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दिल्ली में भाजपा की ‘रेखा’

इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि भारतीय जनता पार्टी ने 26 साल…

09:58 AM Feb 20, 2025 IST | Aditya Chopra

इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि भारतीय जनता पार्टी ने 26 साल…

इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि भारतीय जनता पार्टी ने 26 साल बाद दिल्ली विधानसभा चुनाव जीत कर पूरे देश को अपनी जमीनी मजबूती का परिचय दिया है क्योंकि राजधानी दिल्ली को ‘मिनी इंडिया’ भी कहा जाता है। इसके साथ ही पार्टी ने दिल्ली अर्ध राज्य के मुख्यमन्त्री पद पर श्रीमती रेखा गुप्ता जैसी पहली बार विधायक बनी साधारण कार्यकर्ता को बैठाकर सन्देश दिया है कि पार्टी के प्रति सच्ची निष्ठा रखने वाले सच्चे व्यक्ति को अवसर मिलने पर ऊंचे से ऊंचे पद पर भी बैठाया जा सकता है। मुख्यमन्त्री पद पर एक महिला को चुनकर भाजपा ने दिल्ली की उलझी हुई बहुप्रशासनिक प्रणाली के भीतर एक सौम्य चेहरा बैठाकर सिद्ध करने का प्रयास किया है कि राजधानी का शासन बिना हील – हुज्जत व व्यवधानों के भी चलाया जा सकता है। श्रीमती रेखा गुप्ता भाजपा की एक समर्पित कार्यकर्ता छात्र जीवन से ही रही हैं। कालेज के दिनों में उन्होंने भाजपा की छात्र शाखा अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में सक्रियता दिखाई वह दिल्ली विश्व विद्यालय छात्र संघ के महासचिव व अध्यक्ष पदों पर रहीं। इसके बाद वह भाजपा में सक्रिय हुईं और आज मुख्यमन्त्री पद तक पहुंची। वह एक साधारण वैश्य परिवार से आती हैं और उनका गृहस्थ जीवन भी हंसी-खुशी भरा है। राजनीति उनके लिए सेवा का माध्यम है जिसे उन्होंने दिल्ली नगर निगम में पार्षद रहते हुए निभाया। हालांकि वह 2025 के चुनावों से पूर्व दो बार विधानसभा चुनाव दिल्ली के शालीमार बाग क्षेत्र से आम आदमी पार्टी की प्रत्याशी वन्दना कुमारी से हारीं मगर उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और तीसरी बार में उन्होंने उन्हीं वन्दना कुमारी को भारी मतों से परास्त किया। इससे उनकी दृढ़ इच्छा शक्ति का पता चलता है।

2014 के बाद से राष्ट्रीय राजनीतिक पटल पर श्री नरेन्द्र मोदी के उदय होने के बाद भाजपा का जो विजयी अभियान पूरे देश में चल रहा है उसके तहत वह किसी भी भाजपा या एनडीए राज की पहली महिला मुख्यमन्त्री हैं। इससे उनकी जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है अतः उन्हें इस पुरुष प्रधान राजनीति में एेसा जरूर कुछ करना होगा जिससे उनकी विशिष्ट पहचान बने। वैसे इसका अनुभव उन्हें अपने छात्र जीवन के दिनों में ही हो गया होगा और इसका अनुभव उन्होंने नगर निगम की पार्षद रहते हुए भी किया होगा। पहले यह माना जा रहा था कि नई दिल्ली सीट से पूर्व मुख्यमन्त्री अरविन्द केजरीवाल को पटखनी देने वाले भाजपा प्रत्याशी प्रवेश साहिब सिंह वर्मा को संभवतः भाजपा अपना मुख्यमन्त्री बनायेगी मगर श्रीमती रेखा का चुनाव करके भाजपा के रणनीतिकारों ने एक तीर से कई शिकार कर डाले हैं। महिला होने की वजह से केजरीवाल की आलोचना व आरोपों और झगड़े-झंझट से भरी राजनीति का जवाब पार्टी सौम्यता के साथ दे सकेगी साथ ही आम आदमी पार्टी के पिछले कारनामों की बखिया उधेड़ने में भी उसे आसानी होगी। इसके साथ ही भाजपा ने चुनावों में गरीब महिलाओं से जो भी वादे किये हैं उन्हें पूरा करने के लिए वह मुख्यमन्त्री का चेहरा आगे रख सकंेगी। बेशक प्रवेश वर्मा को भी इस तथ्य की जानकारी होगी कि पार्टी के लिए मौजूदा समय में रेखा गुप्ता से बेहतर कोई दूसरा विकल्प नहीं हो सकता था।

