रष्टाचार से जुड़े हैं, जिसकी जांच एसीबी और ईडी कर रही है, पर इससे क्या ईडी की जांच तो अजित पवार पर भी लंबित है, पर भाजपा की ‘वाशिंग मशीन’ है न!
अपनी अलग ढफली बजाते योगी
सब जानते हैं कि अर्जुन की भांति योगी आदित्यनाथ की निगाहें भी बस मछली की आंख पर टिकी हैं, सो जब बात इमेज पर आ जाए फिर तो वे खुद की भी नहीं सुनते। ताजा मसला भाजपा विधायक हरीश शाक्य से जुड़ा, जिन पर कोर्ट के आदेश के बाद गैंगरेप और धोखाधड़ी के मामले में एफआईआर दर्ज हुई है, योगी उन्हें कोई मोहलत नहीं देना चाहते, वे चाहते हैं कानून निष्पक्षता से अपना काम करे। इतना ही नहीं शाक्य पर मामला दर्ज होने के बाद योगी ने अपनी ही पार्टी के दबंग और आपराधिक छवि वाले विधायकों की पड़ताल शुरू कर दी है जिन पर आपराधिक मामले पहले से दर्ज हैं। कहते हैं कि योगी के पास ऐसे कोई दो दर्जन से ज्यादा विधायकों की फाइल पहुंच चुकी है।
कहा जाता है कि अपनी जांच-पड़ताल के बाद योगी इन फाइलों पर ‘रेड मार्क’ लगा सकते हैं यानी आने वाले 2027 के विधानसभा चुनाव में इन दबंगों का टिकट कटना तय मानिए, अगर यूपी के टिकट वितरण में योगी की खुल कर चली। दरअसल योगी चाहते हैं कि उनके नेतृत्व में जो विधायक जीत कर आएं वे साफ-सुथरी छवि वाले हों।
संसद की सुरक्षा पर भी सवाल
संसद का शीतकालीन सत्र भारी हो-हंगामे के बीच भले ही समाप्त हो गया, पर अपने पीछे कई अनुत्तरित सवाल भी छोड़ गया है। खास कर डॉ. अंबेडकर के मुद्दे पर सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच मचे घमासान और धक्का-मुक्की से संसद की सुरक्षा पर ही सवालिया निशान लग गए हैं।
सवाल यह भी उठ रहे हैं कि संसद के मुख्य द्वार पर लगे कैमरों की फुटेज अब तक सार्वजनिक क्यों नहीं की गई है? दिलचस्प है कि ओडिशा से भाजपा सांसद प्रताप सारंगी, जिन्होंने नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी पर धक्का देने के आरोप लगाए हैं, अस्पताल में इलाज के दौरान जैसे-जैसे वे बयान बदल रहे हैं उनकी पट्टियों की संख्या में भी इजाफा हो रहा है। जाने यह कैसी चोट है या चोट की ओट में सियासत है। सनद रहे कि ये वही सारंगी हैं जिनके कथित शार्गिद दारा सिंह ने 1999 में ओिडशा में स्टेन परिवार को जिंदा जलाने के जघन्य कार्य को अंजाम दिया था, तब सारंगी ओडिशा के विश्व हिंदू परिषद के अध्यक्ष थे और घटना के बाद सारंगी ने पुलिस को बयान दिया था कि ‘वे दारा सिंह को जानते ही नहीं हैं,’ ठीक वैसे ही जैसे संघ गोडसे को नहीं जानता।
जोगी परिवार कांग्रेस में वापसी को तैयार
छत्तीसगढ़ में अब तलक कांग्रेस से छत्तीस का आंकड़ा रखने वाला अजित जोगी परिवार अपनी घर वापसी के लिए तैयार हो गया है। छत्तीसगढ़ के पूर्व सीएम अजित जोगी की पत्नी रेणु जोगी अब अपनी क्षेत्रीय पार्टी जेसीसी-जे का विलय कांग्रेस में करने को तैयार हो गई है। दरअसल, रेणु जोगी की नाराज़गी मूलतः छत्तीसगढ़ के दो कांग्रेसी नेताओं से थी, ये हैं राज्य के पूर्व सीएम भूपेश बघेल और इनके डिप्टी टीएस सिंहदेव। भूपेश बघेल से राज्य के पार्टी नेता व कार्यकर्ता भी नाराज़ चल रहे हैं और वे कई कानूनी मुकदमों से भी जूझ रहे हैं, सो पार्टी ने उन्हें इन दिनों थोड़ा दरकिनार कर रखा है। सो, मौके की नजाकत को भांपते हुए छत्तीसगढ़ कांग्रेस प्रमुख दीपक बैज ने रेणु जोगी की बात सीधे सोनिया गांधी से करा दी और बातों ही बातों में रेणु अपनी पार्टी का विलय कांग्रेस में करने को तैयार हो गईं। सनद रहे कि अजित जोगी का प्रदेश के आदिवासी वोटरों में अच्छा प्रभाव रहा है, उनकी इसी विरासत को उनकी पत्नी रेणु और उनके पुत्र अमित जोगी भी आगे बढ़ाने का प्रयास करते रहे हैं।
..और अंत में
कांग्रेस संगठन में बड़े बदलाव की तैयारियां शुरू हो चुकी हैं। इस क्रम में दिल्ली में जमे-जमाए व अपने पदों पर कुंडली मार कर बैठे कई बड़े नेताओं की विदाई संभव है। इस कड़ी में वेणुगोपाल जैसे कई बड़े नेताओं के नाम लिए जा रहे हैं। कहते हैं कमलनाथ व अशोक गहलोत जैसे पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को इनकी जगह संगठन में महती जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है। बिहार, झारखंड, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और यूपी जैसे प्रदेशों को नया मुखिया मिल सकता है। रमेश चेन्निथला को बतौर प्रदेश अध्यक्ष केरल भेजने की तैयारी है। यूपी में गांधी परिवार के भरोसेमंद किशोरी लाल शर्मा तो झारखंड में लोहरदग्गा से सांसद सुखदेव भगत और बिहार के लिए तारिक अनवर के नाम पर विचार चल रहा है।