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भागवत का ब्रह्मवाक्य

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10:28 PM Sep 13, 2017 IST | Desk Team

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आदिकाल यानी अनंत समय से भारत हिन्दू राष्ट्र है और भारत का हिन्दू राष्ट्र के रूप में ही अभ्युदय हुआ था। रामायणकाल को उठाकर देख लीजिए, महाभारतकाल को ही उठाकर देख लीजिए, भारत एक हिन्दू राष्ट्र ही था। सम्राट विक्रमादित्य का प्रादुर्भाव हुआ जिन्होंने भारत को हिन्दू राष्ट्र के रूप में विकसित किया। सम्राट चन्द्रगुप्त ने भारत की पहचान पूरी दुनिया में एक हिन्दू राष्ट्र के रूप में कराई। महाराजा पृथ्वीराज चौहान के समय में भी भारत विदेशों में हिन्दू राष्ट्र के रूप में जाना जाता था। हेमचन्द्र भारत में अन्तिम राजा हुआ। आतंकी लुटेरे बाबर के आक्रमण से पहले हिन्दू राष्ट्र के सन्दर्भ में कभी कोई विवाद नहीं हुआ था। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख श्री मोहन भागवत ने अपने जन्मदिवस पर पतंजलि योगपीठ हरिद्वार में आयोजित समारोह में कहा कि विश्व में एकमात्र धर्म हिन्दू ही है और बाकी सब सम्प्रदाय हैं। हम किसी को हिन्दू नहीं बनाते क्योंकि हम सबके पूर्वज हिन्दू ही हैं।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ चालक मोहन भागवत का कथन शत-प्रतिशत सत्य पर टिका हुआ है। किसी भी राष्ट्र को अगर खण्डित करना हो तो धर्म का इस्तेमाल किया जाता है। भारत के साथ भी ऐसा ही हुआ। कोई भी धर्म, मजहब अगर किसी देश में आता है तो कभी जमीन-जायदाद लेकर नहीं आता। धर्म राष्ट्रीय आस्थाओं को बदलने की क्षमता रखता है। जरा सोचिए, भारत पर सुल्तानी आक्रमणों के बाद मुगलिया सल्तनत के दौर में भारतवासियों के धर्म परिवर्तन पर जोर क्यों रहा? लोग हिन्दू से मुसलमान हो गए लेकिन ऐसा होने पर भी भारतवासी हिन्दू किसी दूसरे देश के नागरिक तो नहीं हो गए थे।

वे हिन्दू से मुसलमान होने के बावजूद रहे तो भारतीय ही। इसके बावजूद मुस्लिम आक्रांता शासक उनका धर्म परिवर्तन क्यों कराते थे? क्योंकि वे जानते थे कि धर्म परिवर्तन होते ही भारत में रहने वाले नागरिकों की आस्था का केन्द्र काशी नहीं बल्कि काबा और मक्का हो जाएगा। यही वजह थी कि मुगल शासकों ने अपने राज में हिन्दू मन्दिरों को मस्जिदों में तब्दील कराया था। यह केवल हिन्दू राजाओं को पराजित कर उनके राज को अपने शासन में मिलाने के लिए नहीं था बल्कि समस्त जनता की आस्था को परिवर्तित करने के लिए था।

भारत के सोने की चिडिय़ा के नाम से लालायित होकर जब सातवीं सदी के बाद से भारत में आक्रमण शुरू हुए तो उन्होंने इसे हिन्दोस्तान का नाम दिया अर्थात हिन्दुओं की आस्था यानी स्थान। अत: हिन्दुओं की पहचान विदेशी आक्रांताओं ने इस देश के नागरिकों के रूप में की। सीधा अर्थ हुआ कि जो लोग आज भी भारत में रहते हैं, वे सभी हिन्दू हैं। हिन्दू शब्द नागरिकता का परिचायक बना। मुस्लिम शासकों ने धर्मांतरण पर बल देकर हिन्दू समाज में फैली वर्ण व्यवस्था का लाभ उठाया मगर इससे धर्मांतरित हुए लोगों की नागरिकता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। वे हिन्दू ही रहे।

स्वतंत्रता सेनानी वीर सावरकर भारत के मुसलमानों को मुहम्मदी हिन्दू और इसाइयों को मसीही हिन्दू कहते थे अत: जो लोग हिन्दू और भारतीय में अन्तर करते हैं वे भारत की ऐतिहासिक सत्यता को नकारने का काम करते हैं। धर्म परिवर्तित लोगों की आस्था किस प्रकार राष्ट्रबोध को प्रभावित कर सकती है, इसे मुहम्मद अली जिन्ना ने सिद्ध किया था जिसने धर्म के नाम पर भारत का बंटवारा कर दिया। कौन नहीं जानता कि शेख मुहम्मद अब्दुल्ला और जुल्फिकार अली भुट्टो के परदादा हिन्दू थे तो किस तरह ये लोग भारत की समग्र एकात्मकता को चुनौती देने लगे थे? बड़े स्तर पर धर्मांतरण पर पर्दा डालने वाले धर्मनिरपेक्षतावादियों की आंखें आज भी नहीं खुल रहीं। 60 और 70 के दशक में जिस प्रकार अरब देशों में पैट्रो डॉलर के बल पर धर्म परिवर्तन हुआ था वह भी हमारे सामने है।

झारखण्ड, छत्तीसगढ़ और ओडिशा के आदिवासी इलाकों में जिस प्रकार ईसाई मिशनरियों ने धर्म परिवर्तन किया था, उससे जनसांख्यिकी में ही परिवर्तन हो गया। पूर्वोत्तर के राज्यों में जनसंख्या का अनुपात ही बदल चुका है। अल्पसंख्यक बहुसंख्यक होते गए और बहुसंख्यक अल्पसंख्यक होते गए। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने यह भी सही कहा है कि हिन्दू धर्म के दरवाजे आज भी सभी के लिए खुले हुए हैं क्योंकि हम यह मानते हैं कि मूलत: सभी हिन्दू ही हैं। जब हम ‘हिन्दी हैं हम वतन हैं हिन्दोस्तां हमारा’ कहते हैं तो स्थापित करते हैं कि इस भारत में रहने वाले सभी लोग हिन्दू हैं। बेशक धर्म अलग हो सकता है, पूजा पद्धति अलग हो सकती है मगर पूर्वज एक ही हैं।

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