कहीं आपके बच्चे के दिमाग को सड़ा तो नहीं रही रील्स देखने की लत? जानें क्यों हो रही है ब्रेन रॉट की चर्चा
कहीं आपके बच्चे के दिमाग को सड़ा तो नहीं रही रील्स देखने की लत? जानें क्यों हो रही है ब्रेन रॉट की चर्चा
Brain Rot : साल 2016 में टिकटॉक नामक एक सोशल मीडिया ऐप लॉन्च हुआ था, जहां लोग 60 सेकेंड की रील वीडियो बनाया करते थे। जिसके बाद ये अन्य प्लेटफॉर्म पर भी चला गया और आज प्रत्येक सोशल मीडिया ऐप पर शॉर्ट वीडियो सेक्शन आराम से देखने को मिल जाता है। कई लोग इन रील्स को देखने में घंटों तक अपना समय बर्बाद कर देते हैं। बड़े से लेकर बच्चों तक लोग अपना कीमती समय शॉर्ट वीडियो देखने में व्यतीत कर देते हैं। लेकिन अगर आप भी ऐसा कर रहे हैं तो सावधान हो जाइए क्योंकि इससे आप ब्रेन रॉट नामक बीमारी की चपेट में आ सकते हैं।
रील की लत सड़ा रही दिमाग!
सोशल मीडिया का इस्तेमाल आज के समय प्रत्येक व्यक्ति कर रहा है। कोई किसी ऐप पर एक्टिव है तो कोई दूसरे पर। लेकिन इन सभी प्लेटफॉर्म पर सबसे कॉमन बात ये है कि आप शॉर्ट वीडियोज को कहीं भी देख सकते हैं। रील्स देखने की लत कैसे लोगों को दिमाग को सड़ा रही है, इसके बारे में आपको जानना चाहिए। कहा जाए तो आपको सतर्क होना चाहिए क्योंकि रील्स देखने की आदत के कारण आप ब्रेन रॉट के शिकार हो सकते हैं। बता दें कि रील्स लोगों के इंटरेस्ट के साथ ऐसे जुड़ी होती है कि एक बार कोई व्यक्ति स्क्रॉल करता है तो सिर्फ करता ही रहता है।
वर्ड ऑफ द ईयर बना ‘ब्रेन रॉट’
एक रिपोर्ट के मुताबकि, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी ने रील्स देखने की आदत को बताने वाले शब्द को 2024 का वर्ड ऑफ द ईयर चुना है। इस शब्द को ब्रेन रॉट कहा जाता है। यह शब्द सोशल मीडिया पर खराब कंटेंट देखने के कारण दिमाग पर पड़ने वाले नेगेटिव प्रभाव को दर्शाता है। इस आदत से बौद्धिक क्षमता खत्म होने और मानसिक रूप से क्षति पहुंचती है। 2023 से 2024 के बीच इस शब्द के इस्तेमाल में 230% की बढ़त हुई है।
क्यों चर्चा में आया ब्रेन रॉट शब्द?
Brain Rot : बता दें कि 1854 में हेनरी डेविड थोरो नामक लेखक ने अपनी किताब वाल्डेन में इसके बारे में लिखा था। उन्होंने मानसिक और बौद्धिक प्रयास में सामान्य गिरावट के लिए इस शब्द का इस्तेमाल किया था। ब्रेन रॉट शब्द सोशल मीडिया पर 1997-2012 में जन्मे यानी जेन जी और 2013 के बाद जन्मे मतलब जेन अल्फा के बीच फेमस हुआ है। जेन जी इंटरनेट के साथ बड़े हुए है। जबकि जेन अल्फा पूरी तरीके से डिजिटली करण के दौर में विकसित हो रहे हैं। इन पीढ़ियों के बीच सोशल मीडिया और डिजिटल आदतों का गहरा प्रभाव देखने को मिलता है।
देखा जाए तो बच्चों के कोमल दिमाग पर इन खराब रील्स का काफी असर पड़ता है। वह चिड़चिड़े हो जाते हैं, खाना नहीं खाते और कई बार हिंसक भी हो जाते हैं। वह इंटरनेट पर देखी चीजों पर भरोसा करने लगते हैं और वास्तविकता में भी ऐसा ही कुछ करने के बारे में सोचने लगते हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक, शॉर्ट रील्स देखने से ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई, चिड़चिड़ापन, नींद की कमी और नेगेटिव सोच जैसी समस्याएं होती हैं।