चिनाब पुल एक चमत्कार
जब देश चिनाब रेलवे पुल के उद्घाटन पर उत्सव मना रहा था, तब इस परियोजना की मुख्य महिला इंजीनियर डॉ. माधवी लता स्पेन के मैड्रिड में थीं। भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी) बेंगलुरु की प्रतिष्ठित प्रोफेसर डॉ. लता और उनकी टीम चिनाब रेल पुल के पीछे की प्रमुख ताकत रही हैं। आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने उन्हें ‘तेलुगु बेटी’ कहकर उनके समर्पण की सराहना की। यह बिना कारण नहीं था, डॉ. लता ने इस पुल परियोजना को अपने जीवन के 17 वर्ष समर्पित किए जिसे ‘एक वास्तुशिल्प चमत्कार’ कहा जा रहा है। स्वर्ण पदक विजेता डॉ. लता ने 2003 में आईआईएससी में फैकल्टी के रूप में कार्य आरंभ किया था और तब से पीछे मुड़कर नहीं देखा। जब देशभर में उनके और उनकी टीम के इस अद्भुत कार्य की प्रशंसा हो रही थी, तब डॉ. लता ने स्वयं को केंद्र में लाने से इनकार कर दिया।
उन्होंने ट्वीट कर कहा कि ‘इस मिशन के पीछे की महिला’ ‘असंभव को संभव बनाया’ और पुल बनाने में चमत्कार कर दिया, जैसी मीडिया रिपोर्टें निराधार हैं। -मैं उन हजारों में से एक हूं, जो चिनाब पुल के लिए सराहना के पात्र हैं, उन्होंने लिखा और आग्रह किया कि ‘मेरी निजता का सम्मान किया जाए।’फिर भी जहां श्रेय बनता है, वहां उसे देना ही चाहिए और डॉ. लता इस अद्वितीय पुल की पूरी हकदार हैं। यह कार्य आसान नहीं था। इस क्षेत्र की कठिन भौगोलिक स्थिति, कठोर मौसम और अन्य चुनौतियों के बावजूद उन्होंने कार्य को सफलतापूर्वक पूरा किया। एक भू-तकनीकी सलाहकार के रूप में डॉ. लता ने ‘डिजाइन ऐज़ यू गो’ पद्धति अपनाई क्योंकि पूर्व निर्धारित, कठोर डिजाइन यहां संभव नहीं थे।
चिनाब पुल इस महीने की शुरूआत में राष्ट्र को समर्पित किया गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा इसका उद्घाटन ईद-उल-अजहा के अवसर पर किया गया। यह पुल कश्मीर घाटी को शेष भारत से जोड़ता है और चिनाब नदी के ऊपर 359 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है, यह ऊंचाई पेरिस के एफिल टॉवर से भी अधिक है। विश्व का सबसे ऊंचा रेलवे आर्च पुल 1315 मीटर लंबा है और हर मौसम में टिकाऊ तथा विस्फोट प्रतिरोधी है। यह भूकंपीय रूप से संवेदनशील क्षेत्र में स्थित है, इसलिए इसे तीव्र भूकंप और 266 किलोमीटर प्रति घंटे तक की हवाओं को सहन करने योग्य बनाया गया है।
उधमपुर-श्रीनगर-बारामूला रेल लिंक (यूएसबीआरएल) परियोजना के तहत भारत का पहला केबल-स्टे रेल पुल ‘अंजी खड्ड पुल’ भी शामिल है, जो 96 केबलों से सहारा पाता है और एक और इंजीनियरिंग चमत्कार है। इस परियोजना में गहरी घाटियों में पुलों और सुरंगों के जरिए पटरियां बिछाई गईं। कुल मार्ग का 90 प्रतिशत हिस्सा 943 पुलों और 36 मुख्य सुरंगों से होकर गुज़रता है, जिसमें भारत की सबसे लंबी रेलवे सुरंग टी-50 भी शामिल है, जिसकी लंबाई 12.7 कि.मी. से अधिक है। लगभग 44,000 करोड़ की लागत से निर्मित यह पुल न केवल अत्याधुनिक इंजीनियरिंग का प्रतीक है बल्कि इससे कश्मीर घाटी की कनेक्टिविटी भी सुनिश्चित होती है। इससे पहले ट्रेनें केवल सांबलदान और बारामूला के बीच चलती थीं और देश के अन्य भागों से केवल कटरा तक रेल संपर्क था।
सरकार के अनुसार, इस मार्ग पर चलने वाली वंदे भारत ट्रेन का ‘कश्मीर संस्करण’ तैयार किया गया है, जिसमें सब ज़ीरो तापमान के लिए उन्नत हीटिंग सिस्टम, विंडशील्ड पर डीफ्रॉस्टिंग के लिए हीटिंग एलिमेंट और कठोर सर्दियों में स्पष्ट दृश्यता सुनिश्चित करने जैसी जलवायु, विशिष्ट सुविधाएं होंगी। यह एक लंबा इंतज़ार रहा, लगभग 70 वर्ष। कश्मीर को देश से जोड़ने की यह परियोजना 1970 के दशक में शुरू हुई थी जब इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थीं। 1994 में इस परियोजना को कैबिनेट से मंजूरी मिली और 2002 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने भूमि अधिग्रहण के लिए फंडिंग मंजूर की। 2009 में काज़ीगुंड-बारामूला खंड, 2013 में बनिहाल-काज़ीगुंड खंड और 2014 में उधमपुर-कटरा खंड चालू हुआ। 2023 में बनिहाल से सांबलदान खंड शुरू हुआ और अब कटरा से सांबलदान तक का जिसे सबसे कठिन हिस्सा माना गया, कार्य पूरा हो गया और पुल राष्ट्र को समर्पित किया गया।
जहां श्रेय बनता है, वहां देना चाहिए और इस बार मोदी सरकार ने इस परियोजना को गति देकर सराहनीय कार्य किया है। इसलिए जब रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने इसे ‘ऐतिहासिक उपलब्धि’ कहा तो वह गलत नहीं थे। यह सचमुच एक ऐतिहासिक उपलब्धि है, इंजीनियरिंग, भौगोलिक और मनोवैज्ञानिक दृष्टि से। मनोवैज्ञानिक रूप से देखा जाए तो यह पुल न केवल भौगोलिक दूरी कम करेगा बल्कि अब तक अलग-थलग रही घाटी को शेष भारत से जोड़ेगा। सरकार की दृष्टि से यह कश्मीर को मुख्यधारा से जोड़ने की एक समावेशी नीति का हिस्सा है। दूरी कम होने से दिल करीब आते हैं, क्या ऐसा होगा, यह तो समय ही बताएगा, परंतु अवसंरचना के मामले में मोदी सरकार हमेशा अग्रणी रही है। पिछले ग्यारह वर्षों के कार्यकाल में मोदी सरकार ने कई बड़े प्रोजैक्ट शुरू किए हैं और इनमें से चिनाब पुल पर हर भारतीय को नाज है।