तमिलनाडु में भाजपा का चुनावी दांव
तमिलनाडु उन राज्यों में शामिल है जहां लम्बे समय से क्षेत्रीय दलों का राजनीति में
तमिलनाडु उन राज्यों में शामिल है जहां लम्बे समय से क्षेत्रीय दलों का राजनीति में वर्चस्व रहा है। ई.वी.रामास्वामी यानि पेरियार ने आजादी से पूर्व ही द्रविड़ कड़गम नाम से राजनीतिक दल बना लिया था और वह राज्य की राजनीति में दिग्गज नेता बने। आजादी के बाद मद्रास रेजीडेंसी के पहले मुख्यमंत्री कांग्रेस के सी.राजगोपालाचारी बने, बाद में यह मद्रास राज्य बना और फिर 1968 में इसका नाम तमिलनाडु हो गया। सी.एन.अन्नादुरई, एम.करुणानिधि, एम.जी. रामचंद्रन द्रमुक के मुख्यमंत्री बने। 1972 में द्रमुक का विभाजन हो गया और एम.जी.रामचंद्रन ने आल इंडिया द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (अन्नाद्रमुक) का गठन किया। द्रमुक और अन्नाद्रमुक का विभाजन एक समान विचारधारा वाले दल से हुआ मगर समय के साथ-साथ राजनीतिक दलों का चरित्र और विचारधारा बदलती गई। अन्नाद्रमुक की कमान जयललिता (अम्मा) के पास रही आैर द्रमुक की कमान करुणानिधि के हाथ आई, तब से ही राज्य की सत्ता कभी अन्नाद्रमुक तो कभी द्रमुक के हाथ रही। वर्तमान में सत्ता करुणानिधि के बेटे एम.स्टालिन के हाथ में है। जबकि अन्नाद्रमुक की कमान पूर्व मुख्यमंत्री ई.के.पलानीस्वामी के हाथ में है। राज्य में अगले वर्ष विधानसभा चुनाव होने हैं और केन्द्र में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी ने तमिलनाडु में चुनावी दांव खेल दिया है। केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह की मौजूदगी में विधानसभा चुनावों के लिए भाजपा और अन्नाद्रमुक गठबंधन का ऐलान कर दिया गया है।
अमित शाह के चेन्नई दौरे के दौरान दाेनों दलों के नेताओं ने गठबंधन की रूपरेखा तय की। गठबंधन का ऐलान करते समय यह कहा गया कि दोनों दल एनडीए सहयोगियों के साथ िमलकर चुनाव लड़ेंगे और राज्य स्तर का चुनाव पलानीस्वामी के नेतृत्व में लड़ा जाएगा। पूर्व में भी अन्नाद्रमुक का भाजपा के साथ गठबंधन रहा है। जयललिता अम्मा के वक्त भी अन्नाद्रमुक ने अटल बिहारी वाजपेयी सरकार को समर्थन दिया था लेकिन 13 महीने वाली अटल सरकार 17 अप्रैल 1999 में सिर्फ एक वोट से िगर गई थी और वह एक वोट जयललिता का था। जयललिता अम्मा लगातार धमकी देती रहती थी कि अगर उनकी कुछ मांगों को पूरा नहीं किया गया तो वह सरकार से समर्थन वापिस ले लेंगी। जयललिता ने अटल जी से तमिलनाडु की द्रमुक सरकार को बर्खास्त करने की मांग की थी। तब भाजपा ने जयललिता पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों को खूब उछाला था। राजनीति में दोस्त दुश्मन हो जाते हैं और दुश्मन दोस्त हो जाते हैं। पिछले दो चुनावों लोकसभा और विधानसभा चुनावों में अन्नाद्रमुक को काफी संघर्ष करना पड़ा था। 2016 में जयललिता के निधन के बाद अन्नाद्रमुक ने भाजपा के साथ गठबंधन किया। 2021 के राज्य चुनावों के दौरान गठबंधन के परिणामस्वरूप भाजपा ने 4 सीटें जीती थीं। 2023 में अन्नाद्रमुक ने भाजपा से गठबंधन तोड़ दिया था।
अब एक बार फिर दोनों दलों ने हाथ मिलाया है। इसके पीछे भी सियासी कारण है। भाजपा ने लोकसभा चुनावों में तमिलनाडु में 11.4 फीसदी वोट हासिल िकए थे। हालांकि उसे कोई सीट नहीं मिली थी। भाजपा को अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए एक क्षेत्रीय पार्टी की जरूरत महसूस हुई। पिछले लोकसभा चुनावों में अन्नाद्रमुक काे लगभग 20 फीसदी वोट मिले थे लेकिन उसे भी कोई सीट नहीं मिली थी। अगर दोनों दल मिलकर चुनाव लड़ते हैं तो द्रमुक और उनके सहयोगी दलों को 39 सीटें नहीं मिलती। अब द्रमुक सरकार 2026 में 10 साल पूरे करने जा रही है और सरकार के खिलाफ एंटी इंकम्बेंसी फैक्टर भी है और भाजपा इसी का फायदा उठाना चाहती है। मुख्यमंत्री स्टालिन भाषा नीट और परिसीमन के मुद्दे पर केन्द्र के खिलाफ आक्रामक रुख अपनाए हुए हैं। समय के साथ-साथ द्रमुक की पहचान हिन्दू विरोधी पार्टी के रूप में स्थापित हो चुकी है। वह ईसाइयों और मुस्लिम समूहों का साथ भी लेती रही है। इसकी छवि हिन्दी भाषा विरोधी है। वह केवल तमिल लोगों काे ही द्रविड़ मानती आई है। दूसरी तरफ अन्नाद्रमुक की छवि हिन्दूवादी पार्टी की रही है। द्रमुक पर वंशवाद के आरोप लगते रहे हैं। इन्हीं कारणों के चलते भाजपा को अन्नाद्रमुक अपने ज्यादा करीब लगी। हालांकि गठबंधन के लिए 4 साल से तमिलनाडु भाजपा के अध्यक्ष रहे अन्नामलई को अपना पद छोड़ना पड़ा क्योंकि उन्होंने अन्नाद्रमुक के खिलाफ कड़ा रुख अपना रखा था।