बच्चों को निगलता कफ सिरप और सिस्टम
मध्य प्रदेश और राजस्थान में बच्चों की मौत का मामला अब पूरे देश में चिंता का विषय है। दोनों राज्यों में ‘कोलड्रिफ’ नाम के कफ सिरप से 18 बच्चों की मौत का आरोप है। इनमें से 16 मौतें मध्य प्रदेश और दो राजस्थान में हुई हैं। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव ने 'कोलड्रिफ' को जिम्मेदार बताते हुए इसे बनाने वाली कंपनी के खिलाफ सख्त कार्रवाई की बात की है। वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन यानी डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, 2022 में कफ सिरप पीने के बाद तीन देशों में 300 बच्चों की मौत के मामले सामने आए थे। कैसी विडंबना है कि जीवन रक्षा के लिये दी जाने वाली दवा मौत का कारण बन जाए।
केंद्र ने सभी राज्यों को निर्देश दिया कि वे दवाओं की गुणवत्ता की सख्त निगरानी करें और बच्चों को बिना जरूरत खांसी की दवा न दी जाए। साथ ही, जांच में कोलड्रिफ नाम के कफ सिरप में जहरीले रसायन डाई एथिलीन ग्लाइकॉल की मात्रा तय सीमा से अधिक पाई गई, जिसके बाद केंद्र ने तमिलनाडु की उस यूनिट का लाइसेंस रद्द करने की सिफारिश की है, जहां दवा तैयार की गई थी। मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा के पीड़ित परिजनों के अनुसार बच्चों को खांसी की शिकायत थी। कफ सिरप पिलाया गया और अन्य दवाएं भी दी गई। सिरप पीने के बाद ही बच्चों को पेशाब रुकने जैसी दिक्कतें होने लगी। डॉक्टरों ने जांच में पाया कि बच्चों की किडनी फेल हो चुकी थी। बच्चों को अस्पताल में भर्ती कराया गया लेकिन कुछ ही दिनों में 11 मासूमों की जान चली गई। एक बच्ची की मौत के बाद नागपुर जिला प्रशासन से खबर मिली की किडनी फेल होने से जान जा रही है। जांच टीम ने तीन बच्चों की बायोप्सी की, जिसकी रिपोर्ट में किडनी नेफ्रॉन में डैमेज दिखा।
आखिर कफ सिरप में जहरीले केमिकल कैसे पहुंचते हैं यह यक्ष प्रश्न है। जो दवा की संदिग्ध गुणवत्ता और निर्माता कंपनियों की आपराधिक लापरवाही को ही उजागर करती है। जाहिर है कि रसायनों की घातकता की मात्रा और गुणवत्ता में कोई खोट इस तरह के हादसों का सबब बना होगा। राजस्थान में कुछ बच्चों की मौत की वजह का संबंध उस सिरप से बताया जा रहा है जो खांसी ठीक करने के लिये दिया गया। ये हादसे इस बात को रेखांकित करते हैं कि दवा की गुणवत्ता में चूक सामान्य उपचार को कितने जानलेवा जोखिम में बदल सकती है।
मध्य प्रदेश में जिस सिरप का इस्तेमाल हुआ, वह तमिलनाडु के कांचीपुरम स्थित 'श्रीसन फार्मास्युटिकल्स' की फैक्ट्री में बना था। तमिलनाडु ड्रग कंट्रोल विभाग ने इस फैक्ट्री से लिए गए कोलड्रिफ सिरप के सैंपल की जांच की, जिसमें 48.6 प्रतिशत डाई एथिलीन ग्लाइकॉल यानी डीईजी पाया गया। यह बेहद जहरीला रसायन है जो किसी भी फार्मा प्रोडक्ट में तय मात्रा से ज्यादा नहीं होना चाहिए। बताया जाता है कि बच्चों को कथित रूप से मुख्यमंत्री की मुफ्त दवा योजना के तहत सरकारी अस्पतालों में एक जेनेरिक खांसी की सिरप दी गई थी। राजस्थान के भरतपुर और सीकर जिलों में जिन दो बच्चों की मौत हुई, जांच में सामने आया कि उन्हें घर पर ही कफ सिरप दिया गया था, बिना किसी डॉक्टर की सलाह के। राज्य के स्वास्थ्य विभाग ने बताया कि मृतकों के परिवारों को दवा दुकानदारों से यह सिरप मिला था।
यह त्रासदी भारत की फार्मास्यूटिकल निगरानी तंत्र की कोताही ही उजागर करती है। सकर हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों में, जो फार्मा हब के रूप में प्रमुख रूप से उल्लेखित है। महत्वपूर्ण है कि हिमाचल प्रदेश की 655 फार्मास्यूटिकल इकाइयों में से केवल 122 ही जीएमपी यानी गुड मैन्युफैक्चरिंग प्रैक्टिसेज के संशोधित शेड्यूल एम मानकों के तहत अपग्रेड करने के लिये पंजीकृत हैं। इसका मतलब यह है कि अधिकांश फार्मा इकाइयां गुणवत्ता मानकों के अनुपालन को प्रमाणित किए बिना काम कर रही हैं। ये जन स्वास्थ्य के प्रति कितनी गैर जिम्मेदार स्थिति है।
