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चंदा : बुलंदियों से जेल तक

कि​सी भी देश का बैंकिंग सिस्टम उस देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ होता है।

01:40 AM Dec 28, 2022 IST | Aditya Chopra

कि​सी भी देश का बैंकिंग सिस्टम उस देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ होता है।

कि​सी भी देश का बैंकिंग सिस्टम उस देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ होता है। अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने के लिए पारदर्शिता बहुत जरूरी है लेकिन दुर्भाग्य से समय-समय पर बैंक घोटाले सामने आते रहे हैं। एक आम बैंक कर्मचा​री या आम ग्राहक का इन घोटालों से कोई लेना-देना नहीं होता। इस तरह से ऋण सीधे तौर पर उच्चाधिकारियों के द्वारा स्वयं या राजनीतिक प्रभाव के जरिए दिए जाते हैं। नीरव मोदी, मेहुल चौकसी से लेकर विजय माल्या तक इन सब के नाम बैंकिंग फ्रॉड से जुड़े हुए हैं। इनके विदेश भागने के बाद उनकी वापसी के लिए सरकार की कानूनी लड़ाई अभी भी जारी है। कुछ कार्पोरेट घरानों के नाम भी बैंकिंग फ्रॉड से जुड़े हुए हैं, जिनके खिलाफ कार्रवाई की जा रही है। अब 3000 करोड़ से अधिक घोटाले में आईसीआईसीआई की पूर्व सीईओ चन्दा कोचर उनके पति दीपक कोचर और वीडियोकॉन के प्रोमोटर वेणुगोपाल धूत को सीबीआई ने गिरफ्तार कर ​लिया है। कभी चंदा कोचर का नाम देश के टॉप एग्जीक्यूटिव और लीडर्स में लिया जाता था। दुनियाभर की पत्र-पत्रिकाओं में उनके इंटरव्यू छपते थे। वर्ष 2009 में सीईओ के तौर पर आईसीआईसीआई बैंक की जिम्मेदारी सम्भालने वाली चंदा को 2011 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था लेकिन बैंकिंग फ्रॉड के आरोपों ने उनके आसमान छू रहे करियर को ऐसी खाई में धकेल दिया जहां से बाहर आना मुश्किल नजर आता है। इसी तरह वीडियोकॉन के वेणुगोपाल धूत भी उसकी तरह जेल में पहुंच चुके हैं। इनकी गिरफ्तारी से उद्योग जगत के साथ-साथ बैंकिंग क्षेत्र को एक बार फिर सख्त संदेश गया है कि जो लोग बैंकिंग घोटालों में शामिल हैं उनके खिलाफ कार्रवाई तो होनी ही चाहिए। 
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एक आम आदमी के लिए कुछ लाख का लोन लेना भी बड़ा मुश्किल होता है। लोन लेने के लिए उसे न जाने कितने चक्कर बैंकों के लगाने  पड़ते हैं और  फाइल का पेट भरने के लिए कितने पापड़ बेेलने पड़ते हैं। अगर आम आदमी या छोटे किसान लोन नहीं चुका पाते तो बैंक अधिकारी उन्हें धमकाने पहुंच जाते हैं। नोटिस उनके घरों के बाहर चिपका दिए जाते हैं और अंततः उनकी सम्पत्ति कुर्क कर दी जाती है। लेकिन कार्पोरेट घरानों को करोड़ों का ऋण आसानी से मिल जाता है और जिन उद्देश्यों के लिए ऋण दिया जाता है वह उस पर नहीं बल्कि अन्य मदों पर खर्च किया जाता है। फर्जी कम्पनियों को यह धन ट्रांस्फर किया जाता है। नेटवर्क इतना उलझा होता है कि पैसा कहां से आया और कहां गया इसकी तारें जोड़ना आसान नहीं होता। चंदा कोचर से जुड़ा मामला भी कुछ ऐसा ही है। मामला दिसम्बर 2008 का है। वीडियोकॉन समूह के मालिक वेणुगोपाल धूत ने बैंक की सीईओ चंदा कोचर और उनके पति दीपक कोचर और उनके दो संबंधियों के साथ मिलकर एक कम्पनी बनाई थी।
आईसीआईसीआई बैंक ने वीडियोकॉन समूह को 3,250 करोड़ रुपए का लोन दिया था। वीडियोकॉन ग्रुप ने इस लोन में से 86 फीसदी (करीब 2810 करोड़ रुपए ) नहीं चुकाए। 2017 में इस लोन को एनपीए (नॉन परफॉर्मिंग असेट्स) में डाल दिया गया। दरअसल, चंदा उस कमेटी का हिस्सा रही थीं, जिसने 26 अगस्त 2009 को बैंक द्वारा वीडियोकॉन इंटरनेशनल इलेक्ट्रॉनिक्स को 300 करोड़ रुपए और 31 अक्तूबर 2011 को वीडियोकॉन इंडस्ट्रीज लिमिटेड को 750 करोड़ रुपए देने की मंजूरी दी थी। कमेटी का इस फैसले ने बैंक के रेगुलेशन और पॉलिसी का उल्लंघन किया था।
यह मामला मार्च 2008 में सामने आया था तब इस मामले की जांच सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज बीएन श्रीकृष्णा को सौंपी गई थी। इस जांच में चंदा कोचर को दोषी पाया गया था। कम्पनियों का मायाजाल बिछाकर चंदा कोचर, दीपक कोचर और वेणुगोपाल की तिकड़ी ने करोड़ों का खेल कर दिया था। हाल ही में रोटोमैक बैंक घोटाला भी सामने आया था। पीएनबी घोटाले के बाद रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने काफी सख्ती की थी जिससे घोटालों की संख्या में कमी जरूर आई लेकिन अभी भी 41000 करोड़ रुपए की राशि इस वर्ष दाव पर है। इसमें सरकारी, बैंकों की हिस्सेदारी 28000 करोड़ रुपए है जबकि प्राइवेट बैंकों को 13000 करोड़ रुपए का चूना लगा है। इस  साल की शुरूआत में ही सबसे बड़ा बैंक फ्रॉड का मामला एसबीआई का सामने आया था। एबीजी शिपयार्ड और उसके प्रोमोटर्स ने बैंक के साथ 22842 करोड़ की धोखाधड़ी की थी। बड़े घोटाले बैंकिंग व्यवस्था की कम​जोरियों को उजागर करते हैं। वहीं प्रबंधन की लापरवाही को भी दर्शाते हैं। इन घोटालों से देश की अर्थव्यवस्था को नुक्सान तो पहुंचता ही है, साथ ही आम आदमी का भरोसा भी बैंकिंग व्यवस्था से उठ जाता है। कई बार इस बात का शोर मचता है कि बैंकों का फिर से निजीकरण कर दिया जाए लेकिन ऐसा कहने वाले यह भूल जाते हैं कि जब प्राइवेट बैंक में भी बड़े घोटाले हुए हैं। बैंकिंग सैक्टर के उच्चाधिकारियों ने कार्पोरेट सैक्टर को भारी-भरकम लोन देकर उसकी एवज में दलाली खाई है। बैंकों के कामकाज में कमियों को दूर करने के लिए पारदर्शिता जरूरी है। जब बैंक डूबते हैं तो उससे सबसे ज्यादा प्रभावित आम आदमी होता है। सीबीआई ने चंदा कोचर और धूत की गिरफ्तारी को भ्रष्ट आचरण से धन कमाने वालों के विरुद्ध कार्रवाई की है। देखना होगा कि जांच एजैंसी इस मामले को किस तार्किक फैसले तक पहुंचाती है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com
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