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काली इमरजेंसी और गुजरात व बिहार

06:22 AM Jun 28, 2025 IST | Rakesh Kapoor
काली इमरजेंसी और गुजरात व बिहार

12 जून, 1975 को जब इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश स्व. जगमोहन लाल सिन्हा ने यह फैसला दिया कि उत्तर प्रदेश के रायबरेली चुनाव क्षेत्र से 1971 में प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गांधी द्वारा लड़ा गया चुनाव अवैध तरीके अपनाये जाने के कारण रद्द किया जाता है तो उसी दिन गुजरात से भी यह खबर आई कि राज्य विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की हार हुई है और विपक्षी गठबन्धन लोकतान्त्रिक मोर्चे को बहुमत प्राप्त हुआ है। गुजरात में इस मोर्चे के नेता श्री बाबू भाई पटेल थे। उस समय देश भर में लोकनायक जय प्रकाश नारायण के नेतृत्व में सभी विपक्षी दल मिलकर इन्दिरा गांधी के शासन के खिलाफ आन्दोलन चला रहे थे, मगर 13 दिन बाद 25 जून को इन्दिरा जी ने पूरे देश पर आन्तरिक इमरजेंसी लगा दी और विपक्ष के सभी बड़े नेताओं को जेल में डाल दिया।

इसी दिन 25 जून को दिल्ली के प्रैस एरिया बहादुर शाह जफर मार्ग की बिजली गुल कर दी गई और रात्रि को घोषणा की गई कि अखबारों पर सेंसरशिप लगा दी गई है। उस समय मैं इसी क्षेत्र के सबसे बड़े प्रकाशन संस्थान में काम करता था। अगले दिन सभी प्रमुख अंग्रेजी अखबारों ने अपने सम्पादकीय कालमों को खाली छोड़ा। इससे सन्देश चला गया कि सम्पादक की कलम को बन्दी बना लिया गया है। एक तरफ जहां दिल्ली में यह सब हो रहा था वहीं दूसरी तरफ गुजरात के अहमदाबाद में श्री बाबू भाई पटेल के नेतृत्व में लोकतान्त्रिक मोर्चे की सरकार बन चुकी थी। इमरजेंसी लगने के थोड़े समय बाद ही कांग्रेस ने इस सरकार को भी गिरा दिया। असल में गुजरात वह स्थल था जहां से 1974 के जन आन्दोलन की चिंगारी फूटी थी।

सबसे पहले यहां छात्र आन्दोलन नागरिक सुविधाओं को लेकर शुरू हुआ और यह बिहार में फैला मगर बिहार में पहुंच कर यह शोले में तब्दील हो गया। बिहार के आन्दोलन में छात्रों का साथ देने जब समाजवादी नेता श्री जय प्रकाश नारायण आ गये तो राज्य के साहित्यकार भी इसमें कूद गये। प्रख्यात साहित्यकार फणीश्वर नाथ रेणू भी पटना के गांधी मैदान में जेपी आन्दोलन में शामिल हो गये थे। गांधी मैदान में तब बिहार पुलिस ने लाठियों के बल पर आन्दोलनकारियों को दबाना चाहा था। लाठी खाने वालों में श्री रेणू भी थे। जेपी पहले से ही मांग कर रहे थे कि बिहार के तत्कालीन मुख्यमन्त्री श्री अब्दुल गफूर को पद से हटाया जाये क्योंकि उनकी सरकार पर भ्रष्टाचार और अत्याचार के गंभीर आरोप लग रहे थे। इस प्रकार आन्दोलन का केन्द्र धीरे-धीरे गुजरात की जगह बिहार होता चला गया। बिहार में लगभग सभी विपक्षी दल जेपी के नेतृत्व के साये में आन्दोलन चला रहे थे।

इनमें भारतीय जनसंघ के ठाकुर प्रसाद सिंह से लेकर समाजवादी नेता रामानन्द तिवारी और कर्पूरी ठाकुर तक शामिल थे। जेपी आन्दोलन से जुड़ने में स्व. ठाकुर प्रसाद सिंह ने बहुत जल्दी दिखाई थी और अपने समाजवादी मित्रों के साथ कदम ताल करने में कोताही नहीं बरती थी। दर असल बिहार में स्व. ठाकुर प्रसाद सिंह की कद- काठी का कोई दूसरा भाजपा नेता आज तक पैदा नहीं हुआ है। उन्होंने जनसंघ की जड़ें जनता के बीच फैलाई थीं। एक तरफ जब यह आन्दोलन चल रहा था और इसकी धमक राजधानी दिल्ली में भी सुनाई पड़ने लगी थी तो देश के सभी विपक्षी राजनीतिक दलों ने जेपी के नेतृत्व में स्वयं को समाहित किया मगर इस सबके चलते ही 25 जून, 1975 की तारीख आ गई और सभी विपक्षी नेताओं को जेल में डाल दिया गया, मगर इसके बाद जनसंघ व राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के कार्यकर्ताओं को भी पकड़–पकड़ कर जेलों में डाला गया।

