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छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने कहा-अविवाहित बेटी माता-पिता से मांग सकती है वैवाहिक खर्च

एक अविवाहित बेटी हिंदू दत्तक और भरण-पोषण अधिनियम-1956 के प्रावधानों के तहत अपने माता-पिता से शादी में खर्च होने वाली राशि का दावा कर सकती है।

03:23 PM Mar 31, 2022 IST | Desk Team

एक अविवाहित बेटी हिंदू दत्तक और भरण-पोषण अधिनियम-1956 के प्रावधानों के तहत अपने माता-पिता से शादी में खर्च होने वाली राशि का दावा कर सकती है।

अविवाहित बेटी हिन्दू दत्तक और भरण-पोषण अधिनियम-1956 के प्रावधानों के तहत अपने माता-पिता से शादी के खर्च का दावा कर सकती है। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने दुर्ग जिले की मूल निवासी 35 वर्षीय महिला राजेश्वरी द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए यह बात कही।
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याचिकाकर्ता के वकील एके तिवारी ने बताया कि न्यायमूर्ति गौतम भादुड़ी और न्यायमूर्ति संजय एस अग्रवाल की पीठ ने 21 मार्च को याचिका पर सुनवाई की अनुमति यह स्वीकार करते हुए दी कि एक अविवाहित बेटी हिंदू दत्तक और भरण-पोषण अधिनियम-1956 के प्रावधानों के तहत अपने माता-पिता से शादी में खर्च होने वाली राशि का दावा कर सकती है।
पीठ ने दुर्ग फॅमिली कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश द्वारा 22 अप्रैल 2016 को पारित आदेश को रद्द कर दिया और अधिनियम की धारा-3(बी)(ii) की भावना के तहत गुणदोष के आधार पर मामले को फैसले के लिए फॅमिली कोर्ट के पास भेज दिया। हाई कोर्ट ने पक्षकारों को फॅमिली कोर्ट में पेश होने का निर्देश दिया।

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याचिकाकर्ता राजेश्वरी भिलाई स्टील प्लांट (बीएसपी) के एक कर्मचारी भानू राम की बेटी की है। उसने हिंदू दत्तक ग्रहण और रखरखाव अधिनियम-1956 के तहत दुर्ग की फॅमिली कोर्ट में एक याचिका दायर कर वैवाहिक खर्च के रूप में 20 लाख रुपये की धनराशि दिए जाने की मांग की थी।
फॅमिली कोर्ट ने सात जनवरी 2016 को यह कहते हुए राजेश्वरी की याचिका खारिज कर दी थी कि अधिनियम में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है कि एक बेटी अपनी शादी के खर्च का दावा कर सकती है। राजेश्वरी ने अपनी याचिका में कहा था कि प्रतिवादी भानू राम सेवानिवृत्त होने जा रहा है और सेवानिवृत्ति बकाया के रूप में उन्हें 55 लाख रुपये प्राप्त होने की संभावना है। लिहाजा, उचित रिट दायर कर प्रतिवादी के नियोक्ता भिलाई स्टील प्लांट को भानू राम के सेवानिवृत्ति बकाये का एक हिस्सा यानी 20 लाख रुपये वैवाहिक खर्च के रूप उसकी अविवाहित बेटी के पक्ष में जारी करने का निर्देश दिया जाए।
तिवारी के मुताबिक, राजेश्वरी ने फॅमिली कोर्ट के आदेश को हाई कोर्ट में यह कहते हुए चुनौती दी थी कि कानून के अनुसार अविवाहित बेटी अपने पिता से शादी के खर्च की मांग कर सकती है। उसने दावा किया था कि यह खर्च भरण-पोषण के दायरे में आता है।
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