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पसमान्दा मुसलमानों की जनगणना और भाजपा

प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने जातिगत जनगणना की घोषणा करके…

10:46 AM May 02, 2025 IST | Rakesh Kapoor

प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने जातिगत जनगणना की घोषणा करके…

पसमान्दा मुसलमानों की जनगणना और भाजपा

प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने जातिगत जनगणना की घोषणा करके सामाजिक न्याय की दिशा में जिस तरह कदम बढ़ाया है उसे राजनैतिक क्षेत्रों में ‘मास्टर स्ट्रोक’ माना जा रहा है। मगर सामाजिक न्याय की तरफ यह एेसा बड़ा कदम है जिसके पूरा होते ही भारत में पिछड़े वर्ग के लोगों की सदियों से छिपी आकांक्षाओं को थामा नहीं जा सकता है। इसकी वजह यह है कि भारत के हिन्दू समाज में जातिगत व्यावसायिक बंटवारा भी सदियों पुराना है। अतः पिछड़ी जातियों के समाज में आर्थिक व राजनैतिक सशक्तीकरण का स्वप्न भी स्वाभाविक तौर पर छिपा हुआ है। मगर जातिगत पिछड़ेपन की पहचान केवल हिन्दुओं में ही नहीं है बल्कि मुस्लिम समाज में भी है।

भारत के मुस्लिम समाज में भी व्यवसायगत तौर पर पिछड़ों की संख्या कुल मुस्लिम आबादी में 80 प्रतिशत से ऊपर मानी जाती है। इन पिछड़े मुस्लिमों को ही पसमान्दा मुसलमान कहा जाता है। इसलिए जब भी जनगणना का काम शुरू होगा तो पिछड़ों में पसमान्दा मुस्लिमों की गिनती भी होगी। यदि हम इतिहास को पलट कर देखें तो इन्ही पसमान्दा लोगों के लिए सर सैयद अहमद खां ने ‘कमजात’ शब्द का इस्तेमाल किया था। सर सैयद ऊंची अंग्रेजी शिक्षा को कथित कमजात मुस्लिमों के लिए जरूरी नहीं मानते थे और चाहते थे कि वे पारंपरिक मदरसों में ही तालीम पायें।

सर सैयद अंग्रेजों के बहुत बड़े खैरख्वाह थे। इसका प्रमाण उनके द्वारा लिखी गई पुस्तक ‘असबाबे बगावते हिन्द’ में मिलता है। इस पुस्तक में उन्होंने 1857 के प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम का ब्यौरा दिया है। पुस्तक के शीर्षक से ही यह स्पष्ट होता है कि वह 1857 के युद्ध को केवल विद्रोह या बगावत मानते थे। सर सैयद ने ही अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की नींव एक अंग्रेजी कालेज के रूप में डाली थी। सर सैयद ने इस युद्ध के सन्दर्भ में अंग्रेजों को यह सलाह दी थी कि वे अपनी फौज में कभी भी हिन्दू-मुसलमानों में दोस्ती न होने दें। उनका भारत में शासन तभी पुख्ता और सफल होगा जबकि वे हिन्दू व मुसलमानों को अलग-अलग रखेंगे। इस सिलसिले में उन्होंने भारत पर आक्रमण करने वाले नादिर शाह की फौज का उदाहरण भी दिया था और कहा था कि जिस प्रकार नादिर शाह अपनी फौज में अफगानों व ईरानियों को अलग- अलग रखता था। उसी प्रकार अंग्रेज भी हिन्दू- मुसलमानों को रखें।