ऐसे समय में देश के वर्तमान प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने लोकतन्त्र की अलख जगाने के उद्देश्य से वेष बदल कर काम किया और एक सिख युवक के रूप में वह जगह-जगह छिपते –छिपाते संगठन व राष्ट्र का काम करते रहे। उस समय श्री मोदी की आयु मात्र 25 वर्ष थी। गुजरात के और भी संगठन के कार्यकर्ताओं ने भी ऐसा करने की कोशिश की थी। 21 महीने बाद जब मार्च 77 में इमरजेंसी हटने की अधिकारिक घोषणा केन्द्र सरकार द्वारा की गई तो लगभग सभी कार्यकर्ताओं को चंगेजी शासन से निजात मिली। अब इमरजेंसी के बाद चुनाव होने थे। इन्दिरा जी को उम्मीद थी कि उनकी पार्टी कांग्रेस इन लोकसभा चुनावों में विजयी हो जायेगी, क्योंकि विपक्षी नेताओं के जेल चले जाने के बाद देश के भीतर उनके समर्थन में किसी प्रकार का आन्दोलन आदि नहीं हुआ था, मगर चुनावों की घोषणा होने के कुछ समय बाद देश के दलित कांग्रेसी नेता बाबू जगजीवन राम ने सरकार और पार्टी छोड़ने की घोषणा कर दी।

उनके साथ उत्तर प्रदेश के कद्दावर नेता स्व. हेमवती नन्दन बहुगुणा व हरियाणा के नेता भजनलाल ने भी कांग्रेस छोड़ने का एेलान कर दिया। इससे आम जनता में विपक्ष के पक्ष में तूफान जैसा खड़ा हो गया, हालांकि विपक्ष के खेमे में तब स्व. अटल बिहारी वाजपेयी से लेकर चौधरी चरण सिंह व राजनारायण और जार्ज फर्नांडीज जैसे दिग्गज थे और आचार्य कृपलानी जैसे महारथी जेपी के साथ मिल कर इन सभी नेताओं का मार्ग दर्शन कर रहे थे मगर बाबू जगजीवन राम के कांग्रेस छोड़ने की वजह से जमीनी चुनावी हवा पूरी तरह बदल गई और स्वतन्त्र भारत के चुनावी इतिहास में पहली बार दलितों व मुस्लिमों ने कांग्रेस के स्थान पर विपक्ष को चुनाव में अपना मत दिया। विपक्षी दलों ने 1977 के चुनावों में कांग्रेस को हराने के लिए अपने – अपने अस्तित्व तक को समाप्त कर डाला और मिल कर जनता पार्टी बनाई।

1977 के चुनाव जमीनी आधार पर इसी पार्टी के झंडे के नीचे लड़े गये मगर चुनाव आयोग ने इसे मान्यता चुनाव हो जाने के बाद ही दी और चुनाव चौधरी चरण सिंह के भारतीय लोकदल के चुनाव चिन्ह कन्धे पर हल लिए किसान पर लड़े गये। तब कांग्रेस की तरफ से यह कहा गया कि इस पंचमेल पार्टी का प्रधानमन्त्री कौन होगा ? इस सवाल का जवाब आचार्य कृपलानी बहुत सलीके से देते थे औऱ कहते थे कि जनता पार्टी जनता की पार्टी है और जनता जिसे चाहेगी वही प्रधानमन्त्री होगा। चुनाव इमरजेंसी के बाद हुए और जनता पार्टी को भारी जीत भी हासिल हुई मगर सरकार बामुश्किल ढाई साल भी नहीं चली । इन चुनावों में जनता पार्टी को 295 सीटें और कांग्रेस को 153 सीटें मिली, जबकि जनता पार्टी ने केवल 543 में से केवल 405 पर ही चुनाव लड़ा था और कांग्रेस ने सभी सीटों पर अपने प्रत्याशी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के साथ मिलकर खड़े किये थे, मगर 1980 में जब पुनः चुनाव हुए तो इन्दिरा गांधी की कांग्रेस दोबारा भारी बहुमत से विजयी रही।

इसकी वजह राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि जनता पार्टी ने अपने प्रधानमन्त्री का चुनाव गलत किया, अगर मोरारीजी देसाई की जगह बाबू जगजीवन राम को 1977 में प्रधानमन्त्री बनाया गया होता तो देश की राजनीति की दिशा ही बदल जाती । मगर यह सिर्फ एक कयास है क्योंकि 1980 के बाद 1984 में भाजपा के सिर्फ दो सीटों पर सिमटने के बाद जिस तरह राष्ट्रीय राजनीति में राष्ट्रवाद की अलख जगी उसने समस्त भारतीयों की अपेक्षाओं को नये आयाम देने का काम किया जिन्हें 2014 में श्री नरेन्द्र मोदी ने नई दिशा देकर राजनीति के मूल अवयवों को ही नये सिरे से परिभाषित कर डाला। श्री मोदी ने राजनीति का स्थायी गुण बदलने का वह साहसिक कार्य किया है जिसे उनसे पहले कोई जनसंघ या भाजपा नेता नहीं कर सका था। अतः वर्तमान में हमें अपने लोकतन्त्र को लगातार मजबूत बनाये रखना होगा।

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