भाजपा ने अपने ही दिल्ली के मुख्यमन्त्री रहे स्व. साहिब सिंह के पुत्र को न चुन कर यह सन्देश भी दिया है कि लोकतन्त्र में मुख्यमन्त्री का बेटा ही मुख्यमन्त्री हो, यह जरूरी नहीं होता बल्कि सत्ता के शिखर पर आम आदमी के बेटे या बेटी का भी पूरा अधिकार होता है। भाजपा घोषित रूप से परिवारवाद के खिलाफ है अतः स्व. मदनलाल खुराना के सुपुत्र भी साधारण विधायक ही बने हैं। रेखा मन्त्रिमंडल में जिन छह विधायकों को मन्त्री बनाया गया है उनमें से केवल कपिल मिश्रा को छोड़कर शेष पांच मन्त्री पहली बार इस पद पर बैठे हैं। मन्त्रिमंडल में सामाजिक व जातिगत समीकरणों को भी साधने का प्रयास किया गया है। वैसे दिल्ली की राजनीति इन सब दकियानूसी विचारों से ऊपर मानी जाती है।

जनसंघ (भाजपा) के जमाने से यदि हम देखें तो पायेंगे कि भाजपा ने 1967 में जब पहली बार दिल्ली में अपना डंका बजाया था और लोकसभा की केवल बाहरी दिल्ली सीट छोड़कर शेष सभी सीटें जीती थीं तथा महानगर परिषद ( उस समय विधानसभा नहीं थी) में पूर्ण बहुमत प्राप्त किया था तो श्री विजय कुमार मल्होत्रा को अपना मुख्य कार्यकारी पार्षद बनाया था। श्री मल्होत्रा ने तब दिल्ली का सौन्दर्यीकरण व विकास इस प्रकार किया था कि दिल्लीवासी भी हैरान रह गये थे। कश्मीरी गेट पर बना अन्तर्राज्यीय बस अड्डा उन्हीं की देन है। यमुना को स्वच्छ व सुन्दर बनाने का काम भी श्री मल्होत्रा ने तब शुरू किया था। इसके अलावा धार्मिक स्थानों का कायाकल्प करने का काम भी किया गया था। श्रीमती रेखा गुप्ता के सामने अपनी ही पार्टी के शासन मुखिया रहे व्यक्ति का उदाहरण भी है और कांग्रेस की 15 साल तक मुख्यमन्त्री रहीं स्व. शीला दीक्षित द्वारा किये गये विकास कार्य भी हैं। जाहिर है कि उन्हें अपनी पार्टी के चुनावी संकल्प पत्रों में किये गये वादों को पूरा करना पड़ेगा जिनमें गरीब महिलाओं को 2500 रुपए महीना देना भी शामिल है और यमुना की साफ-सफाई भी शामिल है। यमुना सफाई का कार्य तो उनके गद्दी पर बैठने से पहले ही उपराज्यपाल के आदेश से शुरू हो चुका है। अतः दिल्ली के मुख्यमन्त्री की कुर्सी कोई गुलदान नहीं बल्कि कांटों भरी राह है जिस पर रेखा मन्त्रिमंडल के सभी सदस्यों को बिना जख्मी हुए चलना होगा। क्योंकि दिल्ली की पूर्व सरकार का रिकार्ड झगड़े-झंझट का रहा है जिसकी वजह केजरीवाल सर्वदा यह बताते रहे कि केन्द्र ने मुख्यमन्त्री को अधिकार विहीन बना दिया है। परन्तु उनके पहले की मुख्यमन्त्री स्व. शीला दीक्षित पर यह परिभाषा लागू नहीं हो पायी। दिल्ली वालों को उम्मीद है कि श्रीमती रेखा गुप्ता अपनी राजनैतिक शालीनता व चातुर्य से इन बाधाओं को पार कर लेंगी।

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