सर सैयद ने 1857 की क्रान्ति के बारे में लिखा कि अंग्रेजों के खिलाफ हुए इस युद्ध में अधिकतर ‘कमजात’ मुस्लिमों ने ही हिस्सा लिया। जिनमें जुलाहे, धोबी, नाई आदि शामिल थे। सर सैयद खुद एक ‘अशराफिया’ मुसलमान थे और उच्च शिक्षा पर अशराफिया मुसलमानों का ही हक मानते थे। वह मुस्लिम महिलाओं की उच्च शिक्षा के भी विरोधी थे। अतः मुस्लिम समाज में पिछड़ों की निशानदेही करना कोई मुश्किल काम नहीं है। अब यह खबर छन कर बाहर आ रही है कि आगामी जातिगत जनगणना के दौरान मुस्लिम पसमान्दा लोगों की भी गिनती होगी। अगर एेसा हुआ तो पूरे भारत में नरेन्द्र मोदी अपनी पार्टी भाजपा का पूरा कलेवर ही बदल डालेंगे और विपक्षी पार्टियां मुसलमानों को जिस तरह भाजपा से डराती है वह सब भूतकाल की बात हो जायेगी।

जातिगत जनगणना स्पष्ट कर देगी कि भारत में पसमान्दा मुसलमानों की जनसंख्या कितनी है। हो सकता है कि विपक्षी दल या मुस्लिम उलेमा इस फैसले को मुस्लिमों को आपस में बांटना वाला बतायें मगर इससे श्री मोदी मुस्लिमों के दिल के बहुत करीब चले जायेंगे और तब भाजपा पर मुस्लिम विरोध का आरोप नहीं लगाया जा सकेगा। लेकिन फिलहाल पिछड़ों के लिए आरक्षण 27 प्रतिशत है मगर राजनैतिक स्तर पर आरक्षण दलितों के समान नहीं है। पिछड़े वर्ग के लोग विभिन्न राजनैतिक पार्टियों से टिकट ले लेते हैं और चुनाव जीत जाते हैं जबकि दलितों के लिए 22 प्रतिशत सीटें आरक्षित रहती हैं जिन पर केवल दलित समाज के लोग ही चुनाव लड़ सकते हैं। जाहिराना तौर पर पिछडे़ समाज के लोग भी आने वाले समय में दलितों के समान राजनैतिक आरक्षण की मांग करेंगे जिसके लिए स्वाभाविक तौर पर भाजपा को सहमत होना पड़ेगा। क्योंकि भाजपा कभी यह नहीं चाहेगी कि विपक्षी दल इस मोर्चे पर उससे बाजी मार कर ले जायें।

सभी जानते हैं कि मुसलमानों की स्थिति जानने के लिए मनमोहन शासन के दौरान एक सच्चर समिति बनाई गई थी और इसने पाया था कि देश में मुसलमानों की सामाजिक व माली हालत दलितों से भी बदतर है। मनमोहन सरकार ने अपने शासनकाल के दौरान 2011 में जातिगत जनगणना कराई थी मगर उसके आंकड़े सार्वजनिक नहीं किये जा सके। इस जनगणना में मुसलमानों की गिनती एक समूह के रूप में की गई थी। जबकि हिन्दुओं की जनसंख्या को जाति में बांट कर गिनती की गई थी। इसलिए कांग्रेस पार्टी को भी जनगणना के बाद की स्थितियों के बारे में ही चर्चा करनी होगी मगर भाजपा ने यह अस्त्र भी कांग्रेस से छीन लिया है और पसमान्दा मुसलमानों की गिनती करते समय अगड़ों व पिछड़ों का वर्गीकरण सुनिश्चित कर दिया है।

सच्चर समिति ने पाया था कि राष्ट्रीय स्तर पर देश में अनुसूचित जाति व जनजाति के साथ पसमान्दा मुस्लिमों की जनसंख्या 40 प्रतिशत है। जबकि मुसलमानों के भीतर पसमान्दा की जनसंख्या 80 प्रतिशत से ऊपर मानी जाती है। पिछड़े वर्गों में पसमान्दा के शामिल हो जाने के बाद देश की राजनैतिक तस्वीर भी बदल सकती है जिसके लिए भाजपा ने अभी से तैयारी शुरू कर दी है। इसकी एक वजह और भी है।

