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होमवर्क में आ रहे बदलाव से बढ़ेगी सीखने की भूख

05:00 AM Nov 11, 2025 IST | Rohit Maheshwari
होमवर्क

पढ़ाई करते समय बच्चे अक्सर किसी टॉपिक को दोहरा कर सीखने की कोशिश करते हैं, जिसे कहते हैं कि रट-रट कर परीक्षा देने जाते हैं, जिसकी जितनी अच्छी रटने की शक्ति, उतना अच्छा वो उत्तर लिखता है और परिणाम के आधार पर बुद्धिमान बच्चा कहलाता है, पर गहराई से सोचें, क्या वह बच्चा वाकई में बुद्धिमान है? क्या सच में उसने कोई ऐसा ज्ञान अर्जित किया जो भविष्य में कभी उसके काम आएगा? जवाब है नहीं ! ऐसे बच्चों की रटने की क्षमता तो बहुत अच्छी होती है, लेकिन वे जीवन के असल ज्ञान से वंचित रह जाते हैं और अपनी शिक्षा का उपयोग सही तरीके से नहीं कर पाते हैं। शिक्षा का अर्थ है सीखना। स्कूल में पढ़ाई करने के पश्चात आपने ऐसा क्या सीखा जिसका उपयोग आप जीवन को सार्थक बनाने के लिए करते हैं, यही स्कूली शिक्षा का आधार है। इसलिए रटने से अच्छा है कि किसी बात को गहराई से समझें जिससे वो बात आपके दिमाग में अच्छी तरह से बैठ जाए। पहले स्कूलों में होमवर्क का मतलब होता था गणित के एक जैसे सवाल बार-बार हल करना या लंबा-लंबा निबंध लिखना, लेकिन अब यह बदल रहा है।

पूरे भारत की कक्षाएं जब बदलते शिक्षण तौर-तरीकों के अनुसार खुद को ढाल रही हैं, तो ‘होमवर्क’ जैसे साधारण कार्य में भी धीरे-धीरे बदलाव आ रहा है। यह अब बोझिल काम न रह कर, बल्कि खोज, सहयोग और रचनात्मकता के लिए उपयोगी उपकरण बन गया है। शिक्षाविदों का कहना है कि ‘होमवर्क’, जो पहले रटने पर आधारित था, अब नीतिगत बदलावों, डिजिटल उपकरणों और नए शिक्षण तौर तरीकों से बदल रहा है। ये रचनात्मकता, आलोचनात्मक सोच और छात्रों के कल्याण पर ज़ोर देते हैं। इसका मकसद छात्रों को सिर्फ पढ़ाई के लिए मजबूर करना नहीं, बल्कि सीखने की प्रक्रिया को मजेदार बनाना है। अब होमवर्क में सिर्फ याद करने की बजाय सोचने, समझने और नई चीजें बनाने पर जोर दिया जा रहा है। स्कूलों में बच्चों को प्रोजेक्ट बनाना, ग्रुप में काम करना और नयी जानकारी पर खोज करने जैसे काम दिए जा रहे हैं। इससे बच्चे अपने खुद के तरीके से सीखते हैं। इससे उनकी सोचने की क्षमता भी बढ़ती है।

इस संदर्भ में देखा जाए तो राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी), 2020 के जरिये स्कूली छात्रों के होमवर्क में आ रहा बदलाव स्वागत योग्य है, जिसमें रटने की बजाय सीखने पर ज्यादा जोर है। इस नीति में छात्रों पर शैक्षणिक बोझ कम करने तथा गतिविधि आधारित शिक्षा को प्रोत्साहित करने की वकालत की गयी है। केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) समेत कई राज्य बोर्डों ने शिक्षकों से ऐसे होमवर्क देने को कहा है, जिन्हें करने में बच्चों को खुशी हो और उनमें प्रयोग करने की गुंजाइश हो। ऐसे में, स्कूलों की कोशिश है कि छात्रों को होमवर्क में ही व्यस्त न रखा जाये। ज्यादातर स्कूल आज प्रोजेक्ट आधारित काम देने लगे हैं और बच्चों को सामुदायिक जुड़ाव वाली गतिविधियों में शामिल करने लगे हैं। छात्रों के होमवर्क को आसान और दिलचस्प बनाया जा रहा है, ताकि वे केवल किताबी कीड़ा बनकर न रह जायें। जोर इस पर दिया जा रहा है कि छात्र चीजों के बारे में खुद से सोचने, समझने और उन्हें बनाने की कोशिश करें। इससे बच्चों की रचनात्मकता जागती है और उनमें सोचने की क्षमता बढ़ती है। दरअसल, छात्रों को मिल रहे भारी-भरकम होमवर्क से उनकी रचनात्मकता खत्म होने लगी थी और इसे लेकर देशभर में चिंता जताई जा रही थी।

