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बम धमकियां-असहज होता समाज

04:45 AM Jul 20, 2025 IST | Aditya Chopra
बम धमकियां असहज होता समाज
पंजाब केसरी के डायरेक्टर आदित्य नारायण चोपड़ा

दिल्ली, बैंगलुरु और कुछ अन्य महानगरों में लगातार बम रखे जाने की धमकियां भले ही फर्जी साबित हो रही हैं लेकिन ऐसी धमकियों ने न केवल पुलिस प्रशासन को परेशान कर दिया है बल्कि स्कूली बच्चों और अभिभावकों को भी असहज बना दिया है। वैसे तो फर्जी धमकियों का सिलसिला उड़ानों तक भी पहुंच चुका है। पुलिस और सुरक्षा एजैंसियों को ऐसी धमकियों के बाद पूरी कवायद करनी पड़ती है तुरन्त बम खोजी दस्ते बुलाने पड़ते हैं। चप्पे-चप्पे की तलाशी लेनी पड़ती है। चाहे कुछ मिले न मिले ऐसी धमकियों को नजरंदाज भी नहीं किया जा सकता। स्कूलों में बम होने का ई-मेल मिलते ही क्लास रूम खाली करवाए जाते हैं। बच्चों को सतर्कतापूर्वक बाहर निकाला जाता है। अभिभावक खबर पाते ही बदहवास हो कर स्कूलों की तरफ भागते हैं। बच्चों को सुरक्षित जगह पर इकट्ठा करना, अभिभावकों को जानकारी देना, स्कूलों के लिए सिरदर्द बन चुका है तो दूसरी तरफ माता-पिता अपना काम छोड़कर बच्चों की चिंता में स्कूलों की तरफ बार-बार भागना मुसीबत बन चुका है। स्कूलों को धमकियां पहले भी मिलती रही हैं। कभी यह कहा गया कि यह कुछ स्कूली बच्चों की शरारत है। कभी कुछ गिरफ्तारियों की भी खबर आती है। कई बार धमकियों की गुत्थी सुलझाने का दावा भी किया जाता रहा है। अभी तक यह तय कर पाना मुश्किल हो रहा है कि यह कोई शरारत है, साजिश है या फिर कोई बड़ा प्रयोग है। पिछले वर्ष दिल्ली समेत एनसीआर के स्कूलों को धमकी भरे ई-मेल रूस से भेजे जाने की पुष्टि हुई थी। भारत की सुरक्षा एजैंसियां ऐसे ई-मेल के मामले में उलझ कर रह गई हैं। एजैंसियां तय नहीं कर पा रहीं कि इतनी बड़ी संख्या में धमकियां मिलने का क्या कारण है? क्या ऐसा करने वाले लोग भारत के भीतर हैं या भारत के दुश्मन किसी प्रकार का बड़ा प्रयोग कर रहे हैं। आप कल्पना भी नहीं कर सकते कि यदि किसी स्कूल में बम धमाका हो जाए तो क्या हो सकता है। कोई एक व्यक्ति यह काम नहीं कर सकता। हो सकता है कि कोई संगठित गिरोह इसके पीछे हो। धमकी भरे ई-मेल के स्रोत को ढूंढना आज के दौर में आसान नहीं है। ऐसा करने वाले लोग डार्क वेब और बीपीएन का इस्तेमाल करते हैं, जिसकी कई परतें होती हैं। सूचना प्रौद्योगिकी इतनी जटिल हो चुकी है कि अगर धमकी किसी विदेशी सर्वर का इस्तेमाल करके भेजी गई है तो स्रोत ढूूंढना बहुत मुश्किल है।
देश के धार्मिक स्थलों को भी आरडीएक्स से उड़ाने की धमकियां दी जा रही हैं। स्वर्ण मंदिर परिसर को उड़ाने की धमकी देने के मामले में बीटेक इंजीनियर की गिरफ्तारी के बाद सवाल उठता है कि क्या बीटेक इंजीनियर मानसिक रूप से अस्वस्थ तो नहीं। निष्कर्ष कुछ भी हो ऐसी धमकियों से धार्मिक तनाव पैदा होने का खतरा बना रहता है। बम की धमकियों और अफवाहों का समाज पर गहरा प्रभाव पड़ रहा है, जिससे सामाजिक अशांति, हिंसा और यहां तक कि आर्थिक नुक्सान भी हो सकता है। स्कूलों में बम की धमकियों का नकारात्मक प्रभाव न केवल बच्चों पर बल्कि उनके माता-पिता और समाज पर भी पड़ रहा है। बम की धमकियां मानसिक रूप से हर किसी पर दबाव बना रही हैं। ऐसे लगता है कि अगर ऐसा ही सिलसिला चलता रहा तो समाज ही दबाव में आ जाएगा। स्कूली बच्चों के अभिभावक कह रहे हैं कि ऐसी धमकियों को हल्के में नहीं लिया जा सकता। यह भेड़िया आया, भेड़िया आया जैसी स्थिति भी हो सकती है। ऐसे में अभिभावक तो फिक्रमंद रहेंगे ही, दूसरी तरफ स्कूल प्रबंधकों के लिए भी सुरक्षा एक बड़ा मसला बन चुका है।
स्कूल परिसरों में डर का वातावरण बन चुका है। दहशत फैलाने वाले एक साथ 50-50 स्कूलों को धमकाते हैं तो डर में ​शिक्षा व्यवस्था कैसे बाधा रहित बन पाएगी। कई तरह की बातें सुनाई दे रही हैं कि स्कूलों के आसपास बम निरोधी दस्ते, मैडिकल टीमें, एम्बुलैंस और पुलिस की टीमें तैयार होनी चाहिए। स्कूलों के आगे हॉकर्स नहीं होने चाहिए। स्कूलों के बाहर जगह खाली होनी चाहिए ताकि कोई भी इमरजैंसी होने पर स्कूल खाली करवाने में दिक्कत न आए लेकिन यह सब बातें दिल्ली जैसे महानगर में सम्भव हो सकती हैं? दिल्ली के स्कूलों के बाहर रेहड़ी-पटरी वालों और ई-रिक्शा का जमघट देखकर ही बहुत सारे सवाल खड़े हाेते हैं। धमकियों का यह सिलसिला अब बेलगाम हो चुका है। इनके पीछे कौन है उसकी पहचान होनी चाहिए। इनके पीछे अगर कोई शरारती दिमाग काम कर रहा है तो उसका भी ईलाज किया जाना जरूरी है। स्कूल प्रबंधकों को अपने स्टाफ को भी सेफ्टी ट्रेनिंग देनी होगी, तो दूसरी ओर पुलिस प्रशासन को भी साइबर अपराधियों को पकड़ने के लिए मजबूत नेटवर्क बनाना होगा। सबसे बड़ी बात यह है कि स्कूली बच्चों और अभिभावकों को मानसिक रूप से मजबूत कैसे बनाया जाए ताकि बार-बार पैदा हो रहे ऐसे हालातों में वह मजबूती से निपट सकें। न तो हम भयभीत समाज चाहते हैं और न ही हम लापरवाह समाज चाहते हैं, इसलिए सजगता बहुत जरूरी है।

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Aditya Chopra

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