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सहकारिता में बदलाव : मोदी व शाह की भूमिका

06:54 AM Jul 09, 2025 IST | Firoj Bakht Ahmed

भारत में सहकारिता आंदोलन का इतिहास सौ साल से भी ज्यादा पुराना है। ये आंदोलन खासकर ग्रामीण इलाकों में किसानों, छोटे उद्यमियों और आम लोगों को आर्थिक ताकत देने का एक बड़ा जरिया रहा है। सहकारिता का मतलब है कि लोग मिलजुल कर, अपनी छोटी-छोटी पूंजी और मेहनत से बड़े काम करें। चाहे वो दूध की डेयरी हो, चीनी मिलें हों, या फिर सहकारी बैंक, ये सभी समाज के निचले तबके को सशक्त बनाने में मदद करते हैं लेकिन 2014 से पहले सहकारिता क्षेत्र में कई समस्याएं थीं, जैसे कि पुराने कानून, सरकारी दखल, भ्रष्टाचार और प्रबंधन की कमी। 2014 में नरेंद्र मोदी की सरकार बनने के बाद इस क्षेत्र में कई बड़े बदलाव आए, जिनमें मोदी जी और उनके करीबी सहयोगी अमित शाह की अहम भूमिका रही। आइए, इन बदलावों और इन दोनों नेताओं की भूमिका को विस्तार से समझते हैं।

सहकारिता क्षेत्र में 2014 के बाद आए बदलावों में सहकारिता मंत्रालय की स्थापना मुख्य है। 2014 के बाद सहकारिता क्षेत्र में सबसे बड़ा बदलाव था 2021 में एक अलग सहकारिता मंत्रालय का गठन। इससे पहले, सहकारिता का जिम्मा कृषि मंत्रालय के पास था, जिसके कारण इस क्षेत्र को वो ध्यान नहीं मिल पाता था जिसकी जरूरत थी। नरेंद्र मोदी ने इस मंत्रालय को बनाकर सहकारिता को एक नई दिशा दी। इस मंत्रालय का मकसद था सहकारी संस्थाओं को मजबूत करना, उनके कामकाज को पारदर्शी बनाना और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देना।

यदि हम राष्ट्रीय सहकारी नीति और डेटाबेस की बात करें तो 2025 में केंद्रीय गृह और सहकारिता मंत्री अमित शाह ने घोषणा की कि जल्द ही एक राष्ट्रीय सहकारी नीति आएगी जिसके तहत राज्य अपनी जरूरतों के हिसाब से नीतियों में बदलाव कर सकेंगे। इसके अलावा एक राष्ट्रीय सहकारी डेटाबेस बनाने की पहल शुरू की गई। इस डेटाबेस का मकसद है ये पता लगाना कि देश के किन गांवों में सहकारी संस्थाएं नहीं हैं ताकि वहां नई समितियां बनाई जा सकें। अमित शाह ने कहा कि अगले पांच साल में हर गांव में कम से कम एक सहकारी समिति होगी। ये डेटाबेस राष्ट्रीय, राज्य, जिला और तहसील स्तर पर सहकारी संस्थाओं की जानकारी इकट्ठा करेगा जिससे उनकी कार्यक्षमता बढ़ेगी और कमियां दूर होंगी।

इस संदर्भ में पीएसीएस प्राथमिक सहकारी समितियों का आधुनिकीकरण एक मुख्य घटना रहा। प्राथमिक कृषि सहकारी समितियां ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं। 2014 के बाद मोदी सरकार ने इन समितियों को आधुनिक बनाने पर जोर दिया। अमित शाह ने बताया कि पहले में अनियमितताएं थीं लेकिन सरकार ने आदर्श "बाय लॉज" बनाकर इनमें सुधार किया। अब इसे बहुउद्देशीय बनाया जा रहा है, यानी ये सिर्फ कृषि ऋण ही नहीं, बल्कि अन्य सेवाएं जैसे कि बीज, उर्वरक, और बाजार तक पहुंच प्रदान करेंगी। इसके लिए डिजिटल तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है ताकि इन समितियों का प्रबंधन पारदर्शी और कुशल हो। एक अन्य महत्वपूर्ण बात यह थी कि सहकारी बैंकों और डेयरी क्षेत्र में बड़ा सुधार देखने को मिला। सहकारी बैंक और डेयरी क्षेत्र में भी बड़े बदलाव आए। 2014 के बाद सरकार ने सहकारी बैंकों को और मजबूत करने के लिए कई कदम उठाए। अंत में सहकारिता को ग्रामीण अर्थव्यवस्था का आधार बनाना मोदी सरकार का मंत्र रहा है, "सहकार से समृद्धि"। सरकार का मानना है कि सहकारिता के जरिए ग्रामीण अर्थव्यवस्था को नई गति दी जा सकती है।

