Chhath Puja Kharna Kab Hai: क्यों खास होता है छठ का दूसरा दिन, जानें खरना पूजा की पूरी विधि और व्रत नियम
Chhath Puja Kharna Kab Hai: हर साल छठ पूजा का महापर्व बड़े ही श्रद्धा और आस्था के साथ मनाया जाता है। यह पर्व खासतौर पर बिहार, झारखण्ड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के कुछ हिस्सों मनाया जाता है। छठ पूजा का पर्व चार दिन का होता है, जिसमें पहला दिन नहाय खाय होता है, दूसरा दिन खरना, तीसरा दिन संध्या अर्घ्य और चौथा दिन ऊषा अर्घ्य के साथ इसका समापन होता है। छठ का दूसरा दिन खरना श्रद्धालुओं के लिए विशेष महत्व रखता है, क्योंकि इस दिन व्रती संतान सुख, समृद्धि और स्वास्थ्य के लिए सूर्य देव की पूजा करते हैं। आइए जानते हैं छठ के दूसरे दिन खरना की पूजा विधि और नियम।
kharna Pujan Vidhi: खरना पूजन की विधि
- खरना के दिन सुबह जल्दी उठे और अच्छी तरह घर की सफाई करें।
- सफाई करने के बाद खुद नहाएं और साफ-सुथरे वस्त्र पहनें।
- फिर छठी माता और सूर्य देव का ध्यान करके, पूरे दिनभर निर्जला व्रत का संकल्प लें।
- खरना की पूजा शाम को होती है, इसलिए शाम को व्रती को पूजा में इस्तेमाल होने वाली सभी चीजों को साफ़ करना चाहिए और पूजा स्थल की भी सफाई करनी चाहिए।
- शाम को प्रसाद बनाने के लिए मिट्टी का चूल्हा और मिट्टी के बर्तन का इस्तेमाल करना शुभ माना जाता है।
- शाम को प्रसाद में गुड़, दूध और चावल की खीर बनाई जाती है। प्रसाद में आप गेहूं के आटे की पूड़ी, रोटी और केला भी शामिल कर सकते हैं।
- प्रसाद तैयार होने के बाद पूजापाठ करें और भोग लगाएं। फिर सभी में प्रसाद को वितरण करें।
Chhath Vrat: व्रत का पालन
खरना के बाद व्रती 36 घंटे तक निर्जला व्रत रखते हैं और बिना कुछ खाए उपवास रखते हैं। इस दौरान व्रती जमीन पर सोते हैं और ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं। सोने के लिए बिस्तर और तकिये का भी इस्तेमाल नहीं किया जाता है।
Chhath Puja Kharna Niyam: खरना पूजा में इन नियमों का रखें ध्यान
- खरना के दिन व्रती पूरे दिन निर्जला व्रत रखते हैं।
- शाम को घर और पूजा स्थल की सफाई करें।
- पूजा के बाद गुड़ की खीर, केला और रोटी का भोग लगाया जाता है।
- व्रती पहले सूर्य भगवान और छठी मैया को भोग समर्पित करें।
- इसके बाद प्रसाद को सभी लोगो में बांटा जाता है।
Kharna Kheer Prasad: खरना पर केवल खीर क्यों बनाई जाती है?
गुड़ की बनी खीर छठी मैया का प्रिय भोग माना जाता है। इसे पवित्र और सात्विक भोजन के रूप में पूजा में प्रयोग किया जाता है। परंपरा के अनुसार, इस खीर को नए चूल्हे पर पीतल या मिट्टी के बर्तन में बनाया जाता है।
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