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छावला गैंगरेप : दोषियों की रिहाई के खिलाफ पीड़ित माता-पिता ने SC में दायर की पुनर्विचार याचिका

छावला गैंगरेप केस के आरोपियों की रिहाई के खिलाफ पीड़िता के माता-पिता ने सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल की है।

04:05 PM Dec 05, 2022 IST | Desk Team

छावला गैंगरेप केस के आरोपियों की रिहाई के खिलाफ पीड़िता के माता-पिता ने सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल की है।

छावला गैंगरेप   दोषियों की रिहाई के खिलाफ पीड़ित माता पिता ने sc में दायर की पुनर्विचार याचिका
छावला गैंगरेप केस के आरोपियों की रिहाई के खिलाफ पीड़िता के माता-पिता ने सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल की है। तत्कालीन चीफ जस्टिस यूयू ललित की अध्यक्षता वाली बेंच ने 7 नवंबर को छावला गैंगरेप मामले के दोषियों को बरी कर दिया था। इस मामले के दोषियों ने कोर्ट से मिली मौत की सजा को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।
दिल्ली की एक निचली अदालत ने द्वारका के छावला इलाके में नौ फरवरी 2012 को 19 वर्षीय एक युवती के सामूहिक दुष्कर्म एवं हत्या मामले में तीनों आरोपियों को मौत की सजा सुनाई थी, जिसे दिल्ली हाई कोर्ट ने बरकरार रखा था। आरोपियों ने सजा के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था, जिसने सात नवंबर 2022 के अपने फैसले में निचली अदालत और हाई कोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया था।
सबूतों पर सुप्रीम कोर्ट ने ठीक से नहीं दिया ध्यान 
पुनर्विचार याचिका में कहा गया है कि जिन सबूतों के आधार पर दोषियो को हाईकोर्ट और निचली अदालत ने सजा दी थी, उन सबूतों पर सुप्रीम कोर्ट ने ठीक से ध्यान नहीं दिया। पीड़ित माता-पिता ने कहा कि इस मामले में एक दोषी राहुल की कार मे खून के धब्बे वाला जैक मिला था। यह एक मजबूत सबूत था, लेकिन अदालत ने इसको नजरअंदाज कर दिया और गौर नहीं किया।
सजा-ए-मौत के बाद रिहाई
दरअसल, फरवरी साल 2012 में 19 साल की लड़की के अपहरण, गैंगरेप और हैवानियत का ये मामला रूह कंपा देने वाला है। अपहरण के तीसरे दिन मासूम का शव क्षत-विक्षत शव पड़ा मिला था। शव उस लायक भी नहीं था कि उसको पहली नजर में पहचाना जा सके। हैवानियत के आरोपियों को सजा-ए-मौत के बाद रिहाई के फैसले ने देशभर को चौंका दिया था।
देश की सबसे बड़ी अदालत ने 7 नवंबर को पुलिस की घोर लापरवाही को अपने फैसले का आधार बनाया। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि अदालतें सबूतों पर चलकर फैसले लेती है भावनाओं में बहकर नहीं। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि आरोपियों को अपनी बात कहने का पूरा मौका नहीं मिला। 
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