For the best experience, open
https://m.punjabkesari.com
on your mobile browser.
Advertisement

राज्यसभा के ‘बेदर्द’ चुनाव

02:17 AM Feb 28, 2024 IST | Aditya Chopra
राज्यसभा के ‘बेदर्द’ चुनाव

2004 में जब केन्द्र में सत्ता बदल होने पर डा. मनमोहन सिंह के प्रधानमन्त्री बनने पर राज्यसभा चुनावों के नियमों में परिवर्तन किये गये और किसी राज्य से निर्वाचित होने वाले प्रत्याशी के लिए उसी राज्य के स्थायी निवासी होने की शर्त को हटाया गया तो तभी तय हो गया था कि इन चुनावों में अब जमकर सौदेबाजी का बाजार गर्म होने लगेगा। प्रत्याशी के लिए स्थायी निवासी होने की शर्त को ही तब नहीं हटाया गया था बल्कि राज्यसभा चुनावों पर दल-बदल कानून को भी लागू होने से रोक दिया गया था। साथ ही गुप्त मतदान की शर्त को भी हटा दिया गया था। यह सारी कवायद केवल डा. मनमोहन सिंह के लिए की गई थी क्योंकि वह उस समय तक ‘असम’ राज्य से चुनकर आया करते थे और उन्हें सरकारी कागजों में अपने निवास का पता असम का दिखाना पड़ता था। इसके बाद से यह नियम बन गया कि किसी भी राज्य का निवासी किसी भी दूसरे राज्य से राज्यसभा का चुनाव लड़ सकता है। इसके बाद से ही इन चुनावों मे ‘क्रास वोटिंग’ शब्द इजाद हुआ और विधायकों को छूट मिल गई कि वे अपनी मनचाही पार्टी के प्रत्याशी को वोट डालें तो उन पर दल-बदल कानून के तहत कोई कार्रवाई नहीं होगी।
राज्यसभा चुनावों में भ्रष्टाचार को प्रवेश देने का यह निर्णायक कदम था जिसका समर्थन उस समय संसद में सत्तारूढ़ यूपीए गठबन्धन के अलावा विपक्ष में बैठी भाजपा ने भी किया था। इस नई प्रणाली के पक्ष में उस समय तरह-तरह के तर्क पेश किये गये और ‘राज्यों की परिषद’ राज्यसभा को राजनैतिक दलों की सुविधा का खिलौना बना दिया गया। सबसे बड़ा तर्क यह दिया गया कि तत्कालीन चुनाव नियमों के तहत राज्यसभा में पहुंचने के लिए प्रत्याशियों को अपने निवास के पते के बारे में झूठ बोलना पड़ता है। क्योंकि दुनिया जानती थी कि डा. मनमोहन सिंह असम के निवासी नहीं थे। हम आज राज्यसभा चुनावों में जो विसंगतियां देख रहे हैं उसकी जड़ में 2004 के बाद बदले गये नियम ही हैं जिसकी वजह से हमें इन चुनावों में क्षेत्रवाद की आवाजें भी सुनाई पड़ने लगी हैं। नये नियमों के खिलाफ लिखने के लिए बहुत ठोस तर्क लिखे जा सकते हैं मगर अब उनका कोई लाभ नहीं है क्योंकि देश के समूचे राजनैतिक जगत ने नये नियमों को ही पूरी तरह अंगीकार कर लिया है और इन्हीं में उन्हें सुविधा दिखाई देती है। मगर इतना जरूर लिखा जा सकता है कि नियम परिवर्तन का यह कदम कानूनी तौर पर राज्यसभा को भ्रष्टाचार की दल-दल में फंसाने का उपक्रम जरूर था। यही वजह है कि वर्तमान में उत्तर प्रदेश, कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश में हम विधायकों के वोट के लिए बिकने की खबरों को अन्तर्आत्मा की आवाज के नाम पर सुन और पढ़ रहे हैं।
इन चुनावों में दल-बदल की तलवार हट जाने की वजह से विधायकों को यह छूट मिल गई कि वे अपनी पार्टी का अनुशासन तोड़ कर किसी दूसरी पार्टी के प्रत्याशी को वोट डाल आयें और इसके बावजूद अपने ही दल के सदस्य तब तक बने रहें जब तक कि उन्हीं की पार्टी उन्हें बाहर का रास्ता न दिखा दे। अब यह स्पष्ट है कि उत्तर प्रदेश में 7 सपा विधायकों ने भाजपा के आठवें प्रत्याशी संजय सेठ को वोट डाला और हिमाचल में कांग्रेस के छह विधायकों ने भाजपा के प्रत्याशी हर्ष महाजन को वोट डाला।
हिमाचल की कहानी गजब की है जहां कांग्रेस की सरकार है और 68 सदस्यीय विधानसभा में इसके 40 सदस्य हैं। इसके साथ ही इस सरकार को तीन निर्दलीय विधायकों का भी समर्थन प्राप्त है। यहां से देश के प्रख्यात विधि विशेषज्ञ श्री अभिषेक मनु सिंघवी कांग्रेस के प्रत्याशी थे। राज्यसभा में पहुंचने के लिए इन्हें केवल 35 वोटों की जरूरत थी। यहां भाजपा के सदस्यों की संख्या 25 ही है मगर तीन निर्दलीय व छह कांग्रेसी विधायकों द्वारा क्रास वोटिंग किये जाने से यह संख्या 34 हो गई और कांग्रेस के प्रत्याशी की वोट संख्या भी 34 हो गई। निश्चित रूप से ये प्रथम वरीयता के वोट ही थे। वहीं उत्तर प्रदेश में दस सांसदों का चुनाव होना था। इनमें से सात भाजपा के दो सपा के बिना किसी हील हुज्जत के जीत गये। मगर सपा के सात विधायक क्रास वोटिंग करके भाजपा के प्रत्याशी संजय सेठ को वोट डाल आये। क्रास वोटिंग करने वाले विधायकों के खिलाफ सपा नेता अखिलेश यादव जो चाहे कार्रवाई करें जैसे उन्हें पार्टी से बाहर कर दें मगर उनकी विधानसभा सदस्यता तो बरकरार रहेगी और वे जिस पार्टी में चाहे उसकी सदस्यता प्राप्त कर सकते हैं जबकि चुनकर वे सपा के टिकट पर आये थे। जाहिर है कि क्रास वोटिंग के पीछे कई प्रकार के लालच हो सकते हैं मगर कानून की इस पर रोक नहीं है। कर्नाटक में चुनाव परिणाम अपेक्षा के अनुरूप ही आए हैं। यहां से तीन सीटें कांग्रेस ने और एक सीट भाजपा ने अपनी सदन की सदस्य संख्या शक्ति के अनुरूप ही जीते हैं। हालांकि यहां ​विपक्षी पार्टी भाजपा के एक सदस्य ने क्रॉस ​वोटिंग कर कांग्रेस के हक में मत दिया।

Advertisement
Advertisement
Author Image

Aditya Chopra

View all posts

Aditya Chopra is well known for his phenomenal viral articles.

Advertisement
×