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भारत-अमेरिका में मोल-भाव

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की दो अप्रैल से रेसिप्रोकल यानी जवाबी टैरिफ लगाने…

10:57 AM Mar 27, 2025 IST | Aditya Chopra

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की दो अप्रैल से रेसिप्रोकल यानी जवाबी टैरिफ लगाने…

भारत अमेरिका में मोल भाव

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की दो अप्रैल से रेसिप्रोकल यानी जवाबी टैरिफ लगाने की धमकियों के बीच भारत और अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल ने व्यापार समझौते पर बातचीत शुरू कर दी है। अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि ब्रेंडल लिंच के नेतृत्व में प्रतिनिधिमंडल पांच दिन के भारत दौरे पर है। इस यात्रा के दौरान द्विपक्षीय व्यापार समझौते के लिए रूप-रेखा तैयार किए जाने की उम्मीद है। यद्यपि अभी तक यह स्पष्ट नहीं कि भारत को दो अप्रैल से लागू होने वाले अमेरिकी टैरिफ में छूट मिलेगी या नहीं। इसमें कोई संदेह नहीं कि डोनाल्ड ट्रंप इस समय विशुद्ध सौदेबाजी पर उतरे हुए हैं। इस वर्ष जनवरी में अमेरिकी राष्ट्रपति पद संभालने के बाद नीतियां लागू करने के मामले में ट्रंप इतना आगे-पीछे हुए हैं कि बाजार भ्रम में पड़ गया है। इसलिए यह अनुमान लगाना कठिन हो रहा है कि इसका विश्व व्यापार पर असर क्या होगा? अमेरिका में भी उद्योग जगत के हौंसले पस्त हो रहे हैं आैर उन्हें लोगों की धारना बदलने में मंदी आने का डर सताने लगा है। ट्रंप अमेरिकी अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए जितने बड़े बदलाव कर रहे हैं उनसे फिलहाल हलचल तो मची हुई है।

भारत और अमेरिका प्रतिनिधिमंडल में टैरिफ को लेकर जोरदार मोल-भाव हो रहा है। अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल ने अमेरिकी शराब, कृषि उत्पादों पर भारत द्वारा लगाए जा रहे आयात टैरिफ में बड़ी कटौती करने को कहा है। भारत बीच का रास्ता निकालने के लिए प्रयास कर रहा है। बातचीत में सबसे पेचीदा मुद्दा अमेरिकी कृषि और डेयरी उत्पादों की भारत में एंट्री का रहा है। अमेरिकी निर्यात में 10% से ज्यादा हिस्सा कृषि उत्पादों का है। भारत हर साल अमेरिका को 43 हजार करोड़ तो अमेरिका भारत में 13,670 करोड़ रुपए के कृषि उत्पाद बेच रहा है। दिक्कत यह है कि अमेरिका कृषि उत्पादों के लिए अपने किसानों को भारी सब्सिडी देता है, क्योंकि वहां यह कमाई का जरिया है, लेकिन भारत में कृषि 70 करोड़ लोगों की रोजी-रोटी का सवाल है। अगर भारत टैरिफ घटाता है तो भारतीय मार्किट में अमेरिकी सस्ते कृषि उत्पाद पकड़ बना लेंगे। इससे देसी किसान बाजार को भारी नुक्सान हो सकता है। इसलिए भारत ने बीच का रास्ता निकालने को कहा है।

दोनों देशों में सालाना व्यापार 17 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा का है। इसमें भारत का निर्यात 9 लाख करोड़ से ज्यादा का है। इस पर अमेरिका 2.2% औसत टैरिफ लगाता है जबकि अमेरिकी उत्पादों पर भारत औसत 12% टैरिफ लगाता है। इससे व्यापार घाटा 4 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा का है। अमेरिका को भारत मानक ब्यूरो आैर क्वालिटी कंट्रोल भी खटक रहे हैं। उसके इलेक्ट्रानिक आैर आईटी उत्पाद इन मानकों पर नहीं टिक पाते। इसलिए भारत चीन से प्रत्यक्ष विदेशी ​िनवेश पर लगे प्रतिबंध हटाने की दिशा में भी सोच रहा है। भारत हार्ले-डेविडसन मोटरसाइकिल, बॉर्बन व्हिस्की आैर कैलिफोर्निया वाइन पर इम्पोर्ट ड्यूटी कम करने पर विचार कर रहा है। अमेरिका भारत के बढ़ते फार्मास्यूटिकल मार्किट में भी अपनी हिस्सेदारी बढ़ाना चाहता है। सरकार ने पहले हार्ले-डेविडसन मोटरसाइकिलों पर इम्पोर्ट ड्यूटी 50% से घटाकर 40% कर दी थी। अब टैरिफ आैर कम करने पर चर्चा चल रही है जिससे ये प्री​िमयम बाइक और भी सस्ती हो सकती है। मोती, खनिज ईंधन, मशीनरी, बॉलयर और विद्युत उपकरण जैसे प्रमुख निर्यातों पर टैरिफ 6 से 10% बढ़ सकता है। जबकि मांस, मक्का, गेहूं और डेयरी उत्पादों पर टैरिफ जो अभी 30 से 60% तक है, जो कि बरकरार रहेगा।

भारत ने अपने आटोमोटिव टैरिफ में कटौती के संकेत दिए हैं। एक अनुमान के अनुसार अमेरिका धातुओं, कैमिकल, आभूषणों, फार्मा और आटोमोबाइल पर टैक्स लगाता है तो भारत को 60 हजार करोड़ का नुक्सान हो सकता है। कई आर्थिक थिंक टैंक ने भारत को सावधानी बरतने और फूंक-फूंक कर आगे बढ़ने की सलाह दी है। जैसे-जैसे बातचीत आगे बढ़ रही है कूटनीति के साथ-साथ अमेरिका की व्यापार रणनीति में छिपी कानूनी असमानताओं से भी सावधान रहना होगा। अमेरिकी अपने हितों को सर्वोपरि रखते हुए कोई भी रंग बदल सकते हैं। भारत टैरिफ वार से बचने के लिए अपनी रणनीति पर काम कर रहा है। इसी वर्ष फरवरी में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के वाशिंगटन दौरे के दौरान भी ट्रंप ने टैरिफ का मुद्दा उठाया था। इसके बाद से ही भारत और अमेरिका द्विपक्षीय कारोबार से जुड़े मुद्दों का समाधान करने में जुटे हुए हैं। अमेरिका तेल के खेल को भी बिगाड़ने में लगा हुआ है। अमेरिकी दबाव के बावजूद भारत अपने हितों की रक्षा कर रहा है। यह निश्चित है कि ट्रेड वार से व्यापार को नुक्सान होगा और महंगाई बढ़ेगी। कम्पनियों और निवेशकों को नए ढांचे के हिसाब से ढलने में पर्याप्त समय लगेगा। व्यापार में बहुत ज्यादा उथल-पुथल का असर हमेशा नकारात्मक रहता है। देखना होगा कि भारत और अमेरिका के बीच टैरिफ मुद्दे पर बाधाएं कितनी दूर होती हैं।

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Aditya Chopra

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