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केंद्र सरकार ने धारा 497 का विरोध किया, सुप्रीम कोर्ट ने जताई असहमति

सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ता का कहना है कि महिलाओं को अलग तरीके से नहीं देखा जा सकता क्योंकि आईपीसी के किसी भी धारा में जेंडर विषमताएं नहीं हैं।

11:44 PM Jul 11, 2018 IST | Desk Team

सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ता का कहना है कि महिलाओं को अलग तरीके से नहीं देखा जा सकता क्योंकि आईपीसी के किसी भी धारा में जेंडर विषमताएं नहीं हैं।

केंद्र सरकार ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर करके एक याचिका का विरोध किया है। याचिका में ये कहा गया है कि विवाहेत्तर संबंध के मामले में पुरुष और महिला को बराबर का दोषी माना जाए, जो वर्तमान में नहीं है। वर्तमान में इंडियन पीनल कोड की धारा 497 के तहत इस अपराध का दोषी उस पुरुष को ही माना जाता है, जिसने किसी ऐसी महिला से यौन संबंध बनाए हों, जो उसकी पत्नी नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सामाजिक बदलाव के मद्देनजर, जेंडर समानता और इस मामले में दिए गए पहले के कई फैसलों को दोबारा परीक्षण की जरूरत है। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुआई वाली बेंच ने मामले को पांच जजों की संवैधानिक बेंच को रेफर कर दिया था और केंद्र सरकार से जवाब दाखिल करने को कहा था।

केंद्र सरकार की ओर से दाखिल हलफनामे में कहा गया है कि याचिका खारिज किया जाए और कहा गया कि धारा-497 शादी जैसी संस्था को सपॉर्ट करता है और उसे सेफगार्ड करता है। जिस प्रावधान को चुनौती दी गई है उसे विधायिका ने विवेक का इस्तेमाल कर बनाया है ताकि शादी जैसी संस्था को प्रोटेक्ट किया जा सके। ये कानून भारतीय समाज के कल्चर और तानाबाना को देखकर बनाया गया है। गौरतलब है कि आईपीसी की धारा-497 के प्रावधान के तहत पुरुषों को अपराधी माना जाता है जबकि महिला विक्टिम मानी गई है। सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ता का कहना है कि महिलाओं को अलग तरीके से नहीं देखा जा सकता क्योंकि आईपीसी की किसी भी धारा में लैंगिक विषमताएं नहीं हैं। लॉ कमिशन इस मामले का परीक्षण कर रही है। उनकी फाइनल रिपोर्ट का इंतजार है। इस कानून को जेंडर न्यूट्रल बनाते हुए अगर महिलाओं पर भी अडल्टरीका केस चलाया जाएगा तो इससे शादी के बॉन्ड कमजोर होंगे और बॉन्ड टूटेगा।

इस बाबत मालीमथ कमिटी की रिपोर्ट आई थी जिसने कहा था कि इस कानून का मकसद है कि शादी जैसी संस्था को बचाना। ऐसे में अर्जी खारिज किया जाए क्योंकि उसमें मेरिट नहीं है। गौरतलब है कि आईपीसी की धारा-497 के प्रावधान के तहत पुरुषों को अपराधी माना जाता है जबकि महिला विक्टिम मानी गई है। सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ता का कहना है कि महिलाओं को अलग तरीके से नहीं देखा जा सकता क्योंकि आईपीसी के किसी भी धारा में जेंडर विषमताएं नहीं हैं। अडल्टरीसे संबंधित कानूनी प्रावधान को गैर संवैधानिक करार दिए जाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अर्जी पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब दाखिल करने को कहा था। याचिका में कहा गया है कि आईपीसी की धारा-497 के तहत जो कानूनी प्रावधान है वह पुरुषों के साथ भेदभाव वाला है।

अगर कोई शादीशुदा पुरुष किसी और शादीशुदा महिला के साथ उसकी सहमति से संबंधित बनाता है तो ऐसे संबंध बनाने वाले पुरुष के खिलाफ उक्त महिला का पति अडल्टरीका केस दर्ज करा सकता है लेकिन संबंध बनाने वाली महिला के खिलाफ और मामला दर्ज करने का प्रावधान नहीं है जो भेदभाव वाला है और इस प्रावधान को गैर संवैधानिक घोषित किया जाए। याचिकाकर्ता ने कहा है कि पहली नजर में धारा-497 संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन करता है। अगर दोनों आपसी रजामंदी से संबंध बनाते हैं तो महिला को उस दायित्व से कैसे छूट दी जा सकती है। याचिका में कहा गया है कि ये धारा पुरुष के खिलाफ भेदभाव वाला है। याचिका में कहा गया है कि ये संविधान की धारा-14 (समानता), 15 और 21 (जीवन के अधिकार) का उल्लंघन करता है। याचिकाकर्ता ने कहा कि एक तरह से ये महिला के खिलाफ भी कानून है क्योंकि महिला को इस मामले में पति का प्रॉपर्टी जैसा माना गया है। अगर पति की सहमति हो तो फिर मामला नहीं बनता।

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