2014 के बाद से राष्ट्रीय राजनैतिक पटल पर श्री मोदी के उदय के बाद पिछड़ों की राजनीति में आमूलचूल परिवर्तन आया है। उत्तर भारत के जितने भी छोटे-छोटे जातिमूलक राजनैतिक दल हैं वे सब भाजपा के साथ हैं जबकि दक्षिण भारत में इसने अन्नाद्रमुक का हाथ थाम लिया है। बेशक उत्तर प्रदेश और बिहार की प्रमुख जाति मूलक पार्टियां जैसे समाजवादी पार्टी व राष्ट्रीय जनता दल कांग्रेस के साथ हैं। मगर इन दोनों पार्टियों में यादव जाति का ही प्रादुर्भाव हैं। इन दोनों पार्टियों का समर्पित वोट बैंक यादव व मुस्लिमों का है। इन दोनों में से यदि मुसलमान वोट बैंक में भाजपा का डर समाप्त हो जाता है और अन्य पिछड़े या अति पिछड़े भाजपा का दामन थाम लेते हैं तो कांग्रेस पार्टी को भारी नुकसान होगा, जबकि हकीकत यह भी है कि पिछले वर्ष हुए लोकसभा चुनावों में मुस्लिम मतदाता कांग्रेस के पाले में आ गये थे।

श्री मोदी ने भाजपा की राजनीति में जिस तरह रूढि़यों को तोड़ा है उसका संज्ञान मुस्लिम जनता खास कर पसमान्दा मुसलमान न लें, एेसा संभव नहीं है। देश के सकल मुस्लिम समुदाय के 80 प्रतिशत लोग यदि पिछड़े होने के घेरे में आते हैं तो उनके लिए आरक्षण का मार्ग हिन्दू पिछड़ों के समान ही खुला हुआ है। पसमान्दा मुस्लिमों के लिए अगर आरक्षण का रास्ता खुलता है तो इस समाज के लोगों में अपने पिछड़े होने का वही भाव होगा जो कि हिन्दू पिछड़ों में है। अतः भविष्य में हम देख सकते हैं कि पसमान्दा मुस्लिम भाजपा के खेमे में चले जायें।

भारत में पहली जनगणना 1871 में अंग्रेजों ने कराई थी जिसमें यह पाया गया था कि केवल 19 प्रतिशत मुसलमान ही ऊंची जाति (अशराफिया) के हैं और शेष सभी छोटी समझी जाने वाली जातियों के हैं जिनमें गुर्जर से लेकर नाई, धोबी, दर्जी, रफूगर, आतिशगर, कूजड़े व जुलाहे आदि हैं। सर सैयद ने इन्ही लोगों को कमजात कहा था। अतः बहुत बड़ी संभावना है कि जनगणना के बाद पसमान्दा मुस्लिम अन्य पिछड़े समुदाय के साथ अपनी गोलबन्दी करते हुए अनुसूचित जाति व जनजाति के लोगों को भी अपने साथ ले लें। मगर यह काम तभी हो सकता है जबकि आरक्षाण की 50 प्रतिशत सीमा को हटा दिया जाये। कांग्रेस नेता राहुल गांधी इसकी मांग कर रहे हैं मगर यह मामला तभी गर्म होगा जबकि जातिगत जनगणना के आंकड़े हमारे सामने होंगे। 50 प्रतिशत आरक्षण सीमा हटाना बहुत मुश्किल काम नहीं है। भारत की संसद एेसा करने के लिए सक्षम है। अतः भविष्य की राजनीति हम दूरबीन लगा कर आज भी देख सकते हैं कि क्षेत्रीय दलों की स्थिति हाशिये पर बैठे दर्शकों की हो जाये और भाजपा का मजबूत जमीनी तन्त्र अब कोई नया आलाप (नैरेटिव) लेने लगे।

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Rakesh Kapoor

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