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छावला गैंगरेप : सुप्रीम कोर्ट के फैसले को चुनौती देगी दिल्ली सरकार, उपराज्यपाल ने दी मंजूरी

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में छावला गैंगरेप के आरोपियों को मौत की सजा के बाद रिहा कर दिया। अब दिल्ली सरकार साल 2012 में हुए कांड पर देश की उच्चतम अदालत के फैसले को चुनौती देने वाली है।

10:47 AM Nov 21, 2022 IST | Desk Team

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में छावला गैंगरेप के आरोपियों को मौत की सजा के बाद रिहा कर दिया। अब दिल्ली सरकार साल 2012 में हुए कांड पर देश की उच्चतम अदालत के फैसले को चुनौती देने वाली है।

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में छावला गैंगरेप के आरोपियों को मौत की सजा के बाद रिहा कर दिया। अब दिल्ली सरकार साल 2012 में हुए कांड पर देश की उच्चतम अदालत के फैसले को चुनौती देने वाली है। उपराज्यपाल वी के सक्सेना ने छावला गैंगरेप एवं हत्या मामले में मौत की सजा पाने वाले तीन दोषियों को बरी करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ याचिका दायर करने की मंजूरी दे दी है।  
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एक वरिष्ठ अधिकारी ने सोमवार को यह जानकारी देते हुए बताया कि उपराज्यपाल सक्सेना ने मामले में दिल्ली सरकार का प्रतिनिधित्व करने के लिए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की सेवाएं लेने की भी मंजूरी दे दी है। अधिकारी ने कहा, “उपराज्यपाल ने तीनों आरोपियों को बरी करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर करने की मंजूरी दे दी है।”
दिल्ली की एक निचली अदालत ने द्वारका के छावला इलाके में नौ फरवरी 2012 को 19 वर्षीय एक युवती के सामूहिक दुष्कर्म एवं हत्या मामले में तीनों आरोपियों को मौत की सजा सुनाई थी, जिसे दिल्ली हाई कोर्ट ने बरकरार रखा था। आरोपियों ने सजा के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था, जिसने सात नवंबर 2022 के अपने फैसले में निचली अदालत और हाई कोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया था।
सजा-ए-मौत के बाद रिहाई
दरअसल, फरवरी साल 2012 में 19 साल की लड़की के अपहरण, गैंगरेप और हैवानियत का ये मामला रूह कंपा देने वाला है। अपहरण के तीसरे दिन मासूम का शव क्षत-विक्षत शव पड़ा मिला था। शव उस लायक भी नहीं था कि उसको पहली नजर में पहचाना जा सके। हैवानियत के आरोपियों को सजा-ए-मौत के बाद रिहाई के फैसले ने देशभर को चौंका दिया था।
देश की सबसे बड़ी अदालत ने 7 नवंबर को पुलिस की घोर लापरवाही को अपने फैसले का आधार बनाया। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि अदालतें सबूतों पर चलकर फैसले लेती है भावनाओं में बहकर नहीं। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि आरोपियों को अपनी बात कहने का पूरा मौका नहीं मिला। 
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