वर्ष 2018 की वार्षिक शिक्षा स्थिति रिपोर्ट में पाया गया था कि 74 प्रतिशत शहरी छात्रों को दैनिक होमवर्क मिलता है, जिसमें उनके तीन से चार घंटे का समय चला जाता है, जबकि सीखने के मोर्चे पर उसका कोई विशेष लाभ नहीं होता। पिछले दिनों प्रधानमंत्री ने भी शिक्षकों को एक खास तरह का होमवर्क दिया था, जिसमें उन्हें छात्रों के साथ स्वदेशी उत्पादों को बढ़ावा देने के अभियान से जोड़ा गया था, ताकि ‘मेक इन इंडिया’ और ‘वोकल फॉर लोकल’ को प्रेरणा मिल सके। यह बच्चों में देशभक्ति की भावना के साथ व्यावहारिक सोच बढ़ाने में भी मददगार साबित होगा। अमेरिका में नेशनल पीटीए (राष्ट्रीय अभिभावक शिक्षक संघ) और नेशनल एजुकेशन एसोसिएशन द्वारा बनाया गया “10-मिनट नियम” यह बताता है कि बच्चों को हर रात अपनी कक्षा के हिसाब से लगभग 10 मिनट ‘होमवर्क’ करना चाहिए। इसका मतलब है कि पहली कक्षा के बच्चों को 10 मिनट ‘होमवर्क’ करना चाहिए, जबकि बारहवीं क्लास के बच्चों को 120 मिनट तक ‘होमवर्क’ करना चाहिए। भारत में ‘होमवर्क’ की अवधारणा भले ही बदल गई हो, लेकिन असल में कई भारतीय छात्र अक्सर रोजाना 3-4 घंटे ‘होमवर्क’ करने में बिताते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि ‘होमवर्क’ की अवधारणा में बदलाव का एक कारण राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 भी है, जो छात्रों पर पढ़ाई का बोझ कम करने और गतिविधियां आधारित सीखने को बढ़ावा देने पर जोर देती है।

कई राज्य बोर्ड और केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) ने इसके बाद परिपत्र जारी कर शिक्षकों से ऐसे काम देने को कहा है जो ‘मनोरंजक, प्रायोगिक और व्यावहारिक हों। विशेषज्ञों का कहना है कि होमवर्क की अवधारणा में यह बदलाव आंशिक रूप से राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 से प्रेरित है। इस नीति में छात्रों पर शैक्षणिक बोझ कम करने और गतिविधि आधारित शिक्षा को प्रोत्साहित करने की वकालत की गई है। कई राज्य बोर्डों और केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) ने शिक्षकों से ऐसे होमवर्क देने को कहा है, जिन्हें करने में बच्चों को खुशी महसूस हो और उनमें प्रयोग की गुंजाइश हो। बदलाव के तहत अब होमवर्क में लंबे पैराग्राफ याद करने या गणित के सवाल हल करने के लिए नहीं दिये जाते। सिर्फ याद की गयी बातें पूछने के बजाय होमवर्क में छात्रों से अवधारणाओं के क्यों और कैसे को समझने की अपेक्षा भी की जाती है। छात्रों को पाठ्य पुस्तकें पढ़ने के बजाय प्रयोग, प्रोजैक्ट और नवाचार की चुनौतियों के माध्यम से सीखने के लिए भी प्रोत्साहित किया जाता है। ये नये तरीके आलोचनात्मक सोच, विश्लेषण और जानकारी की व्याख्या जैसी क्षमताओं को बढ़ावा देते हैं, जो रटने की प्रवृत्ति से अक्सर दब जाती रही हैं।

विशेषज्ञों के मुताबिक, सिर्फ याद की हुई बातें पूछने के बजाय अब ‘होमवर्क’ में छात्रों से अवधारणाओं के ‘क्यों’ और ‘कैसे’ को समझने की अपेक्षा की जाती है। छात्रों को पाठ्यपुस्तकें पढ़ने के बजाय, प्रयोग, प्रोजेक्ट और नवाचार चुनौतियों के माध्यम से सीखने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। नए तरीके आलोचनात्मक सोच, विश्लेषण और जानकारी की व्याख्या जैसी क्षमताओं को बढ़ावा देते हैं, जो अक्सर रटने की पढ़ाई से दब जाती हैं। प्रतियोगी परीक्षाओं के साथ-साथ नौकरी में भी समझ-बूझ की जरूरत लगातार बढ़ती जा रही है। कॉम्पिटिटिव एग्जामिनेशंस में जहां एनालिटिकल प्रश्नों की संख्या बढ़ रही है, वहीं कॉरपोरेट दुनिया में कद्र उसी की बढ़ रही है जो उत्साह के साथ पहल करने और चुनौतियों का सामना करने को तत्पर रहता है। ऐसे में जरूरी है कि किसी भी विषय को रटने की बजाय समझने पर ध्यान देकर अपने व्यावहारिक नजरिए को विकसित करें, ताकि किसी भी परिस्थिति में पूरे आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ सकें। राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अंतर्गत किये जा रहे प्रयास प्रंशसनीय है क्योंकि ये बच्चे के मौलिक गुणों को उभारने और निखारने में मददगार साबित हो रहे हैं।

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