अमित शाह ने कहा कि भारत जैसे देश में जहां 140 करोड़ लोग हैं, रोजगार सृजन और जीडीपी वृद्धि के लिए सहकारिता एकमात्र रास्ता है। इसके लिए सरकार ने सहकारी समितियों को न सिर्फ कृषि, बल्कि अन्य क्षेत्रों जैसे मत्स्य पालन, पशुपालन और हस्तशिल्प में भी बढ़ावा दिया है। कानूनी और प्रशासकीय सुधार भी कुछ कम न थे। पहले सहकारिता क्षेत्र में पुराने कानूनों के कारण कई भी दिक्कतें थीं। मोदी सरकार ने इन कानूनों को समय के हिसाब से अपडेट किया। उदाहरण के तौर पर सहकारी समितियों के रजिस्ट्रेशन और अंकेक्षण में सरकारी हस्तक्षेप को कम किया गया ताकि ये संस्थाएं स्वायत्त हो सकें। साथ ही सहकारी संगठनों को निजी क्षेत्र की प्रतिस्पर्धा से निपटने के लिए पेशेवर प्रबंधन और तकनीकी सहायता दी जा रही है। नरेंद्र मोदी का योगदान अति महत्वपूर्ण रहा है। नरेंद्र मोदी ने सहकारिता क्षेत्र को एक नई दिशा देने में अहम भूमिका निभाई। उनकी दूरदर्शिता और "सहकार से समृद्धि" के मंत्र ने इस क्षेत्र को नया जीवन दिया। जिसके कारण सहकारिता मंत्रालय का गठन हुआ। मोदी जी ने 2021 में सहकारिता मंत्रालय बनाकर इस क्षेत्र को प्राथमिकता दी।

मोदी सरकार ने सहकारी समितियों में डिजिटल तकनीक को बढ़ावा दिया। राष्ट्रीय सहकारी डेटाबेस इसका एक उदाहरण है। इसके जरिए सहकारी संस्थाओं का डेटा एक जगह इकट्ठा किया जा रहा है जिससे उनकी कार्यक्षमता बढ़ रही है और सहकारी ब्रांड्स को बढ़ावा मिला है। मोदी जी ने सहकारी ब्रांड्स जैसे अमूल को वैश्विक स्तर पर प्रोत्साहन दिया। उनकी नीतियों ने सहकारी डेयरी और उर्वरक क्षेत्र को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया। जहां तक अमित शाह की भूमिका की बात है तो वह भी कम नहीं है अमित शाह को 2021 में सहकारिता मंत्रालय का जिम्मा सौंपा गया और तब से उन्होंने इस क्षेत्र में कई बड़े बदलाव किए। जिसके कारण यह गतिशील मंच बना।

उधर अमित शाह का सहकारिता क्षेत्र में पहले से अनुभव रहा है। 1990 के दशक में उन्होंने अहमदाबाद डिस्ट्रिक्ट सहकारी बैंक को दिवालियपन से निकालकर मुनाफे में लाया था। इस अनुभव का फायदा अब वे राष्ट्रीय स्तर पर उठा रहे हैं। सहकारी बैंकों और डेयरी क्षेत्र में योगदान बहुत मायने रखता है। सहकारिता मंत्रालय का गठन, राष्ट्रीय सहकारी नीति, पीएसीएस का आधुनिकीकरण, और डेयरी व बैंकिंग क्षेत्र में सुधार इसके कुछ प्रमुख उदाहरण हैं। नरेंद्र मोदी ने अपनी दूरदर्शिता और "सहकार से समृद्धि" के मंत्र के जरिए इस क्षेत्र को नई दिशा दी, जबकि अमित शाह ने अपने अनुभव और नेतृत्व से इन नीतियों को जमीन पर उतारा। इन दोनों की जोड़ी ने सहकारिता को ग्रामीण भारत की आर्थिक रीढ़ बनाने की दिशा में अहम कदम उठाए। अगले कुछ सालों में अगर ये प्रयास इसी तरह जारी रहे तो सहकारिता क्षेत्र भारत की अर्थव्यवस्था को और मजबूत करेगा।

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