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अलविदा... प्रख्यात वडाली भाईयों की जोड़ी टूटी, नहीं रहे सूफी गायक उस्ताद प्यारे लाल वड़ाली

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02:44 PM Mar 10, 2018 IST | Desk Team

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लुधियाना-अमृतसर  : प्रख्यात सूफी गायक वडाली भाईयों की जोड़ी शुक्रवार को टूट गई। उस्ताद पूर्ण चंद वडाली के छोटे भाई उस्ताद प्यारे लाल वडाली का आज देहांत हो गया। गुरू की नगरी अमृतसर स्थित पैतृक गांव वडाली में गमगीन माहौल के दौरान अंतिम संस्कार किया गया। उनके देहांत से संगीत जगत में काफी शोक दौड़ गई।

जानकारी के मुताबिक 75 वर्षीय प्यारे लाल वडाली को ब्रेन हैमरेज का अटैक हुआ था और वह तीन दिन से अमृतसर के अस्पताल में भर्ती थे, जहां उन्होंने इस फानी संसार को अलविदा कहा। उनका जन्म अमृतसर के वडाली गांव में 75 साल पहले हुआ था। यह भी पता चला है कि उस्ताद प्यारे लाल वडाली की दोनों किडनियां फेल हो चुकी थी और कोई डोनर ना मिलने से उनका इलाज अधूरा था।

उनके निधन का समाचार सुनते ही फैंस अमृतसर में इकट्ठे हो गए। दोपहर बाद उनका अंतिम संस्कार किया गया। छोटे भाई के निधन की सूचना के बाद बड़े भाई पूर्ण चंद वडाली फूट-फूट कर रो पड़े। वडाली बंधु के नाम से मशहूर जोड़ी (पूर्ण चंद वडाली व प्यारे लाल वडाली) ने एक साथ कई सालों तक संगीत की दुनिया में अपनी आवाज का जादू विखेरा। प्यारे वडाली के निधन के अब इस जोड़ी की आवाज एक साथ नहीं सुनाई देगी। इस जोड़ी ने रंगरेज जैसे कई मशहूर गाने दिए। उस्ताद श्री प्यारे लाल प्रसिद्ध पंजाबी गायक लखविंद्र वडाली के चाचा थे और वडाली भाईयों की जोड़ी को पदमश्री से सम्मानित किया जा चुका था।

आपको बात दे कि सूफी गायकी में आने से पहले बड़े भाई पूर्णचंद वडाली को अखाड़े में पहलवानी करते थे। जबकि छोटे भाई प्यारेलाल गांव की रासलीला में कृष्ण बनकर घर की आर्थिक मदद करते थे। बाद में दोनों ने एक साथ सूफी गायन शुरू किया और बुलंदियों को छुआ।

बुल्ले शाह, अमीर खुसरो, कबीर, अमीर खुसरो व सूरदास जैसे सूफी संतों व कवियों के कलाम गाकर पंजाब के वडाली बंधुओं ने सूफी गायकी में विश्वभर में नाम कमाया। उन्होंने अपना पहले संगीत का प्रदर्शन 1971 में जालंधर में दिया। परंत उन्हें गीत गाने की इजाजत नहीं मिली। जिससे वह काफी उदास हो गए। इस पश्चात उन्होंने हरिवल्लभ मंदिर में संगीत की पेशकश करने का निर्णय किया। जहां आल इंडिया रेडियो के निर्देशकों ने देखा तो उन्हें रेडियो पर गीत गाने की इजाजत मिली।
1992 में संगीत नाटक अकेडमी अवार्ड जीतने वाले वडाली बंधुओं को 1998 में तुलसी अवार्ड, 2003 में पंजाब संगीत नाटक अकेडमी अवार्ड तथा 2015 में पीटीसी की ओर से लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड से नवाजा गया। 2005 में इनके बड़े भाई बड़े भाई पूर्ण चंद वडाली को भारत सरकार ने पद्मश्री से सम्मानित किया था।

दोनों वडाली ब्रदर्स बड़े गुलाम अली साहब के शागिर्द रहे हैं। पहली बार इन्होंने 1975 में हरिवल्लभ संगीत सम्मेलन में गाया था। फिल्म इक तू ही तू (2011 में आयी मौसम), तू माने या ना (फरीद 2004), ऐ रंगरेज मेरे (तनु वेड्स मनू 2011), 2003 में आयी फिल्म पिंजर व धूम में भी उनके गीत थे। उन्होंने बालीवुड गायक हरिहरण के साथ एक तमिल फिल्म का गात भी गाया था। वडाली बंधुओं की लोकप्रिय अलबम में आ मिल यार, पैगाम-ए- इश्क, फोक म्यूजिक आफ पंजाब, याद पिया की आदि शामिल हैं।

सिर से पांव तक सिर्फ संगीत में रमे थे वे
गीत जय हो के लिए अकेडमी अवार्ड जीत चुके सुखविंदर सिंह को जब प्यारे लाल वडाली के निधन की सूचना मिली तो वह चौक गए। बोले, ओ माय गॉड, मैं कल ही वडाली बंधुओं को सुन रहा था। प्रतिदिन एक घंटा इंडियन क्लासिकल या फोक सुनता हूं और इसीलिए कल मन हुआ आज वडाली बंधुओं को सुनूं। उनके गातों को सुनते हुए यही सोच रहा था कि इनके गायन से महसूस होता है जैसे ये सोते हुए भी संगीत में डूबे रहते हैं।

उन्होंने कहा कि उनकी गायकी से लेकर लिविंग स्टाइल से भी लगता था कि एक मिनट के लिए भी उनका नाता संगीत से नहीं टूटता है। वडाली बंधुओं की यह खासियत रही है कि वे संगीत से कभी दूर नहीं हुए। न कभी राजनीति की ओर गए और न ही कभी किसी अन्य बिजनेस में पड़े। केवल संगीत और संगीत… उम्मीद है कि अब उनके बड़े भाई पूर्ण चंद व उनका पुत्र लखविंदर सूफी व लोक गायकी की परंपरा को जारी रखेंगे।

– सुनीलराय कामरेड

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