Top NewsIndiaWorldOther StatesBusiness
Sports | CricketOther Games
Bollywood KesariHoroscopeHealth & LifestyleViral NewsTech & AutoGadgetsvastu-tipsExplainer
Advertisement

घरेलू हिंसा की आड़ में ब्लैकमेलिंग?

04:30 AM Aug 03, 2025 IST | Kiran Chopra

हमारे यहां महिलाओं को कभी कमजोर आैर अबला के रूप में जाना जाता था और समय बदलने के साथ ही ऐसा लगता है कि कानून भी महिलाओं के पक्ष में जाने लगे। इस कड़ी में नारी पर कथित भ्रष्टाचार या जुर्म को लेकर या फिर शारीरिक शोषण के मामलों में कानून की बदलती परिभाषाओं ने दोषी लोगों को कठघरे में खड़ा कर सजा भी दिलाई। इससे एक अवधारणा भी बनी कि महिलाओं पर जुर्म करने की हिमाकत कोई नहीं कर सकता। यहां हम अब उस घरेलू हिंसा का उल्लेख करना चाहंेगे जो पुरुषों तथा महिलाओं से जुड़ी है। घरेलू हिंसा का ​िशकार महिलाओं के पक्ष में कानूनी फैसलों ने काफी हद तक यह स्थापित कर दिया कि पुरुष लोग महिलाओं पर जुर्म ढहाते हैं तथा उन्हें वैवाहिक व पारिवारिक जीवन से बेदखल कर डालते हैं। इन मामलों में एक बड़ी बात आज की तारीख में यह भी है कि बेचारे पुरुष भी घरेलू हिंसा का शिकार हो रहे हैं और ट्रेजिडी यह है कि कोई कानून उनके हितों की सुरक्षा के लिए बना ही नहीं है। इस कड़ी में धारा 498ए के दुरुपयोग की घटनाएं भी बढ़ रही हैं।
उदाहरण के तौर पर उद्योगपति मिस्टर एक्स की पत्नी हर महीने जेब खर्चा एक लाख रुपए अतिरिक्त ​िदए जाने की मांग को लेकर उन्हें पार्टियों में हर बार बेइज्जत कर चुकी है। एमए पास पत्नी अपने पति को एक प्लाट अपने नाम पर करने की मांग को लेकर दोनों बच्चे लेकर मायके चली गई तथा अब डाइवोर्स की धमकी दे रही है। एक आैर अफसर की पत्नी अपने मां-बाप, भाई को पति के घर स्थायी तौर पर रखने के लिए मांग कर रही है तथा कोर्ट जाने की धमकी दे रही है। ये छोटे-छोटे उदाहरण घरेलू हिंसा हैं, जिनमें पति प्रत​ाड़ित है। ऐसे लाखों उदाहरण पत्नी प्रताड़ित पतियों के हैं, उन्हें भी सुरक्षा चाहिए लेकिन कानूनी फैसले इस मामले में बड़े उदाहरण स्थापित नहीं कर पा रहे हैं। कई डिबेट्स देखे हैं महिलाओं द्वारा पुरुषों को प्रता​िड़त कर धन मांगने को ब्लैकमेलिंग कहा गया है। खुद सुप्रीम कोर्ट ने भी दहेज मामलों में महिलाओं की शिकायत पर पति या ससुराल पक्ष की गिरफ्तारी दो माह तक न किए जाने की ऐ​ि​तहासिक व्यवस्था भी दी है।
घरेलू हिंसा के मामलों में महिलाओं द्वारा धारा 498ए के दुरुपयोग तथा पति या उसके परिवार ब्लैकमेलिंग के केस सामने आ रहे हैं। ​पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में कहा कि वैवाहिक विवादों में आईपीसी की धारा 498ए यानी विवाहित महिलाओं के साथ ससुराल में क्रूरता संबंधी अपराध के अन्तर्गत दो महीने तक कोई गिरफ्तारी नहीं होगी। शीर्ष अदालत ने दुरुपयोग रोकने के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा 13 जून, 2022 को दिए गए निर्णय में उल्लेखित परिवार कल्याण समिति के गठन व उपायों का समर्थन किया है। शीर्ष कोर्ट ने निर्देश दिया कि हाईकोर्ट के दिशा-निर्देश लागू रहेंगे आैर अधिकारी उनका पालन करें। प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई व न्यायमूर्ति एजी मसीह की पीठ ने 22 जुलाई को यह आदेश दिया।
