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बुन्देलखण्ड : भूख से मौत

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11:57 PM Aug 21, 2017 IST | Desk Team

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बिहार, असम, उत्तर प्रदेश में बाढ़ अपना कहर बरपा रही है। बाढ़ से मौतों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है। उत्तर प्रदेश के पूर्वी जिलों में बाढ़ ने तबाही मचा रखी है। पूर्वांचल के महाराजगंज, बस्ती, गोरखपुर आदि जिलों के कई गांवों में लोगों का अनाज बाढ़ के पानी में बह गया। कुदरत का कहर देखिए कि उत्तर प्रदेश के बुन्देलखण्ड में बारिश नहीं होने से सूखे की स्थिति पैदा हो गई है। करीब 4 लाख हैक्टेयर क्षेत्रफल में बोई गई खरीफ की फसल वर्षा के अभाव में खराब होने के कगार पर है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक चित्रकूट धाम मण्डल के 4 जिलों में जून से अब तक महज 198 मि.मी. बारिश हुई है। महोबा, बांदा, चित्रकूट और हमीरपुर जिलों में खरीफ की फसल में करीब 4 लाख 36 हजार 834 हैक्टेयर फसल बोई गई। लगभग 65 हजार हैक्टेयर में धान रोपा गया मगर सूखे ने सब कुछ चौपट कर दिया।

जुलाई के पहले हफ्ते में बारिश ठीक-ठाक देखकर किसानों में खरीफ की फसल की उम्मीद जागी थी लेकिन अब हालात बहुत खराब हो गए। किसानों को कुछ मिल पाने की बात तो दूर है। पानी के बगैर घास भी जहरीली हो जाने से पशुओं के लिए चारे का संकट पैदा होने की आशंका है। सूखे की आहट का अन्दाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि बारिश नहीं होने के कारण बांध भी अबकी बार निर्धारित क्षमता तक नहीं भरे जा सके हैं। बुन्देलखण्ड में सावन आते ही आल्हा गायन शुरू हो जाता था। इस दौरान गांव की चौपालों में वीरता के किस्से सुनाई पड़ते थे। चौपालें सज उठती थीं लेकिन अब चौपालों में आल्हा की गूंज सुनाई नहीं देती। लगातार दैवीय आपदाओं के प्रकोप से किसान और ग्रामीण परेशान हैं। यही वजह है कि अब लोग परिवार के भरण-पोषण की जुगाड़ में लगे रहते हैं। ऐसे में आल्हा गायन की सुध किसे है?
जहां हम आजादी के 70 वर्ष पूरे होने का जश्न मना रहे हैं लेकिन बुन्देलखण्ड आर्थिक गुलामी में जी रहा है।

यह कितना शर्मनाक है कि बुन्देलखण्ड के महोबा जनपद में आर्थिक तंगी के कारण इलाज न होने और भूख से एक मजदूर की मौत हो गई। सूखे और आपदा का क्षेत्र बुन्देलखण्ड जहां किसान और मजदूर पल-पल मर रहा है, मगर शासन- प्रशासन सिर्फ खानापूर्ति में ही लगा रहता है। गांव में रहने वाले छुट्टïन के पास कुछ बीघा जमीन है मगर आर्थिक तंगी के कारण इस वर्ष वह अपने खेत को जोत ही नहीं सका। छुट्टïन और उसकी पत्नी अपने बच्चों और बूढ़ी मां के भरण-पोषण के लिए मनरेगा की मजदूरी करते थे लेकिन प्रधान द्वारा की गई गड़बड़ी के चलते इन्हें दो दर्जन मजदूरों सहित मजदूरी नहीं मिली थी। तेजी से विकास कर रहे भारत की यह अपनी तस्वीर है कि छुट्टन की मौत भूख से हो जाती है। आजादी के बाद केन्द्र और राज्य में सरकारें आती-जाती रहीं लेकिन बुन्देलखण्ड को आपदाओं से मुक्ति कोई नहीं दिलवा सका। केन्द्र की सरकारों ने भारी-भरकम पैकेज भी दिए लेकिन यहां के लोगों की परेशानियों का अन्त नहीं हुआ। सब कुछ भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गया। करोड़ों रुपए कहां लगे, कुछ पता नहीं। बुन्देलखण्ड के कुछ जिले उत्तर प्रदेश और कुछ मध्य प्रदेश में हैं।

यह क्षेत्र पर्याप्त आर्थिक संसाधनों से परिपूर्ण है किन्तु फिर भी यह अत्यन्त पिछड़ा है। इसका मुख्य कारण है राजनीतिक उदासीनता। इसीलिए यहां के लोग अलग बुन्देलखण्ड राज्य की मांग लम्बे अर्से से कर रहे हैं। यूपीए सरकार ने मध्य प्रदेश के बुन्देलखण्ड क्षेत्र के विकास के लिए 3600 करोड़ रुपए का विशेष पैकेज दिया था। कई नई योजनाएं बनाई गई थीं लेकिन तत्कालीन अफसरों के भ्रष्टाचार के चलते 993 योजनाएं शुरू ही नहीं हो पाईं। भारी-भरकम फर्जीवाड़ा किया गया। मामला हाईकोर्ट में पहुंचा तो 15 अफसरों पर आरोप तय किए गए। उत्तर प्रदेश ने भारत को प्रधानमंत्री और अनेक दिग्गज मंत्री दिए हैं लेकिन बुन्देलखण्ड की हालत नहीं सुधरी। अब योगी सरकार ने बुन्देलखण्ड के विकास के लिए नए सिरे से प्रयास शुरू किए हैं।

बुन्देलखण्ड पैकेज के तहत वित्त पोषण के लिए 5 वर्षीय 4 हजार करोड़ की योजनाएं तैयार की जा रही हैं। इस पैकेज के तहत स्पिंकलर ड्रिप इरिगेशन द्वारा ङ्क्षसचाई परियोजना, नलकूपों के पुनर्निर्माण, जाखलौन पम्प नहर प्रवासी पुन:स्थापन और पक्के कार्यों की मरम्मत की परियोजना सहित अन्य ङ्क्षसचाई योजनाएं तैयार की जा रही हैं। सबसे बड़ी समस्या तो बुन्देलखण्ड का जल संकट है। अगर योगी सरकार बुन्देलखण्ड की स्थिति सुधार देती है तो इससे बढ़कर पुण्य का काम हो ही नहीं सकता लेकिन जहां-जहां सार्वजनिक धन का निवेश हो वहां निगरानी भी जरूरी है। निगरानी न होने से भ्रष्टाचार ही होगा। बुन्देलखण्ड में परियोजनाओं को शुरू करने से लेकर अब तक सतत् निगरानी रखी जाए अन्यथा लोग भूख से मरते रहेंगे और प्रशासन लीपापोती करता रहेगा।

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