यह मामला दवा निर्माण प्रक्रिया में निगरानी और परीक्षण प्रणाली की कमजोरियों को उजागर करता है। देश में हर दवा बैच की जांच का नियम तो है लेकिन कई छोटी और मध्यम फार्मा इकाइयां इसे नजरअंदाज करती हैं। जो सिरप तमिलनाडु की यूनिट से निकला, उसमें डीईजी का ऊंचा स्तर संकेत है कि या तो कच्चे माल की जांच नहीं हुई, या फैक्ट्री में मिलावट को नजरअंदाज किया गया। पिछले साल देशभर में 100 से ज्यादा सिरप गुणवत्ता के अनुरूप नहीं मिले थे।
सिरप में ग्लिसरीन मिलाई जाती है जिससे दवा गाढ़ी और मीठी बनती है। ग्लिसरीन वैसे तो सुरक्षित होती है लेकिन जब ग्लिसरीन की जगह या गलती से या सस्ते विकल्प के रूप में डाई एथिलीन ग्लाइकॉल डीईजी या एथिलीन ग्लाइकॉल यानी ईजी जैसे केमिकल उसमे मिल जाते है तो समस्या होती है। ये केमिकल असल में औद्योगिक उपयोग के लिए बने होते है जैसे ब्रेक ऑयल, पेंट, और इंजन कूलेट। कई बार फैक्ट्रियों में टैंक, पाइपलाइन ठीक से साफ नहीं किए जाते। इससे 4 पुराने औद्योगिक रसायनों के अंश ग्लिसरीन में मिल जाते हैं। कभी-कभी सप्लायर सस्ती नकली ग्लिसरीन देते हैं। जब यही दूषित ग्लिसरीन सिरप में प्रयोग होती है तो कफ सिरप जहरीला बन जाता है।
बीते महीने में यूपी में आगरा से नकली दवाइयों की बड़ी खेप बरामद हुई थी। आगरा में नकली दवाओं के कारोबारियों के कनेक्शन देशभर में फैले हुए थे।हालिया मौतों के बाद बड़ा सवाल यही है कि डब्ल्यूएचओ की चेतावनी, पुरानी घटनाओं के बाद भी देश में ऐसे मामले दोबारा कैसे आए, क्या फैक्ट्रियों में जांच कागजों तक सीमित है, क्या ड्रग कंट्रोल विभाग सही निरीक्षण कर रहे हैं? जवाब जांच रिपोर्ट में मिल सकता है लेकिन फिलहाल देश के लोगों में चिंता है।
ऐसे हादसों को या तो कमतर दर्शाया जाता है या फिर पूरी तरह से अस्वीकार कर दिया जाता है। उल्लेखनीय है कि विगत में भारत को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी ऐसी ही शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा था। भारत की फार्मा कंपनियों के द्वारा तैयार सिरप से गाम्बिया और उज्बेकिस्तान में बच्चों की मौत का लिंक पाए जाने के बाद भारतीय दवाओं पर प्रतिबंध लगाए गए थे। निस्संदेह, ऐसे गैर-जिम्मेदार तरीके से तैयार दवाइयों के चलते भारत की ‘विश्व की फार्मेसी’ के रूप में हासिल प्रतिष्ठा को ही नुक्सान पहुंचा है। हमारे नियामक तंत्र को और कितने बच्चों के मरने का इंतजार है, जरूरी है इससे पहले गुणवत्ता नियंत्रण सिर्फ कागज पर नहीं व्यवहार में लागू करने की जरूरत है।
केंद्र सरकार ने दवाइयों के गुणवत्ता मानकों को तय करने के लिए सख्त तरीके जीएमपी अनुपालन हेतु समय-समय पर निरीक्षणों के लिये कदम उठाए हैं लेकिन प्रवर्तन के स्तर पर अभी भी तमाम खामियां बरकरार हैं। विडंबना यह है कि राज्य नियामकों के पास पर्याप्त संसाधनों का अभाव है। साथ ही अक्सर दंड के प्रावधान प्रभावी नहीं होते। अतीत में भी ऐसी कई त्रासदियां हुई हैं लेकिन हमारे तंत्र ने इससे कोई सबक नहीं सीखा। यह विडंबना ही है कि हमारा तंत्र जन-स्वास्थ्य के खिलवाड़ के प्रति उदासीन बना हुआ है। यह एक कटु सत्य है कि भारत की फार्मा सफलता की कहानी केवल सस्ती जेनेरिक दवाइयों पर आधारित नहीं रह सकती। हमें इसे विश्वसनीय बनाने की जरूरत है। इसके लिए मजबूत ऑडिट, लापरवाही के लिए आपराधिक जिम्मेदारी तय हो और मामलों में पीड़ितों को तीव्र न्याय मिलना चाहिए। निस्संदेह, जिन परिवारों ने अपने बच्चों को खोया, उनके लिये यह बहस कोई सांत्वना नहीं है। उन्हें सही मायनों में सांत्वना तभी मिलेगी जब आपराधिक लापरवाही करने वालों को दंडित किया जाएगा।