आईपीसी की धारा 498ए पति या उसके परिवार के सदस्यों द्वारा पत्नी के प्रति क्रूरता को अपराध मानती है। इस प्रावधान का अक्सर उन मामलों में उल्लेख किया जाता है जहाँ महिलाओं के साथ क्रूरता की जाती है, लेकिन इसका इस्तेमाल उन मामलों में नहीं किया गया है जहाँ पुरुष विवाह के भीतर क्रूरता का शिकार होते हैं। लेकिन पुरुषों के समर्थन में बड़े फैसले उदाहरण के तौर पर नहीं उभरे।
पुरुषों के लिए यह साबित करना महत्वपूर्ण है कि जीवनसाथी द्वारा की गई क्रूरता इतनी गंभीर है कि वह आईपीसी के प्रावधानों के अंतर्गत भी आती हो। एक उदाहरण के तौर पर यदि किसी पुरुष को उसकी पत्नी या ससुराल वालों द्वारा दहेज संबंधी उत्पीड़न या लगातार शारीरिक शोषण का सामना करना पड़ता है, तो वह धारा 498 ए के तहत मामला दर्ज करा सकता है। लेकिन इन मामलों में देर-सवेर पीड़ित पुरुष परिस्थितियों के चलते व लम्बी कानूनी प्रक्रिया के चलते खुद ही पीछे हट जाते हैं। व्यवस्था यही है कि यदि कोई पुरुष अपनी पत्नी से शारीरिक या भावनात्मक शोषण का सामना कर रहा है, तो वह कानून के तहत सुरक्षा आदेश या निवास आदेश के लिए अदालत का रुख कर सकता है। हालांकि इस कानून का मुख्य उद्देश्य महिलाओं की सुरक्षा करना है, लेकिन यह पुरुषों को इसके दायरे से बाहर नहीं करता है लेकिन हकीकत में पुरुष को बहुत जल्दी न्याय नहीं मिल पाता। कभी दिल्ली में पंचकुइयां रोड के पास 90 के दशक में पत्नी प्रताड़ित पुरुष समिति काम करती थी तथा कई साल तक चली लेकिन बाद में बंद हो गई। मेन्स हेल्पलाइन इंडिया एक ऐसी ही सेवा है जो पुरुषों को घरेलू हिंसा के मुद्दों से निपटने में सहायता करती है, जिसमें कानूनी सहायता और परामर्श भी शामिल है। बात वहीं आ जाती है कि घरेलू हिंसा की रिपोर्ट दर्ज कराने पर पुरुषों को अक्सर सामाजिक कलंक का सामना करना पड़ता है।
कई डिबेट्स में सुना है ​िक एक पुरुष जिस पर उसकी पत्नी द्वारा शारीरिक हमला किया जाता है, वह सामाजिक दबाव और संभावित शर्मिंदगी के कारण पुलिस में दुर्व्यवहार की रिपोर्ट दर्ज कराने में सहज महसूस नहीं कर सकता है। अाज भी घरेलू हिंसा के मामले में कई पुरुष अपने कानूनी अधिकारों से अनजान हैं। अगर पुरुष किसी महिला के ब्लैकमेलिंग का​ शिकार हो रहा है और वह घरेलू हिंसा हेल्पलाइन से मदद मांगता है तो तुरंत उसे दी जानी चाहिए। पुरुषों को इस सूरत में जागरुक बनाने के साथ-साथ उसकी शिकायत पर कार्रवाई होगी, यह विश्वास भी उसे दिया जाना चाहिए। अवधारणा भी बदलनी होगी कि महिलाएं अक्सर पुरुषों की हिंसा का शिकार होती हैं, बल्कि पुरुष भी महिलाओं की क्रूर हिंसा का सामना करने को ​िववश है। कानून में पुरुषों को भी बराबरी का दर्जा दिया जाना चाहिए। सुप्रीम काेर्ट द्वारा पिछले ​​दिनों की टिप्पणी महत्वपूर्ण है, जिसमें महिला की ​शिकायत पर महीने तक पुरुष की गिरफ्तारी न किये जाने की व्यवस्था दी गई है।

Advertisement
Advertisement
Next Article